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जब मां ज्वालाजी ने तोड़ा था अकबर का अभिमान, आज भी रहस्य बना है उसका चढ़ाया छत्र

डेस्क |

शारदीय नवरात्रि 2022 का आज दूसरा दिन है. आज मां ब्रह्मचारिणी माता की पूजा-अर्चना कर खुशहाली की कामना की जा रही है. पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में स्थित मां ज्वाला के दरबार में नवरात्रि में देश के कौने-कौने से भक्तों के आने-जाने का सिलसिला शुरू है. मां ज्वाला का मंदिर देश के शक्तिपीठों में शुमार है.

मान्यता है कि यहां देवी सती की जीभ गिरी थी. यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है, क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है, बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही 9 ज्वालाओं की पूजा होती है. यहां पर धरती से 9 अलग-अलग जगह से ज्वालाएं निकल रहीं है, जिसके ऊपर ही मंदिर बना है. इन 9 ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है.

अकबर ने ज्योति को बुझाने के लिए करवाया नहर का निर्माण…

मां के इस मंदिर को लेकर एक कथा काफी प्रचिलत है. कहा जाता है कि सम्राट अकबर जब इस जगह पर आए तो उन्हें यहां पर ध्यानू नाम का व्यक्ति मिला. ध्यानू देवी का परम भक्त था. ध्यानू ने अकबर को ज्योतियों की महिमा के बारे में बताया, लेकिन अकबर उसकी बात न मान कर उस पर हंसने लगा. अहंकार में आकर अकबर ने अपने सैनिकों को यहां जल रही 9 ज्योतियों पर पानी डालकर उन्हें बुझाने को कहा. पानी डालने पर भी ज्योतियों पर कोई असर नहीं हुआ. यह देखकर ध्यानू ने अकबर से कहा कि देवी मां तो मृत मनुष्य को भी जीवित कर देती हैं.

ध्यानू ने अपना सिर काट कर दिया था देवी मां को भेंट…

ऐसा कहते हुए ध्यानू ने अपना सिर काट कर देवी मां को भेंट कर दिया, तभी अचानक वहां मौजूद ज्वालाओं का प्रकाश बढ़ा और ध्यानू का कटा हुआ सिर अपने आप जुड़ गया और वह फिर से जीवित हो गया. अकबर ने चढ़ाया सोने का छत्र: यह देखकर अकबर भी देवी की शक्तियों को पहचान गया और उसने देवी को सोने का छत्र भी चढ़ाया. कहा जाता है कि मां ने अकबर का चढ़ाया हुआ छत्र स्वीकार नहीं किया था. अकबर के चढ़ाने पर वह छत्र गिर गया और वह सोने का न रह कर किसी अज्ञात धातु में बदल गया था. वह छत्र आज भी मंदिर में सुरक्षित रखा हुआ है.

छत्र किस धातु का है, नहीं पता…

अकबर का चढ़ाया गया छत्र किस धातु में बदल गया, इसकी जांच के लिए साठ के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की पहल पर यहां वैज्ञानिकों का दल पहुंचा। छत्र के एक हिस्से का वैज्ञानिक परीक्षण किया तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आए। वैज्ञानिक परीक्षण के आधार पर इसे किसी भी धातु की श्रेणी में नहीं माना गया। जो भी श्रद्धालु शक्तिपीठ में आते हैं, वे अकबर के छत्र और नहर देखे बगैर यात्रा को अधूरा मानते हैं। आज भी छत्र ज्वाला मंदिर के साथ भवन में रखा हुआ है। मंदिर के साथ नहर के अवशेष भी देखने को मिलते हैं.

राजा भूमि चंद ने करवाया था मंदिर का निर्माण…

सबसे पहले इस मंदिर का निर्माण राजा भूमि चंद ने करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसार चंद ने 1835 में इस मंदिर का निर्माण पूरा कराया। कहा जाता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के समय यहां समय गुजारा था और मां की सेवा की थी। मंदिर से जुड़ा एक लोकगीत भी है जिसे भक्त अक्सर गाते हुए मंदिर में प्रवेश करते हैं…पंजा-पंजा पांडवां तेरा भवन बनाया, राजा अकबर ने सोने दा छत्र चढ़ाया…

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पांच बार होती है आरती

मंदिर में पांच बार आरती होती है. एक मंदिर के कपाट खुलते ही सूर्योदय के साथ सुबह 5 बजे की जाती है। दूसरी मंगल आरती सुबह की आरती के बाद. दोपहर की आरती 12 बजे की जाती है। आरती के साथ-साथ माता को भोग भी लगाया जाता है. फिर संध्या आरती 7 बजे होती है। इसके बाद देवी की शयन आरती रात 9.30 बजे की जाती है. माता की शय्या को फूलों, आभूषणों और सुगंधित सामग्रियों से सजाया जाता है.

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ज्वाला भी चमत्कारिक

यहां पर ज्वाला प्राकृतिक न होकर चमत्कारिक है. अंग्रेजी शासनकाल में अंग्रेजों ने पूरा जोर लगा दिया था कि जमीन से निकलती ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाए. लाख कोशिश पर भी वे इस ऊर्जा को नहीं ढूंढ पाए थे.