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पहाड़ी फसलों को बचाएगी IIT बॉम्बे की ‘हेल गन’

<p>अब पहाड़ी राज्यों में ओले गिरने के कारण सेब, बादाम, चेरी, मशरूम समेत अन्य पहाड़ी फसलें खराब नहीं होंगी। आईआईटी बॉम्बे के वैज्ञानिकों ने पानी की बूंदों को ओले में बदलने की प्रक्रिया को रोकने की तकनीक वाली हेल गन इजात कर ली है । विज्ञानिकों का दावा है कि इसके उपयोग से अकेले सेब की फसल को हर साल होने वाला 400 से 500 करोड़ का नुकसान बच जाएगा । आईआईटी बॉम्बे के डिपार्टमेंट ऑफ एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के वैज्ञानिक</p>

<p>प्रो. सुदर्शन कुमार के मुताबिक, केंद्र सरकार के साइंस इंजीनियरिंग एंड रिसर्च बोर्ड ने साल 2019 में फसलों को ओलावृष्टि से बचाने वाली तकनीक खोजने के लिए करीब 85 लाख की लागत वाला यह प्रोजेक्ट दिया था । प्रोजेक्ट 2022 तक पूरा हो जाएगा । फिलहाल हिमाचल के डॉ वाईएस परमार यूनिवर्सटी नैणी विश्वविद्यालय के कंडाघाट स्थित रिसर्च स्टेशन में इस तकनीक का प्रयोग चल रहा है । विश्वविद्यालय की टीम यह परखेगी की यह तकनीक कितनी कारगर है ।</p>

<p><span style=”color:#e74c3c”><strong>10 लाख रुपये में लगेगी दस किलोमीटर में रहेगा असर</strong></span></p>

<p>आई आई टी बॉम्बे की हेल गन के अंदर से निकलने वाली मिसाइल पांच से 10 किलोमीटर क्षेत्र में प्रभाव पैदा करेगी , यानी इतने क्षेत्र में बादलो के अंदर ओले बनने की प्रक्रिया थम जाएगी । हेल गन को लगने समेत इस तकनीक का शुरुआती खर्च करीब 10 लाख होगा , जबकि बाद में एलपीजी गैस के ही पैसे देने होंगे।</p>

<p><span style=”color:#e74c3c”><strong>वायुमंडल में ऐसे बनते हैं ओले</strong></span></p>

<p>बादलों में अब ठंड बढ़ती है तो वायुमंडल में जमा पानी की बूंदें जमकर बर्फ का आकार ले लेती हैं। इसके बाद यह बर्फ गोले के आकार में जमीन पर गिरती है। इन्हें ही ओला कहते हैं। पहाड़ों में मार्च से मई के बीच ओलावृष्टि के चलते सभी फसलें, सब्जी और फल खराब हो जाते हैं। सेब, बादाम, बेरी, अखरोट और करीब 40 से 50 हजार रुपये प्रति किलो मूल्य वाली गुच्छी (पहाड़ी मशरूम) आदि फसलों को सबसे अधिक नुकसान होता है।</p>

<p><span style=”color:#e74c3c”><strong>मिसाइल, लड़ाकू विमान चलाने वाली तकनीक का प्रयोग</strong></span></p>

<p>आईआईटी बॉम्बे के वैज्ञानिकों ने अपनी &#39;हेल गन&#39; में मिसाइल और लड़ाकू विमान चलाने वाली तकनीक का प्रयोग किया है। हवाई जहाज के मैस टरबाइन इंजन और मिसाइल के रॉकिट इंजन की तर्ज पर इस तकनीक में प्लस डेटोनेशन इंजन का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें एलपीजी और हया के मिश्रण को हल्के विस्फोट के साथ दाया जाता है। इस हल्के विस्फोट से एक शॉक बैध (आधात तरंग) तैयार होती है। यह शॉक वेध ही हेल गन&#39; के माध्यम में वायुमंडल में जाती है और बादलों के अंदर का स्थानीय तापमान बढ़ा देती है। इससे ओला बनने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है।</p>

<p><img src=”/media/gallery/images/image(8453).jpeg” style=”height:570px; width:341px” /></p>

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