Global warming के चलते पूरी दुनिया में जल संकट गहराता जा रहा है। हिमाचल में हाल के वर्षों में कम होती बारिश को इससे सीधे जोड़ कर देखा जा रहा है। पर चिंता का सबब है हिमाचल के सबसे बड़े जिले लाहौल स्पीति में लगातार पिछले 5 सालों में 50 फीसदी से कम मानसून की बारिश होना।
प्रदेश और सिंधु घाटी की अधिकतर नदियों के श्रोत लाहौल स्पीति की पहाड़ियों में ही हैं। यहां से चिनाब, स्पीति जैसी बड़ी नदियां सिंधू नदी में जा कर मिलती हैं। वहीं राबी, व्यास और सतलज की कई सहायक नदियों का उद्गम भी लाहुल स्पीति की चोटियों में ही होता है। ये नदियां भी अंत में सिंधू नदी से ही मिलती हैं। जिले में काम होती मानसून की बारिश ने न ही देश-प्रदेश बल्कि पाकिस्तान के विशेषज्ञों को भी चिंता में डाल दिया है।
पूरे प्रदेश में ही 2010 के बाद मानसून में बादल कम ही बरसे हैं लेकिन लाहौल स्पीति में तो बरसात में बादल ईद का चांद हो गए हैं। अगर पिछले 5 वर्षों पर नजर डाली जाए तो 2017 में 70 फीसदी कम बारिश हुई थी। 2018 में हालत थोड़े ठीक रहे पर तब भी 8 फीसदी मानसून कम ही दर्ज हुआ। 2019 और 2020 में जिले में 56 और 72 फीसदी कम बारिश रिकॉर्ड की गई थी।
मौसम विभाग शिमला के डायरेक्टर सुरेंदरपाल ने बताया कि Global Warming का असर पूरे प्रदेश में ही देखा जा रहा है पर लाहौल स्पीति में इसका अधिक प्रवाह देखने को मिला है। “ये चिंता का विषय जरूर है पर लाहौल स्पीति की नदियों के पानी का प्रवाह बर्फबारी के ऊपर निर्भर रहती हैं।”
किसान परेशानी में…
कम होती बारिश से इलाके के किसान भी परेशानी में हैं। यहां पर ज्यादातर नकदी फसलें उगाई जाती हैं। अगर पानी की कमी के कारण फसलें फेल होती हैं तो लाहौल स्पीति के युवाओं को पलायन भी करना पड़ सकता है।
वहीं जम्मू और कश्मीर, पंजाब और पाकिस्तान के किसानों को भी जिले और प्रदेश में कम बारिश ने चिंता में डाल दिया है। इन इलाकों में भूजल कम होता जा रहा है। अब निदयों में भी पानी घटने लगा है।
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