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IIT मंडी के शोधकर्ताओं द्वारा मिट्टी की कटाव को कम करने को बायोइंजीनियरिंग प्रभाव का कर रहे हैं मापन

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IIT मंडी के शोधकर्ता मिट्टी के कटाव को कम करने पर शोध कर रहे हैं। इसके लिए बायोइंजीनियरिंग की प्रभावशीलता को मापने का तरीका विकसित किया गया है। इसके नतीजों को हाल ही में प्रसिद्ध जर्नल ऑफ सॉइल एंड सेडिमेंट्स में प्रकाशित किया गया है।

इस शोध का प्रकाशन आइ आइ टी मंडी के स्कूल ऑफ सिविल एंड एनवायर्नमेंटल इंजीनियरिंग विभागकेसहायक प्रोफेसर डॉ कला वेंकट उदय औरआईआईटी मंडी के हीस्कूल ऑफ कंप्यूटिंग एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ अर्नव भावसर विनायक एवंशोधार्थी मिस चारू चौहान एवं मानवेंद्र सिंह के सहयोग से किया गया है।

एफएओ के नेतृत्व वाली ग्लोबल सॉयल पार्टनरशिप कीएकरिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में सालाना 75 अरब टन मिट्टी का कटाव होता है जिसके परिणामस्वरूप सालाना लगभग 400 अरब अमेरिकी डॉलर का अनुमानित वित्तीय नुकसान होरहा है। भारत में भी यह एक गंभीर समस्या है । यहां की लगभग 60 प्रतिशत भूमि मिट्टी के कटाव का सामना करती है।

यह लंबे समय से ज्ञात है कि पौधों की जड़ें मिट्टी के गुणों को बढ़ाकरबारिश की बूंदों को रोककर और जल प्रवाह को कम करके मिट्टी के कटाव को प्रभावी ढंग से कम कर सकती हैं। बायोइंजीनियरिंग की प्रक्रिया मिट्टी को स्थिर करने और कटाव को कम करने के लिए जीवित पौधों और रेशों का उपयोग करता है।

मिट्टी को बचाने के अलावाबायोइंजीनियरिंग देशी पौधों की प्रजातियों का उपयोग करके जैव विविधता को भी बढ़ावा देती है। आईआईटी मंडी टीम ने मिट्टीअपरदन को नियंत्रित करने में बायोइंजीनियरिंग समाधानों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने के लिए तरीके तैयार किए हैं।

इस सम्बन्ध में डॉ. अर्णव भावसर विनायक ने कहा, ‘‘सड़क के तटबंधों, ढलानों और छोटे प्राकृतिक हिस्सों जैसे छोटे क्षेत्रों के लिए छवि विश्लेषण बेहतर तरीके से काम करता है। लेकिन बड़े क्षेत्रों के लिए मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी) और रिमोट-सेंसिंग इमेजिंग बेहतर हैं। हमारा दृष्टिकोण जो आकृति पहचान का उपयोग करता है वहमौजूदा तकनीकों से बेहतर है जो अक्सर जटिल और महंगी होती हैं।‘‘