हिमाचल

18 चुनाव लड़े…खुद की पार्टी बनाई, क्यों नहीं बन पाए सीएम? पं. सुखराम का सफर

पं. सुखराम का सफर
95 वर्ष की आयु में दुनिया छोड़ने वाले पंडित सुखराम की शुरूआत बतौर सरकारी कर्मचारी हुई। उन्होंने 1953 में नगर पालिका मंडी में बतौर सचिव अपनी सेवाएं दी। इसके बाद 1962 में मंडी सदर से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीते। 1967 में इन्हें कांग्रेस पार्टी का टिकट मिला और फिर से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद पंडित सुखराम ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने मंडी सदर विधानसभा क्षेत्र से 13 बार चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। पंडित सुखराम ने कभी विधानसभा चुनावों में हार का मुहं नहीं देखा। केंद्र में उनकी जरूरत महसूस होने पर उन्हें लोकसभा का टिकट भी दिया गया।

वह लोकसभा का चुनाव भी जीते और केंद्र में विभिन्न मंत्रालयों का कार्यभार संभाला। 1984 में सुखराम ने कांग्रेस पार्टी के टिकट पर पहला लोकसभा चुनाव लड़ा और प्रचंड बहुमत के साथ संसद पहुंचे। 1989 के लोकसभा चुनावों में उन्हें भाजपा के महेश्वर सिंह से हार का सामना करना पड़ा। 1991 के लोकसभा चुनावों में सुखराम ने महेश्वर सिंह को हराकर फिर से संसद में कदम रखा। 1996 में सुखराम फिर से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। 1998 में पंडित सुखराम पर आय से अधिक संपति मामले को लेकर सीबीआई ने छापे डाले थे। इसके बाद पंडित सुखराम को कांग्रेस पार्टी से निकाल दिया गया।

उन्होंने अपनी खुद की पार्टी बनाई, जिसका नाम दिया था ’’हिमाचल विकास कांग्रेस’’। इस पार्टी ने पूरे प्रदेश में विधानसभा का चुनाव लड़ा और पांच सीटों पर जीत हासिल की। 1998 में प्रदेश में गठबंधन की सरकार बनी और पंडित सुखराम की हिविकां ने भाजपा को समर्थन देकर प्रेम कुमार धूमल को पहली बार मुख्यमंत्री बनाने में योगदान दिया। 1998 में ही उनकी पार्टी ने लोकसभा का चुनाव भी लड़ा, जिसमें शिमला सीट पर कर्नल धनीराम शांडिल ने जीत हासिल की थी। पंडित सुखराम ने 2003 में अपना आखिरी विधानसभा का चुनाव लड़ा और फिर 2007 में सक्रिय राजनीति से सन्यास लेेकर अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे अनिल शर्मा को सौंप दी। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों के दौरान सुखराम का सारा परिवार भाजपा में शामिल हो गया। कारण बताया गया कांग्रेस पार्टी में हुआ अपमान।

हालांकि भाजपा की सदस्यता सिर्फ अनिल शर्मा ने ही ली जबकि बाकी परिवार पार्टी के लिए ऐसे ही काम करता रहा। पंडित सुखराम ने मंडी जिला की कुछ सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों के लिए प्रचार भी किया और वोट भी मांगे। मंडी जिला की 10 में से 9 सीटों पर भाजपा को जीत मिली और यहां से कांग्रेस का सफाया हो गया। अनिल शर्मा भारी मतों से जीतकर विधानसभा पहुंचे और उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया। 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए सुखराम के पोते आश्रय शर्मा ने भाजपा से टिकट के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा दिया, लेकिन भाजपा ने मौजूदा सांसद को ही टिकट दिया। इससे खफा होकर पंडित सुखराम दोबारा से अपने पोते संग कांग्रेस में शामिल हो गए।

