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Ph.D कर रहे शोधकर्ताओं को समय पर नहीं मिल रहा मानदेय, सड़कों पर उतरने को मजबूर हुए छात्र

<p>अच्छे दिनों की तलाश मे पीएचडी कर रहे शोधकर्ताओं के बुरे दिन चल रहे हैं।&nbsp; देश भर की प्रयोगशालाओं में दिन रात शोध कर रहे छात्र सही मानदेय समय पर न मिलने के पर सड़कों पर उतरने को मजबूर हैं। इसी कड़ी में हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला के शोधार्थियों ने मिलकर एक रोष मार्च निकाला और मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिख के अपनी मांगों से अवगत करवाया।</p>

<p>इस मौके पर&nbsp; डीआरडीओ से पीएचडी कर रहे रिसर्च स्कॉलर ऑफ इंडिया के प्रतिनिधि अरुण चौधरी ने&nbsp; &#39;समाचार फर्स्ट&#39; को बताया कि रिसर्च स्कॉलर्स की ये मानदेय बढ़ोतरी की मांग न केवल सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी बल्कि देश भर के सभी शोध संस्थानों और विश्वविद्यालयों में हो रही है। हाल ही में सोसाइटी ऑफ यंग साइंटिस्ट देश भर के संस्थानों से प्रतिनिधियों की बैठक बुलाई गई थी। जिसमें जल्द ही इस मुद्दे पर करवाई न होने पर देश व्यापी आन्दोलन का फ़ैसला लिया गया है। उन्होंने बताया कि पिछले महीने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सामने हुए धरने के बाद सरकार को 10 दिसम्बर तक का समय दिया गया है अन्यथा&nbsp; मानव संसाधन मंत्रालय दिल्ली घेराव किया जाएगा।</p>

<p>सी यू में स्कॉलर ऑफ इंडिया की प्रतिनिधि दीक्षित शर्मा ने बताया की यदि 10 दिसम्बर तक मानदेय नही बढ़ाया गया तो&nbsp; हिमाचल के&nbsp; सी यू के अलावा बाकी संस्थानों&nbsp; (आईएचवीटी, कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर, एचपीयू और अन्य ) के सभी छात्र के साथ मिलकर दिल्ली में होने जा रहे देशव्यापी धरने में बैठेंगे ।</p>

<p>पिछले 4 सालों में महंगाई बढ़ती जा रही है लेकिन, इन शोधकर्ताओं के मानदेय में एक रुपये का इजाफा नहीं किया गया। इसके अलावा वर्तमान में मिल रहे मानदेय&nbsp; के लिये भी सालों इंतजार करना पड़ता है। छात्रों में इसको लेकर भारी रोष है और इसी सन्दर्भ में भारत सरकार मानव संसाधन और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग को लगातार अपनी मांग पर अवगत करवा रहै हैं लेकिन कोई भी इनकी समस्या का समाधान नहीं कर रहा।</p>

<p><strong><span style=”background-color:#c0392b”>ये हैं मुख्य मांगे….</span></strong></p>

<ol>
<li>जेआरएफ, एसआरएफ, आरए, पीडीएफ पर कार्यरत सभी के मानदेय में बढ़ोतरी।</li>
<li>प्रति वर्ष हर 4 साल में ऑटो अपग्रेड ताकि हर बार प्रयोगशाला से सड़कों तक न आना पड़े।</li>
<li>रेगुलर फेलोशिप हर महीने मिले।</li>
<li>प्रतिभा प्लायन को रोकने के लिए पीएचडी के बाद रोजगार के अवसर ताकि सीखे हुए डॉक्टर विदेश जाने पर मजबूर न हो।</li>
<li>कोई साइंटिफिक कैडर ही नहीं है।</li>
<li>12वीं से ले के उच्चर शिक्षा ने हर स्तर पर रोजगार और स्किल डेवलोपमेन्ट पर जोर।</li>
<li>सहायक आचार्य और वैज्ञानिक के लिए एक केंद्रीय भर्ती प्रक्रिया का गठन हो।</li>
<li>प्रयोगशाला में खतरनाक केमिकल से काम करने पर उचित बीमा योजना हो और मेडिकल क्लेम और मेडिकल लीव का प्रावधान हो।</li>
</ol>

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