अब कहीं पर भी बाढ़ आने की समय पर भविष्यवाणी संभव होगी और इस खोज से देश में बरसात के दिनों में मचने वाले जलप्रलय से समय रहते बचाव संभव हो सकेगा। बाकायदा इसके लिए हिमाचल प्रदेश की एनआईटी हमीरपुर, एनआईटी उत्तराखंड और इसरो के उपक्रम इंडियन इंस्टीट्यूट रिमोट सेसिंग (आईआईआरएस) के विशेषज्ञों की मेहनत रंग लाई तो बाढ़ की सटीक भविष्यवाणी होगी।
बाढ़ से मचने वाले जलप्रलय से बचाव के लिए इस प्रोजेक्ट पर एनआईटी हमीरपुर और आईआईआरएस के विशेषज्ञ जुटे हैं। जियोग्राफिकल सिस्टम, जीआईएस तकनीक पर आधारित इस शोध कार्य में रेन गेज बारिश मापने का यंत्र और कंक्रीट वेयर को इस्तेमाल किया जाएगा। वहीं, आगामी तीन वर्ष तक चलने वाले इस शोध कार्य पर इसरो 30 लाख रुपये खर्च कर रहा है ।
एनआईटी हमीरपुर के सिविल विभाग के प्रोफेसर विजय शंकर ने बताया कि हिमाचल प्रदेश की ब्यास और उत्तराखंड की भागीरथी नदी की सहायक नदियों पर इस शोध को शुरू कर दिया गया है। इस शोध में इन नदियों पर चल रहे हाइड्रो प्रोजेक्ट प्रबंधन की मदद ली जा रही है और प्रोजेक्ट से स्थापना के वक्त किए गए सर्वे के आंकड़े भी जुटाए जाएंगे। इन आंकड़ों से वर्तमान शोध में निकले आंकड़ों की तुलनात्मक स्टडी संभव होगी। तीन वर्ष तक चलने वाले इस शोध कार्य पर इसरो 30 लाख रुपये खर्च कर रहा है।
विजयं शंकर ने बताया कि इस प्रोजेक्ट में उम्मीदों के मुताबिक सार्थक नतीजे निकल कर आते हैं तो बाढ़ की भविष्यवाणी का सिस्टम आगामी 30 वर्षों तक कारगर साबित होगा। उन्होंने बताया कि इसरो के उपक्रम इंडियन इंस्टीट्यूट रिमोट सेसिंग के वैज्ञानिक डॉ प्रवीण ठाकुर के साथ कुछ समय पहले इसरो को यह आइडिया शोध के लिए सबमिट किया था तमाम विचार विमर्शों के बाद इसरो ने इस प्रोजेक्ट को मंजूरी प्रदान की।
गौरतलब है कि इस स्टडी के तहत ब्यास नदी और सहायक नदियों पर हिमाचल के तीन जिलों कुल्लू, मंडी और हमीरपुर में जीआईएस तकनीक विभिन्न कैचमेंट की मॉडलिंग की जाएगी। इस तकनीक के तहत की सहायक नदियों पर बारिश मापने के यंत्र रेन गेज और नदियों के बहाव को मापने के कंक्रीट वेयर स्थापित किए गए हैं। हिमाचल में ब्यास नदी पर यह शोध चलाया जा रहा है, ब्यास नदी और इसकी 12 सहायक नदियों पर यह शोध किया जाएगा। मंडी में ब्यास और सुकेती नदी के संगम स्थल समेत लगभग 12 स्थानों पर यह स्टडी शुरू हो गई है।
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