<p>न्यूजीलैंड के विशेषज्ञों ने हमीरपुर के बागबानों को नींबू प्रजाति के फलों के बेहतर पैदावार करने के टिप्स दिए। मंगलवार को भूंपल में आयोजित कार्यशाला में न्यूजीलैंड से आए सब ट्रॉपिकल विशेषज्ञ एग्बरटो सोतो ने आम, लीची, अमरूद और नींबू प्रजातीय फलों के बेहतर पैदाबार और उनके वैज्ञानिक प्रबंधन को लेकर जिला के बागवानी अधिकारियों के साथ बागवानों की समस्याओं के विषय में विस्तार से चर्चा की गई।</p>
<p>गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश बागवानी विकास परियोजना के तहत प्रदेश के सब ट्रॉपिकल इलाकों में पैदा होने वाले फलों को लेकर न्यूजीलैंड की विशेषज्ञ इन दिनों हिमाचल के मैदानी इलाकों के दौरे पर हैं। विश्व बैंक पोषित हिमाचल प्रदेश बागवानी विकास परियोजना के अंतर्गत टेम्परेट फलों की तरह आम, लीची, अमरूद और नींबू प्रजातिय फलों को भी वैज्ञानिक तौर पर प्रबंधन कर सघन बागवानी के तहत लाया जा रहा है। प्रदेश में सघंन बागवानी के अंतर्गत विश्वस्तरीय तकनीक को बढ़ावा देने के लिए न्यूजीलैंड के साथ पहले ही करार किया गया है। सेब, चेरी, नाशपाती, आडू, खुमानी तथा पलम के वैज्ञानिक प्रबंधन की जानकारी न्यूजीलैंड के विशेषज्ञों का दल पहले चरण में ही सांझा कर चुका है।</p>
<p>बिलासपुर से शुरू हुए दूसरे चरण के बाद मंडी जिले से होते हुए विशेषज्ञ का दल मंगलवार को हमीरपुर पहुंचा है। इस कार्यशाला में सब ट्रॉपिकल विशेषज्ञ ने कहा कि आम और लीची जैसे फलों के लिए अधिक पानी की जरूरत होती है लेकिन, इनके मुकाबले नीबू प्रजाति के फल ऐसे हैं जो सूखे में भी सफल हुए हैं।</p>
<p><span style=”color:#c0392b”><strong>नाइट्रोजन की अधिक मात्रा फलदार पौधों के लिए हानिकारक </strong></span></p>
<p>बागवानी विभाग के तकनीकी अधिकारियों के साथ वैज्ञानिक पद्धति को सांझा करते हुए सोतो ने कहा कि नींबू प्रजातीय फलों को माइक्रो न्यूट्रिएंट्स में विशेषता बोरोन की ज्यादा जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि बोरोन की कमी के कारण अच्छी और बढिय़ा किस्म की फल पैदावार नहीं होगी। उन्होंने वैज्ञानिकों के साथ इस बात को भी सांझा किया कि अगर पौधों में नाइट्रोजन की मात्रा अधिक होगी तो भी फल पौधों के लिए हानिकारक साबित होगा। </p>
<p>सोतो ने कहा कि ज्यादा नाइट्रोजन मेल-फीमेल फूलों के अनुपात को प्रभावित करेगा। उन्होंने कहा कि इस स्थिति में मेल फूल ज्यादा होंगे। लेकिन, फीमेल फूल कम लगने के कारण फल उत्पादन नहीं होगा। उन्होंने कहा कि आमतौर पर किसान फूलों को देखने के बाद इस बात को लेकर अचंभित रहता है कि फल क्यों नहीं लगे। विज्ञान की भाषा में इसकी बजह बागवानों को समझाई जा सकती है।</p>
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