पांडव काल से समय से जुडे ऐतिहासिक गसोता महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि पर्व के लिए तैयारियां जोरों से की जा रही है. गसोता महादेव मंदिर परिसर को सजाने के लिए बैंगलुरू से टनों के हिसाब से मंगवाए गए स्पेशल फूलों से सजावट की जा रही है.
महाशिवरात्रि पर्व पर हर साल ही मंदिर परिसर में पूरे हिमाचल से श्रद्वालु आते है. बता दे कि पांडव काल से स्वयं भू शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही भक्तों के दुख कष्ट दूर होते है. मान्यता है कि गसोता महादेव मंदिर में स्वयं भू शिवलिंग में पूजा अर्चना करने के साथ एक लोटा जलाभिषेक करने से मन की मुराद पूरी होती है. कहा जाता है कि पांडव काल में गसोता महादेव मंदिर में पांडवों में कुछ समय बिताया था.
मंदिर के महंत राघवा नंद गिरि महाराज ने बताया कि महाशिवरात्रि पर्व के लिए विशेष तैयारियां की जा रही है और फूलों को बाहर से मंगवाया गया है. 18 फरवरी को शिवरात्रि पर्व के दिन हिमाचल, पंजाब व हरियाणा से भक्त पहुंचते है. मंदिर में एक लोटा जल चढाने से हर कष्ट से मुक्ति मिलती है. हजारों वर्ष पुराने मंदिर के प्रति लोगों की अपार आस्था है.
राघवानंद गिरी महाराज ने बताया कि हल जोतते समय पिंडी टकराई थी और तीन जगहों पर धाराएं बही थी. गाथाओं के अनुसार किसान और बैल दोनों अंधे हो गए थे. जब लोग वहा पहुंचे तो सभी लोगों ने प्रार्थना की. जिससे किसान व बैल को ज्योति आई. इसके बाद महादेव पूजन के साथ पालकी में पिंडी को रखा गया लेकिन विश्राम के लिए गसोता में रूके थे. जहां से दोबारा पिंडी नहीं उठाई जा सकी.
वहीं, स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि गसोता महादेव मंदिर की हजारों साल पुरानी गाथाए है. जिसमें हल जोतते समय बडी पिंडी मिली और हल से खंडित होने पर गसोता में रखा गया. लेकिन विश्राम करने के बाद पिंडी को उठाया नहीं जा सका था और इसे इसी स्थान पर स्थापित किया गया था.