जिला चंबा के जनजातीय क्षेत्र पांगी घाटी में 12 दिवसीय जुकारू उत्सव के पर्व पर 10वें दिन दशालू मेले का आयोजन किया गया। दशालू मेला पांगी घाटी के चार पंचायतों में मनाया जाता है। जिनमें मिंधल, पुर्थी पंचायत के थांदल गांव, रेई पंचायत व शौर पंचायत में यह मेला मनाया जाता है।
सोमवार यानि आज भारी बर्फबारी के बीच लोगों में काफी उत्साह देखने को मिला। पांगी घाटी में मौजूदा समय में एक फीट के करीब बर्फबारी हुई है। लेकिन इसके बावजूद भी लोगों की आस्था कम नहीं हुई।
क्या है दशालू मेले का इतिहास
इस दिन गांव वासियों ने अपने-अपने घरों में लाल मिट्टी से लिपाई-पुताई करते है उसके बाद अपने कुल देवी के लिए भोग तैयार करके मंदिर जाते है। मंदिर में पूजा अर्चना के बाद ढोल-नगाड़े के साथ पवित्र पंडाल में मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में विशेष बात है कि दसवें दिन मिंधल माता मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
इस दिन मिंधल माता के मंदिर में चमत्कार देखने को मिलता है। दसालू मेले के दिन मां मिंधल वासनी ठाठडी (चेला) बर्फ के गोले से मंदिर का कपाट खोला है। मिंधल गांव के इस दसालू मेले के दिन घर का मुख्य सदस्य व गांव वासी मिलकर हाथों में पवित्र पुष्प (जेब्रा) लेकर मेना पंडाल पहुंचते है। जहां पर सर्व प्रथम विश्व कल्याण के लिए पूजा अर्चना की जाती है।
जिसमें बाद मिंधल माता का ठाठड़ी यानी चेला मंदिर से सुई लेने जाता है। हालांकि मिंधल गांव में इस मेले के दिन सूई लेने से पहले बलि प्रथा देने का भी रिवाज था, लेकिन सरकार के आदेशों के बाद अब इस मेले के दिन केवल नारियल व अन्य सामग्री चढ़ाई जाती है। इस मेले को देखने के लिए घाटी के विभिन्न पंचायतों से लोग आते है।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस मेले के दिन मिंधल माता का मुख्य ठाठड़ी सुबह करीब 27 किलोमीटर पैदल चलकर मिंधल गांव पहुंचता है। इसका मुख्य कारण यह है कि मिंधल माता का मुख्य चेला यानि ठाठड़ी किलाड़ के थमोह निवासी करतार सिंह है, जिसे नवालू व दशालू मनाने के दिन अपने घर में पूजा अर्चना करने के बाद मिंधल माता मंदिर के चुन्नी लगाकर व चोणू लगाकर मिंधल मंदिर पहुंचना पड़ता है।
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