हिमाचल भाजपा में बगावत के सुर! धवाला बोले- जल्द होगा बड़ा धमाका

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Himachal Pradesh politics: हिमाचल प्रदेश में भाजपा के भीतर उथल-पुथल मचने के संकेत मिल रहे हैं। इसकी वजह कांग्रेस के छह बागी और तीन पूर्व निर्दलीय विधायकों की भाजपा में एंट्री मानी जा रही है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री रमेश चंद धवाला ने  कहा है कि वह भाजपा के नाराज नेताओं के साथ बैठक करेंगे और जल्द ही बड़ा राजनीतिक धमाका करेंगे।

धवाला ने शुक्रवार को देहरा में एक अहम बैठक बुलाई है, जिसमें पार्टी कार्यकर्ताओं से चर्चा के बाद प्रदेशभर में दौरा करने का फैसला लिया जाएगा। इस दौरान वह भाजपा के हाशिए पर चल रहे नेताओं से संवाद करेंगे और संभावित तीसरे मोर्चे के गठन पर विचार करेंगे। सूत्रों के अनुसार, धवाला की नजर पूर्व मंत्री वीरेंद्र कंवर, डॉ. रामलाल मारकंडा, पूर्व सांसद कृपाल परमार, पूर्व विधायक बलदेव शर्मा, तेजवंत नेगी और प्रवीण शर्मा जैसे नेताओं पर है।

2022 के बागियों से भी चर्चा


धवाला प्रदेशभर में भाजपा के उन नेताओं से संपर्क साधेंगे जिन्होंने 2022 विधानसभा चुनाव में पार्टी के खिलाफ बगावत की थी। उस समय भाजपा के 21 बागियों ने पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ा था, जिससे पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा था।

धूमल गुट के नाराज नेताओं पर भी नजर


धवाला की योजना पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल गुट के नेताओं को भी साधने की है, क्योंकि यह गुट पिछले सात-आठ साल से पार्टी में खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा है। उन्होंने दावा किया है कि वह इन नेताओं को एक मंच पर लाने का प्रयास करेंगे।

धवाला की नाराजगी की वजह


रमेश धवाला की नाराजगी की एक बड़ी वजह 2023 के उपचुनाव में देहरा से उनका टिकट काटकर पूर्व निर्दलीय विधायक होशियार सिंह को भाजपा उम्मीदवार बनाए जाना है। यही हाल कुटलैहड़, सुजानपुर, गगरेट, हमीरपुर, बड़सर, नालागढ़, धर्मशाला और लाहौल-स्पीति में भी हुआ, जहां भाजपा ने पुराने नेताओं को दरकिनार कर नए चेहरों को मौका दिया।

इसके अलावा, हाल ही में हुए भाजपा के जिला और ब्लॉक अध्यक्षों के चुनाव में भी पुराने नेताओं के समर्थकों की अनदेखी की गई, जिससे पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ा है।

क्या तीसरा मोर्चा संभव है?


राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि हिमाचल में तीसरे मोर्चे की संभावनाएं बहुत कम हैं। राज्य की जनता ऐतिहासिक रूप से दो-दलीय राजनीति को ही पसंद करती आई है। इससे पहले 1990 में जनता दल, 1998 में हिमाचल विकास कांग्रेस और 2012 में हिमाचल लोकहित पार्टी जैसी कोशिशें नाकाम रही हैं।