<p>हिमाचल प्रदेश का जिला सिरमौर अपने अंदर अनेक बेहद पुरानी और पारंपरिक धरोहरे संजोय हुए है, फिर चाहे वो सिरमौरी पारम्परिक वाध्य यंत्र हो, बर्तन हो या फिर प्राचीन पोशाकें हों। यह सब सिरमौरी प्राचीन समृद्ध संस्कृति को अपने अन्दर संजोय हुए हैं। ऐसी ही सिरमौरी परिधान और एक शस्त्र को अब जिला सिरमौर प्रशाशन पेटेंट करवाने जा रहा है। ताकि जिला की इस पहचान को प्रदेश समेत देश में भी अलग पहचान मिल सके और साथ ही इनका निर्माण करने वाले स्थानीय कारीगरों को रोजगार भी मिल सके।</p>
<p>दरअसल लोईया सिरमौर जिला के ट्रांसगिरि क्षेत्र की पहचान और पारम्परिक वेशभूषा है जिसे विशेषकर सर्दियों के दौरान सिरमौर क्षेत्र के लोग बड़े शौक के साथ पहनते हैं। सिरमौर जिला के लोग बदलते परिवेश के बावजूद भी भेड़-बकरियों का पालन करके उनकी ऊन को विशेषकर सर्दियों के मौसम में ऊन की पटटी तैयार करके लोईया का निर्माण करते हैं।</p>
<p>वंही डांगरा एक ऐसा अस्त्र-शस्त्र है जो आत्मरक्षा के साथ-साथ घरेलू कामों विशेषकर पशुओं के लिए चारा काटने में भी इस्तेमाल किया जाता है। डांगरे को भगवान परशुराम के कुल्हाड़े का प्रतीक भी माना जाता है। डांगरा गिरीपार क्षेत्र में लोग कालान्तर में युद्धकाल और वर्तमान में ठोडा खेल के दौरान लोग हाथ में लेकर नृत्य भी करते हैं।</p>
<p>उपायुक्त सिरमौर ललित जैन ने कहा कि लोइया और डांगरा को पेटेंट करवाने के लिए उद्योग विभाग के माध्यम से प्रक्रिया आरंभ कर दी गई है। उन्होने कहा कि लोईया और डांगरा को पेटेंट करवाने के लिए हिमकोस्ट के साथ पत्राचार आंरभ कर दिया गया है और हिमकोस्ट को लोईया और डांगरा के परम्परागत और मौलिकता के बारे जानकारी भी उपलब्ध करवाई जा रही है। जल्द ही पेटेंट करवाने की यह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी।</p>
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