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पद्मश्री बलवंत ठाकुर ने एपीजी विश्वविद्यालय के छात्रों को पढ़ाया कलाकार बनने का पाठ

<p>जब हम विपतियों का सामना करते हैं तो हम अक्सर उन महान लोगों की ओर रुख करते हैं जिन्होंने हमें सिखाया है कि विपरीत परिस्थितियों से कैसे पर पाया जाए। चाहे वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा हमारे लिए नेतृत्व स्थापित करना हो या बलवंत ठाकुर जैसे प्रख्यात कलाकारों द्वारा दिए गए व्यख्यान को सुनना हो। हम ऐसे समय में रह रहे हैं जब हम सभी बलवंत ठाकुर जैसी हस्ती से प्रेरणा लेकर कुछ नया करने का संकल्प लें।</p>

<p>सोमवार को पदमश्री बलवंत ठाकुर ने एपीजी शिमला विश्वविद्यालय और वेंकटेश्वर ओपन विश्वविद्यालय की ओर से थिएटर, कला और संस्कृति से जुड़े अनेकों पहलुओं पर प्रकाश डालने के लिए व्यख्यान सीरीज के तहत वेबिनार में शिरकत कर कार्यक्रम की शोभा को बढ़ाया। एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. रमेश चौहान और वेंकटेश्वर ओपन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. आर.के. चौधरी ने अतिथि-स्वागत उध्बोधन में बलवंत ठाकुर का धन्यवाद किया और उन्हें रंगमंच का जादुई पुरुष से नवाज़ा। &nbsp;</p>

<p>उन्होंने कहा कि यह पल दोनों विश्वविद्यालयों के छात्रों, शिक्षकों के लिए प्रेरणास्रोत है और युवाओं को थिएटर में नए नवाचार करने की प्रेरणा मिलेगी। इस वेबिनार में प्रसिद्ध लेखक, कहानीकार व थिएटर कलाकार और पूर्व भारतीय प्रशासनिक&nbsp; सेवा अधिकारी एस.एन. जोशी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की जबकि वरिष्ठ पत्रकार डॉ. अश्वनी शर्मा ने कार्यक्रम का समन्वयन किया। वेबिनार में एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के छात्रों, शिक्षकों और थिएटर व कला से जुड़े कई लोगों ने पदमश्री बलवंत ठाकुर के संघर्ष की कहानी से प्रेरणा ली कि किस तरह वह अपने ग्राम जम्मू की मिट्टी में पला-पड़ा और लोकल संस्कृति व कला को थिएटर के माध्यम से भारतीय संस्कृति व कला को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दी।</p>

<p>बलवंत ठाकुर एक भारतीय रंगमंच व्यक्तित्व और विद्वान हैं जिन्हें डोगरी थिएटर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लाने के लिए जाना जाता है। थिएटर व रंगमंच के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा 2013 में चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पदमश्री से सम्मानित किया गया। डॉ. अश्वनी शर्मा और एस. एन. जोशी ने बलवंत ठाकुर का परिचय करवाते हुए बताया कि युवाओं को अपने देश की संस्कृति, कला और भाषा को संवारने के लिए बलवंत ठाकुर जैसे कलाकार व रचनाकार से प्रेरणा लेकर थिएटर को अपनी संस्कृति, कला व परंपराओं से जोड़ना चाहिए और इसमें करियर तलाशने के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए। बलवंत ठाकुर ने छात्रों व वेबिनार में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि थिएटर व रंगमंच उतनी पुरानी विधा है जितनी पुरानी मनावसभ्यता है।</p>

