कोरोना के चलते इस मर्तबा भी धामी के हलोग में होने वाला पत्थरों का मेला आयोजित नहीं किया जाएगा। 120 साल में दूसरा मौका है जब पत्थरों का ये मेला नहीं होगा। राजधानी शिमला शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर धामी के हलोग में हर वर्ष दो पक्षों के लोग एक दूसरे के ऊपर पत्थर बरसाते थे। एक दूसरे के ऊपर पत्थर मारने की ये परंपरा दीवाली के दूसरे दिन होती रही है। कोरोना संक्रमण के चलते आयोजक कमेटी ने निर्णय लिया है। सिर्फ़ रस्म अदायगी निभा कर मेले की इतिश्री की जाएगी। चौहान वंशज भद्रकाली मां को अपना रक्त चढ़ाएंगे। हालांकि, पूजा पाठ पहले की तरह ही होगा।
धामी रियासत के जगदीप सिंह का कहना है कि लगभग 120 साल में ये दूसरी बार हुआ जब पत्थरों का मेला नहीं हो रहा है। पिछले साल भी कोरोना के चलते मेला नहीं हो पाया था। मेले की रस्म अदायगी में सिर्फ राजघराने के लोग ही शामिल हो पाएंगे। कहा जाता है कि धामी के इस मेले में पहले नर बलि की प्रथा थी। धामी की रानी पति की मृत्यु पर यहां सती हो गई थी। सती होते वक़्त रानी ने कहा था कि नरबलि बंद होनी चाहिए। इसके बाद से नरबलि को बंद कर दिया। फिर यहां पर पशु बलि शुरू की गई। लेकिन उसके बाद पशु बलि भी खत्म हो गई।
कई दशक पहले इस मेले को भी बंद कर दिया। लेकिन बाद में पत्थर का मेला शुरू किया गया। मेले में दो गुट आर पार से पत्थर बरसाते हैं। जिस गुट के व्यक्ति को चोट लगने से खून निकल जाता है। उस व्यक्ति के खून से मां को तिलक किया जाता है। माना जाता है कि माता भद्रकाली वर्ष भर जहां लोगों को अच्छा स्वास्थ्य का वरदान देती है, वहीं सुख समृद्धि भी लाती हैं। इसलिए इस मेले को शुरू किया गया था। खास बात ये है कि आज के दौर में भी युवा इस रीति-रिवाज में बढ़ चढ़कर भाग ले लेते हैं।
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