कोरोना के चलते दो वर्ष के बाद हो रहे बाड़ी मेले को इस वर्ष हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा।जिसको लेकर पूरी तैयारियां कर ली गई है। 14 जून की रात को जागरण का आयोजन होगा।वहीं 15 जून को मेले का शुभारंभ स्वास्थ्य मंत्री डॉ राजीव सैजल बतौर मुख्यातिथि के रूप में करेंगे।
हिमाचल प्रदेश में देवस्थल के रूप में देवभूमि बाड़ीधार का अहम स्थान है। इस स्थान में होने वाला मेला काफी पौराणिक है। कहा जाता है कि बाड़ी मेले का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है,जिस कारण इसे पांच पांडवों का मेला भी कहा जाता है।यह मेला हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन के अर्की तहसील में प्रतिवर्ष आषाढ़ मास की संक्रांति को मनाया जाता है। यह मेला पांडवों के प्रति लोगों की अथाह श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है
मान्यता के अनुसार बाड़ा देव स्थल में भी गूरों के माध्यम से लोगों की समस्याओं का निपटारा किया जाता हैं।यहां पर बाडेश्वर महादेव का मंदिर है जहां पर यह मेला लगता है।
अर्की तहसील के बाड़ी की धार इलाके में पांचों पांडव विराजते हैं,जिन्हें यहां अलग-अलग नामों से पूजा जाता हैं। इसके पीछे एक कहानी यह है कि पांडव अज्ञातवास के दौरान शिवजी को ढूंढते हुए हिमाचल आए थे। हिमाचल की पर्वत मालाएं शिवालिक अर्थात शिव की जटाएं कही जाती हैं, जैसे ही उन्हें पता चला कि बाड़ी की धार पर्वत पर शिवजी की धुनी है,वैसे ही शिवजी के दर्शन की इच्छा लेकर पांडव यहां आए।
उन्हें शिवजी की धुनी तो मिली पर शिवजी नहीं मिले। देवज्ञा से उन्हें वहीं प्रतिष्ठित हो जाने का आदेश हुआ और आकाशवाणी हुई कि भविष्य में यह पांडवों में सबसे ज्येष्ठ युधिष्ठिर के नाम से जाना जाएगा और यह स्थान बाड़ी की धार के नाम से विख्यात होगा।साथ ही पांडवों को भी अन्य स्थान मिले और वे उन स्थानों पर पूजे जाते हैं। इस मेले के दिन यहाँ पांच पांडवो का मिलन होता हैं। इस मेले की परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है। बाड़ी अर्की से लगभग 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस स्थान पर पहुंचने के लिए अर्की-भराड़ीघाट के मध्य रास्ते में पिपलुघाट नामक स्थान से 10 किमी की दूरी पर है।
पिपलुघाट से यह मार्ग अगर आप अर्की से आ रहे हैं,तो बायीं ओर मुड़ जाता है और यदि आप भराड़ीघाट की ओर से जा रहे हैं,तो यह रास्ता दायीं ओर मुड़ जाता है। देवभूमि बाड़ी धार के बाड़ी मेले में जो आता है, बाड़ा देव उसकी सभी मन की मुरादें पूरी करते है।यही कारण है श्रद्धालू दूर-दूर से इस मेले को देखने के लिए यहां पहुंचते हैं।इस मेले की पूर्व संध्या पर इस स्थान पर जगराता का आयोजन होता है। मेले में पांडवों का सम्मान देने के लिए विभिन्न प्रकार की धुनें बजाई जाती हैं जिसे बेल कहते है।
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