संचार क्रांति के मसीहा
बतौर लोकसभा सदस्य पंडित सुखराम ने दूर संचार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में अपना आखिरी कार्यकाल देखा। इस दौरान पंडित सुखराम ने प्रदेश सहित देश भर में जो संचार क्रांति लाई आज भी उसका जिक्र होता है। आज लोगों के हाथ में जो मोबाईल फोन है उसे अगर पंडित सुखराम की देन कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा। पंडित सुखराम को एक तरह से संचार क्रांति का मसीहा माना गया। हिमाचल प्रदेश में उन्हें संचार क्रांति के मसीहा के नाम से ही पुकारते हैं। उन्होंने संचार राज्य मंत्री रहते हिमाचल प्रदेश में वो संचार क्रांति ला दी थी जो शायद प्रदेश के भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए बहुत देर से पहुंचती।

18 चुनाव लड़े, 2 बार हुई हार
पंडित सुखराम ने अपने राजनैतिक जीवन में 18 बार चुनाव लड़े। इनके नाम एक रिकार्ड दर्ज है। यह कभी भी विधानसभा का चुनाव नहीं हारे। मंडी सदर सीट पर इनके परिवार का आज तक एकछत्र राज चल रहा है। यहां से 13 बार खुद चुनाव लड़ा और जीता जबकि बेटा चौथी बार यहां से विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचा हैं। सुखराम ने लोकसभा के पांच चुनाव लड़े जिनमें से 2 बार हार हुई। देश या प्रदेश में चाहे किसी भी राजनैतिक दल की लहर चली हो, इनका परिवार कभी विधानसभा का चुनाव नहीं हारा। मौके की नजाकत को भांपना और समय रहते निर्णय लेना पंडित सुखराम की खासियत रही और शायद यही कारण है कि इन्हें राजनीति का चाणक्य कहा गया।

कभी नहीं पहुंच पाए सीएम की कुर्सी तक
पंडित सुखराम हिमाचल प्रदेश के सीएम बनना चाहते थे लेकिन यह संभव नहीं हो सका। इस बात को लेकर उनका हमेशा सीएम वीरभद्र सिंह के साथ 36 का आंकड़ा रहा। पंडित सुखराम की वरिष्ठता को पार्टी ने हमेशा नजरअंदाज किया और इस बात की टीस उनमें हमेशा रही। यही कारण था कि पंडित सुखराम ने अपना एक अलग दल बना दिया था, लेकिन उसके दम पर भी वह सीएम की कुर्सी तक नहीं पहुंच सके।

Balkrishan Singh

Recent Posts

जीपीएस की गलती बनी जानलेवा: कार नदी में गिरी, तीन की मौत

Bareilly GPS Navigation Acciden: बरेली में  एक दर्दनाक सड़क हादसे में तीन लोगों की मौत…

5 hours ago

एनसीसी स्थापना दिवस पर मंडी में रक्तदान शिविर, 50 कैडेटों ने दिखाया उत्साह

NCC Raising Day Blood Donation Camp: एनसीसी एयर विंग और आर्मी विंग ने रविवार को…

6 hours ago

यहां पढ़ने वाले पिछले 65 साल में हर क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ रहे:धर्माणी

Sundernagar Polytechnic Alumni Meet: मंडी जिले के सुंदरनगर स्थित राजकीय बहुतकनीकी संस्थान में रविवार को…

6 hours ago

हिमाचल में सहकारिता क्षेत्र में महिलाओं के आरक्षण पर विचार कर रही सरकार: मुकेश अग्निहोत्री

Himachal Cooperative Sector Development: मंडी जिले के तरोट गांव में आयोजित हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी…

7 hours ago

जीवन में अनुशासन और समय का सदुपयोग जरूरी: पंकज शर्मा

NSS Camp Day 6 Highlights.: धर्मशाला के राजकीय छात्र वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला में चल रहे…

7 hours ago

राधास्वामी सत्संग अस्पताल की भूमि के लिए ऑर्डिनेंस लाएगी सुक्खू सरकार

Bhota Hospital Land Transfer: हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार राधास्वामी सत्संग व्यास अस्पताल भोटा की…

9 hours ago