हिमाचल

रॉक कट टैंपल के इतिहास से आज भी अनजान वैज्ञानिक

जैसा कि आप जानते है कि पूरा भारत इस समय राममय रंग में रंगा है। अयोध्या में राम लला प्राण प्रतिष्ठा समारोह का असर पूरे भारत वर्ष में देखने को मिल रहा है।  भारत के कई जगहों पर राम मंदिर लोगों की आस्था के साथ जुड़ा हुआ हैं। ऐसा ही हिमाचल में कई मंदिर है, जो राम भगवान को समर्पित है।
कांगड़ा के मसरूर में स्थित मंदिर है जिसके गर्भगृह में आज भी राम भगवान माता सीता और लक्ष्मण के साथ विराजमान है। जी हां, आज हम बात कर रहे है, हिमाचल के एकमात्र मंदिर रॉक कट टैंपल की। यह वह टैंपल है, जिनके इतिहास का पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने कई बार कोशिश की, पर वे नाकाम रहे। इस मंदिर का इतिहास आज भी गुमनाम है।

आज मैं आपको कांगड़ा के मसरूर रॉक कट टैंपल के बारे में बताने जा रही हूं।
इस टेंपल की खासियत यह है कि इसे एक बड़ी चट्टान को तराश कर 15 मंदिर बनाए गए हैं। इस मंदिर की दीवारों में आज भी आपको सूर्य, इंद्र, ब्रह्मा, विष्णु, महेश और कार्तिकेय के साथ अन्य देवी-देवताओं की चित्र देखने को मिल जाते हैं। मंदिर की नकाशी को इतने सुंदर ढंग से डिजाइन किया है कि शायद ही कोई कलाकार अब इसे दोबारा बना पाएं। देखा जाए तो पत्थरों पर ऐसी खूबसूरत बारीकी से काम करना बेहद मुश्किल है। बिना मशीनरी और मॉडल्स टूल्स के इसे डिजाइन करना सच में काबिले ए तारीफ है। मंदिर की इतनी शानदार नकाशी को देख आप भी इसके कायल हो जाएंगे।

यह मंदिर कब बना, इसकी नकाशी करने वाला कौन है, कहां का है। इसका रहस्य आज तक नहीं सुलझा है। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार, यह मंदिर 8वीं शताब्दी में बना है।
उत्तरी भारत का यह इकलौता ऐसा मंदिर है, जिसे हिमाचल का एलोरा ऑफ अजंता भी कहा जाता है। इस टेंपल की विशेष बात यह है कि पहाड़ को तराश कर गर्भगृह मूर्तियां, सिढ़ियां और दरवाजे बनाए गए हैं। इसके अलावा मंदिर के सामने एक झील है जो इसकी सुंदरता को और चार चांद लगाता है। झील में मंदिर का प्रतिबिंब ऐसा दिखाई पड़ता है, मानो सच में जन्नत को देख लिया हो।
दंत कथाओं के अनुसार बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान किया था।
पांडवों ने ही मंदिर के सामने खूबसूरत झील को अपनी पत्नी द्रौपदी के लिए बनाया था।
मंदिर में आज भी किसी भी तरह के दान की मनाही है। 1905 में आए भूकंप के कारण इस टेपंल का अधिकतर भाग डैमेज हो गया। लेकिन बावजूद इसके इसकी सुंदरता कम नहीं हुई है।
कहा जाता है कि मंदिर को सर्वप्रथम 1913 में एक अंग्रेज एचएल स्टलबर्थ ने इसे खोजा था।
इसके अलावा मंदिर के टॉप पर जाने पर मसरूर गांव का भी बहुत ही शानदार नजारा दिखाई देता है।
मसरूर रॉक कट टेंपल भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और कलात्मक विरासत का प्रमाण हैं।
इस प्राचीन स्थल की यात्रा सिर्फ इतिहास की यात्रा नहीं है, बल्कि एक दृश्य दावत है जो आपको उन कारीगरों की शिल्प कौशल से आपको रू-ब-रू करवाएंगी, जिन्होंने इन कालातीत चमत्कारों को गढ़ा है।

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