मंडी: मुंबई की आर्किटेक्ट संस्थाओं ने पांगणा के दुर्ग और मंदिर के डाकुमैंटेशन का कार्य किया पूरा है। आर्किटेक्ट स्वप्निल शशिकांत भोले ने पांगणा के किले और मंदिर के डाकुमैंटेशन के कार्य की प्रतियां पुरातत्व चेतना संघ मंडी द्वारा स्वर्गीय चंद्रमणी कश्यप पुरातत्व चेतना सम्मान से सम्मानित डाक्टर जगदीश शर्मा को भेंट की है।
भविष्य में इसकी प्रतियां महामाया मंदिर समिति पांगणा, निदेशक भाषा कला संस्कृति विभाग हिमाचल प्रदेश और मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश को भी सौंपी जाएंगी। ताकि इस अमूल्य धरोहर का संरक्षण हो सके। पांगणा का दुर्ग/मंदिर भारतीय संस्कृति की अमूल्य कलात्मक धरोहर है। इस गौरवपूर्ण धरोहर के निर्माण में 765 ईश्वी में सुकेत संस्थापक राजा वीरसेन का योगदान रहा है। यह हिमाचल प्रदेश ही नहीं अपितु भारत का सबसे पुराना ऐसा छह मंजिला भवन है जिसका आज तक जीर्णोद्धार नहीं हुआ है। जब सुकेत राज्य की स्थाई राजधानी पांगणा थी तो यह रनिवास था।
राजा वीरसेन ने रानी चम्पकवती की संतान की मन्नत पूरी होने के बाद काठकुणी शैली के इस भवन की छठी मंजिल पर सुकेत अधिष्ठात्री राज-राजेश्वरी की स्थापना की। 1270 ईश्वी में राजा मदनसेन ने स्वप्नावस्था में देवी के निदेशानुसार राजधानी को बल्ह के लोहारा स्थानांतरित करने के साथ इस भवन को पूर्णत: मंदिर का स्वरुप प्रदान कर दिया। 2003 में मुंबई का रहने वाला आर्किटेक्ट स्वप्निल शशिकांत भोले नामक युवक एक पर्यटक के रुप में पांगणा आया। उसके मन में इस कलात्मक धरोहर का सूक्ष्म अध्ययन करने का विचार आया। फिर विवाह के बाद उसने यह धरोहर अपनी आर्किटेक्ट पत्नी प्रोफेसर नेहा राजे भोले को दिखाई।
आर्किटेक्ट नेहा भी इस भवन की शैली को देख कर आश्चर्यचकित रह गई। अध्ययन के आधार पर 2021 में मुंबई की सराहन संस्था की प्रमुख आर्किटेक्ट नेहाराजे भोले और मुंबई की ही आईईएआर संस्था की प्रमुख आर्किटेक्ट डॉक्टर रोशनी व अन्य आर्किटेक्ट विशेषज्ञ अध्ययन के लिए पांगणा चले आए।
मई 2022 में दोनो संस्थाओं के नौ सदस्यीय दल ने पुन: पांगणा आकर महामाया मंदिर समिति और पांगणा वासियों के सहयोग से इस भवन व गांव के धरोहर भवनों का अध्ययन किया तथा निरंतर 10 दिनों तक बहुत बारीकी से इसकी डाकुमैंटेशन, ड्राइंग, फोटोग्राफी व कच्चे-पक्के घरों के तापमान का सूक्ष्म अध्ययन भी किया तथा मुंबई लौटकर इस कलात्मक धरोहर का एक ऐसा नक्शा तैयार किया कि यदि भविष्य में प्राकृतिक आपदा से यदि इस धरोहर को किसी तरह की कोई क्षति हो जाए तो हूबहू इसी तरह का दुर्ग/मंदिर बनाया जा सके। यदि समय रहते इस दुर्ग/मंदिर की ओर सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो यह धरोहर नष्ट हो जाएगी। जिससे होने वाली क्षति को पूरा करना असंभव होगा।