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प्रदेश से हट के है लाहौल स्पीति का मिजाज

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लाहौल जिसे प्रकृति का आशीर्वाद प्राप्त है और चंद्रा और भागा नदियों द्वारा पोषित किया गया है, वहीं दूसरी ओर स्पीति एक ठंडे रेगिस्तान की तरह है. यहां घाटियां, ट्रैकिंग क्षेत्र और कुछ बहुत प्रसिद्ध मठ हैं.

आइए आपको ले चलते है हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति की ओर… यह प्रदेश में एक उभरता हुआ पर्यटन स्थल है. जिसमें सुंदर नजारे और बौद्ध, हिंदू धर्म का दिलचस्प मिश्रण है. इस जिला में दो घाटियां हैं. जो हर चीज में एक दूसरे से बिल्कुल अलग हैं.

लाहौल स्पीति दो घाटियों से मिलकर बनी हैं. और जो कुंजुम दर्रे के माध्यम से एक दूसरे से कट जाती हैं. दोनों घाटियों की विशेषताएं एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं, लाहौल…, स्पीति की तुलना में अधिक हरा-भरा है, जो पहाड़ी रेगिस्तान है और बंजर है। जिले का प्रशासनिक केंद्र केलोंग है। यह जिला अपनी प्राकृतिक सुंदरता और गहरी घाटियों के लिए जाना जाता है। इसके अलावा यह बौद्ध मंत्रालयों के लिए भी जाना जाता है जो पूरे राज्य में फैले हुए हैं। कुछ मठ 1000 साल से अधिक पुराने हैं जैसे ताबो मठ जिसकी स्थापना 996 ईस्वी में हुई थी और गंधोला मठ जो 8वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व का है। इस क्षेत्र के कुछ अन्य प्रसिद्ध मठ हैं गंधोला मठ, धनकर गोम्पा और की मठ।

लाहौल स्पीति में प्रसिद्ध स्थान जहां हजारों की तादाद में लोग घूमने आते हैये स्थान केलोंग, तांदी, खोकसर, गोंधला, जिस्पा, उदयपुर, दारचा, काजा, धनकर, स्पीति, कुंजुम या कुंजम दर्रा, लोसर, किब्बर गांव है और यहां के प्रसिद्ध मंदिर- त्रिलोकीनाथ मंदिर, मृकुला देवी मंदिर है. लाहौल स्पीति की झीलें- चंद्र ताल झील, सुराल ताल झील, दशीर झील है. वहीं यहां के प्रसिद्ध मेले, लदारचा मेला, पौडी मेला, केलांग में जनजातीय मेला, त्शेशु मेला है. इस जिला में प्रकाश का त्योहार यानि जो दिवाली के समान है फागली महोत्सव, गोची या गोथसी बड़े ही धूम धाम से मनाएं जाते है.

वहीं स्पीति घाटी के लोग केवल तिब्बती भाषा बोलते हैं जबकि लाहौल घाटी में तीन बोलियाँ बोली जाती हैं। चंद्र भागा घाटी में बुआन बोली जाती है। चंद्रा घाटी में तिनान और मंचट चंद्र भागा घाटी में थिरोट तक बोली जाती है।