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ऐसे हुई मिंजर मेले की शुरुआत, जाने इससे जुड़ी रोचक बातें

सतीश धर |

हिमाचल प्रदेश  के चंबा जनपद में मनाये जाने वाला  मिंजर मेला वास्तव  में कुंजड़ी- मल्हार के गायन का पर्व है l  वास्तव में कुजड़ी-मल्हार शास्त्रीय संगीत पर आधारित चंबा का वह लोकगीत है जो केवल बरसात के मौसम में मिंजर में ही गाया  जाता है l कुंजडी का अर्थ कुञ्ज देने वाले (भरने)   सफेद रंग के सारस पक्षी से लिया  जाता है जो सावन के आने का संकेत देता है l यह प्रवासी पक्षी वर्षा-ऋतु के  आगमन पर चंबा की सुनहरी वादियों में पहुँचते हैं l यह आकाश में उमड़ते -घुमड़ते बादलों के साथ अठखेलियाँ करते हुए  अपने जोड़ों को बुलाते रहते हैं l चंबा के प्राचीन मिंजर मेले का आगाज़ कुजड़ी गायन के साथ होता है l उड़-उड़ कूजडीये…वर्ष दे दिहायडे हो …मेरे रामा जिन्देयाँ दे मेले हो .. से चंबा का ऐतिहासिक चौगान मैदान नाच उठता है l  इस गीत को कहरवा ताल में गाया जाता है l मान्यता है कि कुंजड़ी केवल मिंजर के दिनों में ही सुननी चाहिए l

चंबा हिमाचल का सबसे प्राचीन नगर है l इसकी स्थापना 920 ईस्वी में  राजा शैल बर्मन ने की थी l अनेक वर्षों तक चंबा राज्य कश्मीर का आधिपत्य स्वीकार करता रहा l बारहवीं शताब्दी में चंबा राज्य पुनः स्थापित हुआ l सांस्कृतिक सम्पदा से सम्पन्न चंबा शहर सदियों से सैलानियों के आकर्षण का केंद्र रहा है l चंबा के इस आकर्षण को मिजर मेला ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाया है l

मिंजर का यह त्यौहार प्राचीन  संस्कृति और भातृत्व का परिचायक है। यह मेला मक्की की फसल से जुडा हुआ है ! मक्की की फसल बाली जिसे मिन्ज़र कहा जाता है के निकलने पर मेला शुरू होता है !  इस इस मेले की शुरुआत दसवीं शताब्दी पूर्व हुईl कहते हैं कि रावी नदी के दाईं तरफ चम्पावती मंदिर का पुजारी हरिराय मंदिर की सैर को रोज नदी में तैर कर जाता था ! एक बार लोगो ने राजा से निवेदन किया की ऐसी व्यवस्था की जाए की लोग भी आसानी से हरिराय मंदिर जा सके ! इसके लिए पुजारी ने राजा की आज्ञा से बनारस के ब्राहमणों के सहयोग से चम्पावती मंदिर में सात दिन का यज्ञ किया और नदी ने अपना रुख ही इसके बाद बदल दिया ! पुजारी ने सात रंगों की डोरी बनाई जिसका नाम मिन्ज़र रखा गया ! एक अन्य कथा के  अनुसार राजा साहिल वर्मन पडोसी राज्य पर विजय हासिल कर वापस अपने राज्य लोटे तो नाल्होरा स्थान पर जनता ने मक्की की मिन्ज़रों को भेंट कर इनका स्वागत कियाl  मिंजर के दिन बहने अपने भाइयों को भी मिंजर बांध कर रक्षा पर्व मनाती हैं l  सात दिनों तक चलने वाले इस मेले का शुभारम्भ मिर्ज़ा साफीबेग के परिवार द्वारा रघुनाथ जी और लक्ष्मीनारायण को मिंजर भेंट करके होता है l

मिन्ज़र का विसर्जन शोभायात्रा के साथ होता है ! यह शोभायात्रा चम्बा के राजा के महल अखंड चंडी महल से शुरू होती है ! भगवन रघुवीर और अन्य देवी देवता पालकी में बेठ कर महल से बहार आ कर यात्रा में शामिल होते है ! रावी नदी में मिन्ज़र का विसर्जन किया जाता है ! मेला प्राचीन संस्कृति वैभव धार्मिक प्रेम भावः का परिचायक है ! अपने रिश्तेदारों मित्रों को फल मिठाई भेट की जाती है तथा अच्छी फसल की  कामना  भी की  जाती है !  चंबा से  विभाजन के बाद पकिस्तान चले जाने वाला मिर्ज़ा परिवार अभी भी मिंजर का त्यौहार मनाता है l  एक सप्ताह तक चलने वाले मिंजर के दौरान चौगान में मेला समिति द्वारा भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित कर मेले में आये लोगों का मनोरंजन किया जाता है।

(सतीश धर हिंदी साहित्य के जाने-माने लेखक एवं कवि हैं। हिमाचल से ताल्लुक रखने वाले सतीश धर की अनेकों कृतियां हिमाचल की संस्कृति के संदर्भ में अलग-अलग पत्र -पत्रिकाओं में छपती रही हैं। )