हिमाचल

मंडी: पंजाब विश्वविद्यालय के डॉ अजय कुमार ने किया अपने शोध में खुलासा

पंजाब विश्वविद्यालय के डॉ अजय कुमार ने किया अपने शोध में खुलासाः
मंडी के सुकेती खड्ड बेसिन के गांवों को भविष्य में गंभीर जल चुनौती के संकट की आशंका
अधिकांश पारंपरिक जल स्त्रोतों की हालत बदतर, नल के पानी पर बढ़ रही है निर्भरता
30 साल में कई गुणा बढ़ जाएगी पानी की मांग
कृषि कार्य के लिए प्रयोग रसायनों से पानी की गुणवता में हो रही गिरावट
समय रहते करने होंगे गंभीर उपाय

मंडी जिले में सुंदरनगर से लेकर मंडी तक चार विधानसभा क्षेत्रों की लाखों की आबादी के लिए आने वाले समय में गंभीर जल संकट की चुनौती आ सकती है। पंजाब विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर शोधार्थी डॉ अजय कुमार ने अपने शोध में यह खुलासा किया है।

मंडी शहर के साथ लगते गांव पधियूं के रहने वाले डॉ अजय कुमार जो वर्तमान में  पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के भूगोल विभाग  में गेस्ट फेकलटी के तौर पर तैनात है ने यह शोध भूगोल विभाग की प्रोफेसर डॉ नवनीत कौर पर्यवेक्षण व देेेख रेख में इस पर लंबा शोध किया है।

उनके अनुसार सुकेती का बेसिन का दक्षिण भाग समुद्र तल से 2890 मीटर की उंचाई पर सुकेत की पहाड़ियों तक है जबकि उतर भाग मेंयह समुद्रतल से 760 मीटर की उंचाई पर मंडी शहर के मध्य में यह ब्यास नदी में संगम करती है। इसमें चार विकास खंड यानी मंडी, बल्ह, गोहर ,वर्तमान में धनोटू, और सुुंदरनगर आते हैं।

इसके अनुसार पिछले 40 सालों में सुकेती बेसिन के ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की आवश्यकता एक अनूठी प्रवृति दर्शाती है। 1991 से लेकर आने वाली 2031 के बीच पानी की कम आवश्यकता वाले गांवों की संख्या लगातार कम होती जा रही है ज्यादा डिमांड वाले गांवों की संख्या बढ़ रही है।

2031 तक सुकेती बेसिन के कुल 352 गांवों में से 150 के लगभग गांवों के लिए पानी की डिमांड काफी बढ़ जाएगी। शोध के अनुसार सुकेती खड्ड के प्रभाव क्षेत्र में मंडी जिले के दो शहर मंडी व सुंदरनगर हैं जबकि ग्रामीण आबादी लगभग 352 गांवों में रहती है।

1991 में सुकेती बेसिन ने पीने व अन्य घरेलू जरूरतों के लिए लगभग 14396 घन मीटर प्रतिदिन जरूरत थी जिसमें शहरी आबादी के लिए 8510 और शहरी आवश्यकता 5885 घन मीटर प्रतिदिन थी।  2001 में यह 16729 और 2011 में 18259 घन मीटर प्रतिदिन हो गई। वर्ष 2021 व वर्ष 2013 के लिए यह आवश्यकता 20537 व 23188 घन मीटर प्रतिदिन बढ़ने का अनुमान है।

डॉ अजय कुमार ने अपने शोध में खुलासा किया है कि सुकेती के बेसिन में कुदरती व अन्य जल स्त्रोत जिन्हें सूहा, खूह, नालू/ छूरड़ू, खातरी, खाई, कुएं, कुहल, बायं व बावड़ी आदि हैं ये महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। वर्तमान में घरेलू स्तर पर नल के पानी की आपूर्ति बढ़ जाने से ये जल स्त्रोत नजरअंदाज हो गए हैं और रखरखाव व मरम्मत के अभाव में ये संरचनाएं ध्वस्त होेने के कगार पर हैं।

बेसिन में लगभग 170 पारंपरिक जलस्त्रोत हैं जिनमें 65 की हालत बहुत की खराब हालत में हैं जबकि 70 औसत हालत में है। केवल 35 ही सही स्थिति में पाए गए हैं। सुकेती बेसिन के इन स्त्रोतों के पानी की गुणवता भी अन्य पहाड़ी क्षेत्रों की तुलना में खराब है जिसका मुख्य कारण कृषि गतिविधियों में रसायनों का अत्याधिक प्रयोग होना है। खुले जल स्त्रोत प्रदूषित हो गए हैं जिन्हें बचाए जाने के लिए पंचायत स्तर तक उपाय करने की जरूरत है।

अपने लंबे शोध के निष्कर्ष में डॉ अजय कुमार ने कहा है कि सुकेती बेसिन अपनी बढ़ती आबादी के परिणामस्वरूप अपने जल स्त्रोतों पर बढ़ते दबाव का अनुभव कर रहा है जिससे पारंपरिक जल जलाशयों की दीर्घकालीन स्थिरता के बारे में चिंता बढ़ रही है। इस गंभीर जल चुनौती को पूरी तरह से हल करने के लिए त्वरित सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

अधिकारियों को जमीनी स्तर पर पानी की कमी के मुद्दों को कम करने के लिए समय पर और प्रभावी कदम उठाने चाहिए। आसन्न संकट को कम करने, जल संसाधनों तक समान पहुंच सुनिश्चित करने और उन पर निर्भर आबादी के सामाजिक- आर्थिक कल्याण की रक्षा करने के लिए सक्रिय कार्रवाई लागू की जानी चाहिए।

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