छात्र अभिभावक मंच ने विजेंद्र मेहरा की अध्यक्षता में शिमला के कालीबड़ी हॉल में निजी स्कूलों की मनमानी को लेकर बैठक का आयोजन किया। बैठक में 200 के करीब लोगों ने भाग लिया। इस दौरन उन्होंने निजी स्कूलों की मनमानी और भारी फीसों के खिलाफ आंदोलन तेज करने का निर्णय लिया। इसके तहत 11 मार्च को डीसी ऑफिस और 13 मार्च को उच्चतर शिक्षा निदेशक कार्यालय के बाहर प्रदर्शन होगा और उन्हें ज्ञापन दिया जाएगा। वहीं 16 मार्च को मंच का प्रतिनिधिमंडल शिक्षा मंत्री से मिलेगा। बावजूद इसके प्रदेश सरकार ने निजी स्कूलों पर नकेल न लगाई तो आंदोलन को और तीव्र किया जाएगा।
विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि निजी शैक्षणिक संस्थानों में लूट को रोकने के लिए प्रदेश सरकार कानून बनाये और एक पॉलिसी के तहत इन्हें संचालित करे। उन्होंने प्रदेश सरकार से मांग की है कि वह प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर नकेल कसने के लिए तुरन्त शिक्षा का अधिकार कानून 2009 को अक्षरतः लागू करे। अगर प्रदेश सरकार सख्ती से इस कानून को लागू कर दे तो प्राइवेट स्कूलों की मनमानी और लूट पर काफी हद तक लगाम लग जायेगी। शिक्षा का अधिकार कानून 2009 को बने 10 साल हो चुके हैं परन्तु हिमाचल प्रदेश की सरकार ने प्राइवेट स्कूलों को इसके तहत संचालित करने की ज़हमत तक नहीं उठाई।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय साल 2014 में अपनी अधिसूचना के ज़रिए स्पष्ट कर चुका है कि शिक्षा का अधिकार कानून प्राइवेट स्कूलों पर भी लागू होगा। इसी अधिसूचना में यह भी स्पष्ट है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत स्थापित अल्पसंख्यक संस्थानों पर भी शिक्षा का अधिकार कानून लागू होगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने प्राइवेट स्कूलों में छात्रों की केपिटेशन फीस, सिक्योरिटी और सेफ्टी आदि को मॉनिटर करने के लिए भी शिक्षा का अधिकार कानून में प्रावधान किया है। इसके तहत छात्रों और अभिभावकों को बेहतर शैक्षणिक वातावरण देने के लिए निजी शैक्षणिक संस्थानों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने की बात की गई है।
इन स्कूलों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए पेरेंट्स टीचर एसोसिएशन का गठन आवश्यक किया गया है ताकि छात्रों की फीस, सिक्योरिटी, सुरक्षा और अन्य मुद्दों पर स्कूल प्रबंधनों की तानाशाही न हो और संविधान के तहत शिक्षा के अधिकार और दिशानिर्देशक सिद्धान्तों की पालना हो। बच्चों के लिए संविधान के अनुच्छेद 39(f) में उनके नैतिक व भौतिक अधिकारों की रक्षा भी हो। पीटीए में 75 प्रतिशत सदस्य अभिभावक होने चाहिएं। इसके इलावा प्रबंधन के केवल एक सदस्य, शिक्षक, स्थानीय अधिकारी आदि पीटीए की संरचना में शामिल हैं। पीटीए में चुने जाने वाले 75 प्रतिशत अभिभावक स्कूल प्रबंधन की पसन्द पर नहीं चुने जाएंगे बल्कि निजी स्कूल के इर्द-गिर्द शिक्षा विभाग द्वारा नामित किसी सरकारी स्कूल के हैडमास्टर और प्रिंसिपल की देखरेख में पीटीए के लिए चुने जाने वाले 75 प्रतिशत अभिभावकों का लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव होगा।
पीटीए स्कूल सत्र शुरू होने के एक महीने के भीतर गठित होनी चाहिए और इसकी जानकारी पीटीए का विवरण आवश्यक रूप से स्कूल वेबसाइट पर दर्ज होना चाहिए। स्कूल के निर्णयों में पीटीए की अहम भूमिका होनी चाहिए। मंच की सह संयोजक बिंदु जोशी ने कहा है कि 15 अप्रैल 2018 को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने निजी शिक्षण संस्थानों में छात्रों की सेफ्टी और सिक्योरिटी को सुनिश्चित करने के लिए निजी शैक्षणिक संस्थानों के प्रबंधनों को जवाबदेह बनाने के लिए दिशानिर्देश दिए थे। इसके तहत माननीय सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और प्रदेश सरकारों को निर्देशित किया था कि 6 महीनों के भीतर इन संस्थानों को मॉनिटर करने के लिए नियम बनने चाहिए और ये लागू होने चाहिए।
इसके साथ ही 27 अप्रैल 2016 को हिमाचल उच्च न्यायालय ने फीसों को संचालित करने,एडमिशन फीस व बिल्डिंग फंड पर रोक लगाने के संदर्भ में आदेश दिया था। इस सबके बावजूद हिमाचल सरकार ने इस दिशा में कोई कार्य नहीं किया जिस से स्पष्ट है कि प्रदेश सरकार की निजी स्कूल प्रबंधनों के साथ सांठगांठ है। कांगड़ा के नूरपुर व सिरमौर के ददाहू के हादसों से यह साफ हो चुका है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को हिमाचल सरकार ने ठेंगा दिखाया है।