<p>उन्होंने कहा कि छात्रों के पास युवा दिमाग है जो अपने लिए जगह बनाने के लिए चीज़ों की वास्तविक योजना में शामिल होने के लिए तैयार हैं लेकिन उन्हें कुछ नया करने के लिए मार्गदर्शन व प्रेरणा की जरूरत होती है। ठाकुर ने कहा कि युवाओं के पास थिएटर सीखना, थिएटर में करियर बनाना भी एक विकल्प है परंतु इसके लिए युवाओं को अपनी संस्कृति व पारंम्परिक कलाओं को करीब से जानना होगा, परखना होगा और अपनी भाषा में अपने समाज और राष्ट्र को प्रतिबिंब करना होगा ताकि सांस्कृतिक विविधता और विकास के मूल्यों पर दूसरों को भी शिक्षित कर सकें। उन्होंने कहा कि थिएटर व रंगमंच ऐसी विधा है जो हम सभी को अधिक शांतिपूर्ण और भरोसेमंद दुनिया में रहना सिखाती है परंतु&nbsp; यह तभी संभव है जब हम अपनी संस्कृति, रीतिरिवाजों, कलाओं और अपने ग्राम व देश की मिट्टी और भाषा का समावेशकर विश्व समुदाय को हमारी संस्कृति में विकसित मानव सभ्यता का संदेश मिले। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि भारत जैसे विविध संस्कृतियों वाले देश में स्थिरता, विकास के लिए संस्कृतियों के बीच की खाई को पाटना आवश्यक है जिसे थिएटर द्वारा साझा कर एक सूत्र में पिरोकर मानव विकास&nbsp; के लिए प्रेरित किया जा सकता है।</p>

<p>उन्होंने जम्मू के डोगरी संस्कृति और हिमाचली संस्कृति का उदाहरण देते हुए कहा कि किस तरह उन्होंने हिमाचल की कहानी, चौराह, सुनो एक कहानी, महाभोज,&nbsp; बाबा जीतो, मेरे हिस्से की धूप कहाँ है जैसे अनगनित नाटकों का मंचन व निर्देशन कर अलग-अलग संस्कृति की पृष्ठभूमि रखने वाले क्षेत्रों के जीवन अभिव्यक्ति को थिएटर के माध्यम से दर्शाया और जनता को एक मजबूत&nbsp; संदेश मिला। ठाकुर ने कहा कि हम भारतीय लोग विदेशों की नकल करने लगे हैं, पर अपनी संस्कृति को भुलाने लगे हैं, फिर भी नकल को भी थिएटर द्वारा अपनी संस्कृति में ढाला जा सकता है बरश्ते है कि अंतर्वस्तु भारतीय हों, स्थानीय हों और अपने देहात देश की मिट्टी से हों जिससे अपने ग्राम, शहर और देश की खुशबू आए और यह काम एक रंगकर्मी ही कर सकता है जिसमें मानव संवेदना और अपनी भाषा व संस्कृति से कुछ सीखा है। उन्होंने कहा कि नाटक का हमारे देश में जिंदा रहना जरूरी है जिसके लिए प्रतिभाओं की देश को तलाश है। ऐस.एन. जोशी के एक सवाल के उत्तर में बलवंत ठाकुर ने बताया कि फिजिकल थिएटर द्वारा सभी प्रकार की अभिव्यक्ति की जा सकती है और ऐसी प्रतिभा विदेशी थिएटर कलाकारों के पास नहीं है। उन्होंने कहा कि थिएटर में रंग है, गाना है, लय और ताल है जिसे वही व्यक्त कर सकता है जो संस्कृति के करीब है और बच्चपन से अपनी मिट्टी और संस्कृति में रचा-बसा है। ठाकुर ने कहा कि थिएटर में बस नाटक ही नहीं बल्कि मानव जीवन की सभी विधाओं को स्थान मिलता है। डॉ. अश्वनी शर्मा के प्रश्न का उत्तर देते हुए बलवंत ठाकुर ने बताया कि नाटकों व थिएटर में दृश्य भाषा होती है जो अपने आप में विश्व की सभी भाषाओं की माध्यम के साथ मानव अभिव्यक्ति की भाषा है इसके माध्यम से विदेशी नाटकों, फिल्मों को भी भारतीय संवेदना में व्यक्त कर सकते हैं।</p>

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