<p>प्रदेश के सरकारी स्कूलों में तैनात मिड डे मील वर्कर ने सीटू के बैनर तले धरना प्रदर्शन किया गया। मिड डे मील वर्कर का कहना है कि कारोना काल में भी इन वर्कर ने घर-घर जाकर कच्चा खाना बांटा। इतना ही नहीं इनकी ड्यूटी आइसोलेशन केंद्रों ओर होम क्वारंटीन में रखे गए लोगों की देखरेख में लगाई गई। बदले में इन्हें कुछ नहीं दिया जा रहा है। सरकार से मांग है कि ऐसे वर्कर के लिए 600 रुपया प्रतिदिन दिया जाए। लेकिन सरकार इनका लगातार शोषण कर रही है।</p>
<p>यूनियन की प्रदेश महासचिव हिमी देवी ने कहा है कि केंद्र और प्रदेश सरकार लगातार मध्याह्न भोजन कर्मी विरोधी नीति अपनाए हुए है। मिड डे मील वर्कर को हाईकोर्ट ने दस माह के बजाए 12 महीने का वेतन दिए जाने के आदेश दिए थे। लगभग 8 माह बीत जाने के बाबजुद प्रदेश सरकार ने इसको लागू नहीं किया है। जो हिमाचल मिड वर्कर के साथ धोखा है। सरकार जल्द 10 के बजाए 12 माह का वेतन मिड डे मील वर्कर को प्रदान करे साथ ही कारोना काल में काम कर रहे वर्कर को 600 रुपया दे। अन्यथा यूनियन आने वाले समय में आन्दोलन तेज करेगी।</p>
<p>बता दें कि हिमाचल प्रदेश में लगभग 23 हज़ार मिड डे मील वर्कर कार्यरत हैं। जिनको 2000 प्रतिमाह मानदेय दिया जा रहा है। हालांकि प्रदेश सरकार ने इस बजट में इनका 300 रुपया बढ़ाकर 2300 रुपया प्रतिमाह मानदेय कर दिया था। लेकिन अभी तक ये बढ़ा हुआ 300 रुपया भी इनको नहीं मिल रहा है। न्यायालय के आदेशों के बाबजूद 10 के बजाए 12 माह का मानदेय भी अभी तक मिड डे मील वर्कर को नहीं मिला है।</p>
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