हिमाचल

देश को आजादी दिलाने में मंडी की रानी ललिता कुमारी का विशेष योगदान.

आजादी के 77 साल बाद भी हर भारतवासी के दिल में उन स्वतंत्रता सेनानियों के लिए आदर और सम्मान कम नहीं हुआ हैं जिन्होंने भारत को स्वतंत्र करवाने में अपनी अहम भूमिका निभाई थी.
आज भी स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लोग इकट्ठे होकर आजाद जीवन के लिए उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों का शुक्रिया अदा करते हैं जिन्होंने भारत को स्वतंत्र करवाने में अपनी जान की बाजी लगा दी थी.

इसके साथ ही इतिहास इस बात का भी गवाह है कि जिस दौर में जहां महिलाओं को पर्दों के पीछे रखा जाता था, उस दौर में इन महिला स्वतंत्रता सेनानियों ने देश को आजाद करवाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी,

उस दौर में महिलाएं देश की आजादी के लिए सामने आई और जितना पुरुषों ने अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने में भूमिका निभाई है उतना ही महिलाओं ने भी भारत को आजादी दिलाने में अपना योगदान दिया है.

आइए जानते हैं हिमाचल की उस महिला स्वतंत्रता सेनानी के बारे में, जिनका देश को आजादी दिलाने में अहम योगदान रहा।

हिमाचल के मंडी रियासत की रानी ललिता कुमारी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ रहे क्रांतिकारियों की सहयोगी बनकर उनकी आर्थिक मदद की थी। रानी ललिता कुमारी उस समय खैरगढ़ी के नाम से मशहूर रही। वह स्वतंत्रता संग्राम में कूदने वाली हिमाचल के पर्वतीय क्षेत्र के राजघराने की पहली महिला थी। क्रांतिकारियों की मदद के आरोप में अंग्रेजी हुकूमत ने रियासत से निकाल दिया था। आगे चल कर वह राष्ट्रीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष बनी थी।

रानी खैरगढ़ी राजा भवानी सेन की पत्नी थी। 1912 में राजा भवानी सेन की मौत के बाद राजमहल के जीवन को छोड़ कर क्रांति की राह पर चल पड़ीं। लाला लाजपतराय के क्रांतिकारी संगठन से जुड़ीं।
मंडी में रानी खैरगढ़ी के संरक्षण में क्रांतिकारियों ने हथियारों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया था। इसके अलावा बम बनाने का सामान भी जुटाया जाने लगा। पंजाब के क्रांतिकारियों की ओर से बनाए गए बम भी मंगवाए गए।

गदर संगठन में मियां जवाहर सिंह, सिधु खरवाड़ा, बद्रीनाथ, शारदा राम, ज्वाला सिंह, दलीप सिंह और लौंगू राम आदि शामिल थे। रानी खैरगढ़ी मुख्य सहयोगी की भूमिका में थी।

वह आंदोलन का खर्च चलाने के लिए धन उपलब्ध करवाती थी। मंडी के क्रांतिकारियों को पंजाब के क्रांतिकारी नेता रास बिहारी बोस, अमेरिका और कनाडा में प्रशिक्षित सुरजन सिंह, निधान सिंह और किशन सिंह का पूर्ण सहयोग था।

क्रांतिकारियों के निशाने पर मंडी में अंग्रेज सुपरिंटेंडेंट, रियासत के बजीर और अन्य अंग्रेज अफसर थे। एक योजना को अंजाम देने के लिए नागचला स्थित सरकारी खजाने को लूट लिया।

घटना के दौरान दलीप सिंह और पंजाब के क्रांतिकारी निधान सिंह पकड़े गए। उन्होंने पुलिस की यातनाओं से घबराकर संगठन का भेद खोल दिया।

नतीजतन पुलिस ने मियां जवाहर सिंह, बद्रीनाथ, शारदा राम, ज्वाला सिंह और लौंगू को पकड़ कर जेल में डाल दिया। संरक्षक बनी रानी खैरगढ़ी को रियासत से निकाल दिया। इसके बाद लखनऊ प्रवास के दौरान रानी खैरगढ़ी ने कांग्रेस में प्रवेश किया और असहयोग आंदोलन में भाग लिया।

सन 1938 में राजा जोगिंद्र सेन के आग्रह पर रानी खैरगढ़ी मंडी रियासत के सिल्वर जुबली समारोह में भाग लेने लखनऊ से मंडी के लिए रवाना हुई। जोगिंद्रनगर पहुंचकर क्रांतिकारियों से बैठक करने के बाद गांववासियों की ओर से क्रांतिकारियों के लिए भेजे गए भोजन को खाने से उन्हें हैजा हो गया और देश की आजादी से पहले ही उनका देहांत हो गया।

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