<p>नागरिक अस्पताल संधोल में स्वास्थ्य सुविधाएं चरमरा गई हैं। ये प्रदेश का एकमात्र अस्पताल है जंहा दर्जे के मुताबिक न स्टाफ है न सुविधाएं है। हाल ही में जयराम सरकार ने इस अस्पताल को 100 बिस्तर का तो घोषित कर दिया है लेकिन धरातल पर स्थिति अभी भी जस की तस बनी है। यहां के कई सामाजिक संगठनों ने प्रशासन व सरकार से इस बारे में कई बार गुहार लगाई लेकिन आज तक कोई भी ठोस कदम नहीं उठाए गए। बल्कि यहां से धीरे धीरे करके कर्मचारी इधर उधर स्थानांतरित कर दिए गए जिसका खमियाजा स्थानीय लोंगो को भुगतना पड़ रहा है।</p>
<p>हाल ही में संधोल सेवा विकास एवं कल्याण समिति के अध्यक्ष मान सिंह द्वारा ली गई आरटीआई से पता चला है कि साल 1999 में इस अस्पताल के दर्जे को बढ़ाया था और कुल पचास बिस्तर का कर दिया गया जबकि स्थिति ऐसी है कि अस्पताल में कुल 15 बिस्तर हैं। जिंसमे से भी लोग दस बिस्तर का भी इस्तेमाल नहीं कर पाते । क्योंकि यहां न तो पर्याप्त डॉक्टर हैं न अन्य सुविधाएं है जिसके चलते छोटी से छोटी बीमारी में भी मरीजों को हमीरपुर या टांडा रेफर कर दिया जाता है।</p>
<p>आरटीआई से ली गई सूचना से पता चला कि अस्पताल में कुल 37 पद स्वीकृत हैं । जिनमें से 14 पद रिक्त हैं। इस सूचना से पता चला कि एक पद तो पिछले बीस वर्षों से रिक्त है जबकि दर्जन भर पद पिछले पांच या अधिक वर्षों से रिक्त चल रहे है। अस्पताल में खंड चिकित्सा अधिकारी का पद , एक एमओ सहित तीन डाक्टर के पद, एक अधिक्षक का पद, एएनएम का एक पद, दो पद स्टाफ नर्स, एक पद वार्ड सिस्टर ,सिनियर लैब टैक्निशियन का एक पद, दंत चिकित्सक के सहायक का पद तथा रेडियोलोजिस्ट का पद रिक्त पडे है । यंहा तैनात किए गए एक मात्र डाक्टर है। जबकि दुसरे डाक्टर सप्ताह में 3 दिन संधोल व 3 दिन धर्मपुर में ड्यूटी दे रहा है।</p>
<p>वहीं, इस सूचना से पता चलता है कि एक 50 बिस्तर वाले अस्पताल में 41 पद होने चाहिए जिनमें डॉक्टर के 4 पद होते हैं। लेकिन हालात की तुलना करें तो यहां करीब बीस हजार की आबादी पर मात्र 1 डॉक्टर लगातार सेवाएं दे रहा है बाकी सब भगवान भरोसे है। जबकि सरकार ने दो डाक्टर के कागजी तबादला तो कर दिया है परंतु वह संधोल कब पहुचगें यह सब भगवान भरोसे पर ही है। इस जानकारी से पता चलता है कि विभाग को लोगों के स्वास्थ्य की कितनी फिक्र है।</p>
<p>सेवा विकास एवम् कल्याण समिति के अध्यक्ष मान सिंह ने बताया कि कई बार पत्र व्यवहार किए गए, सीएमओ को समस्या बताई व मुख्यमंत्री को लिखित रूप में बताया गया परन्तु कोई भी इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए संजीदा नहीं है। इसलिए मजबुरन समिति को माननीय न्यायलय का दरवाजा खटखटाना पडा है। उन्हें उम्मीद है कि न्यायलय ही इस समस्या का समाधान कर सकता है। क्योंकि नेताओं ने संधोल को राजनीति का शिकार बनाया है व अब भी बना रहे हैं। कोई आपातकाल या सामान्य ओपीडी में अस्पताल जाता है तो उसे टांडा या हमीरपुर रेफर कर दिया जाता है जिससे गरीब लोगों को मोटी रकम चुका कर इलाज करवाना पड़ रहा है। सुविधाओं में न ईसीजी, न ही अल्ट्रासाउंड । लोग यहां आएं भी तो क्यों? एक गरीब आदमी को छोटे से टेस्ट के लिए भी हमीरपुर या पालमपुर जाना पड़ता है।</p>
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