<p>कांगड़ा किले का इतिहास महाभारत काल से भी प्राचीन है। ये हिमाचल प्रदेश के पुराने कांगड़ा शहर के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। कांगड़ा शहर से 3-4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह ऐतिहासिक किला माझी और बाणगंगा नदियों के बीच में एक सीधी तंग पहाड़ी पर बना है। इस किले को नगरकोट या कोट कांगड़ा के नाम से भी जाना जाता है। कांगड़ा के किले का निर्माण लगभग 3500 साल पहले कटोच वंश के महाराजा सुशर्मा चंद्र ने करवाया था। महाराजा सुशर्मा चंद्र ने महाभारत में वर्णित कुरुक्षेत्र के युद्ध में कौरवों के साथ लड़ाई लड़ी थी। इस लड़ाई में पराजित होने के बाद उन्होंने त्रिगर्त साम्राज्य को अपने नियंत्रण में ले लिया और कांगड़ा किले को बनवाया था।</p>
<p>कांगड़ा प्राचीनकाल में 500 राजाओं की वंशावली के पूर्वज, राजा भूमचंद की त्रिगर्त भूमि की राजधानी नगर था। इस किले पर कटोच शासकों के अतिरिक्त अनेक शासकों जैसे तुर्कों, मुगलों, सिखों, गोरखाओं और अंग्रेजों ने राज किया था। यह किला दुनिया के सबसे पुराने किलो में से एक है। यह हिमालय का सबसे बड़ा किला और भारत का सबसे पुराना किला है। इस किले की दीवार जब तक मजबूत रही जब तक की ये 4 अप्रैल, 1905 के भूकम्प ने इसे हिला कर नही रख दिया। भूकम्प से इस किले की दीवारों को बहुत नुकसान पहुंचा। वक़्त के थपेड़ों को सहने के बाबजूद आज भी ये किला राजाओं के शासन की यादें ताज़ा करता है।</p>
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इस किले के बारे में कहा जाता है कि इस किले में अथाह धन रखा गया था जो इस किले के अंदर स्थित बृजेश्वरी मंदिर में बड़ी मूर्ति को चढ़ाया जाता था। इसी खजाने की वजह से इस किले पर कई बार हमला हुआ और लगभग हर शासक चाहे वो आक्रमणकारी हो या देशी शासक सभी ने कांगड़ा किले पर अपना कब्ज़ा करने की कोशिश की। इस ऐतिहासिक किले का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है, साथ ही जब महान यूनानी शासक अलेक्जेंडर ने यहां आक्रमण किया तब भी ये किला यहाँ मौजूद था।</p>
<p>इस किले के प्राचीनतम लिखित प्रमाण महमूद गजनबी द्वारा साल 1009 में किये गए आक्रमण से मिलते हैं । बाद में साल 1043 में दिल्ली के तोमर शासकों ने इस किले को पुनः कटोच शासकों को सौंप दिया था। साल 1337 में मुहम्मद तुगलक व बाद में 1351 में फिरोजशाह तुगलक ने इस पर अपना अधिपत्य स्थापित किया था। साल 1556 में अकबर ने की दिल्ली संभाली और यह किला राजा धर्मचंद के पास आ गया। सन 1563 में राजा धर्मचंद का निधन हो गया, जिसके बाद उसका पुत्र माणिक्य चन्द शासक बना। सन 1620 में मुगल बादशाह जहांगीर अपने गर्वनरों की सहायता से इस किले को फतह किया। इस जीत के 2 वर्ष पश्चात् जहांगीर जनवरी 1622 में कांगड़ा किले में आया। उसने किले में अपने नाम से जहांगीरी दरवाजा व एक मस्जिद बनबाई थी, जो आज भी यहां मौजूद हैं।</p>
<p>इसके बाद किले को छिनने के सारे प्रयास विफल रहे और लंबे समय तक यह किला मुगल सेना के कब्जे में रहा। बटाला के सिख सरदार जय सिंह कन्हैया ने सन 1783 में मुगल सेना से किला अपने कब्जे में ले लिया, जिसे मैदानी क्षेत्रों के बदले किले को तत्कालीन कटोच राजा संसार चंद (1765-1823) को सौंपना पड़ा। इस प्रकार सदियों के बलिदान के बाद हिंदू कांगड़ा नरेश फिर से दुर्ग में लौट पाए। नेपाल के अमर सिंह थापा के नेतृत्व में गोरखा सेना ने लगभग 4 वर्ष तक इस किले की घेराबंदी की। गोरखों के विरुद्ध सहायता के आश्वासन पर संधि के अनुसार साल 1809 में किले को महाराजा रंजीत सिंह को सौंप दिया गया। सन 1846 तक इस किले पर सिख समुदाय राज रहा, इसके बाद किला अंग्रेजों के अधीन आ गया।</p>
<p>वर्ष भर भारी संख्या में लोग इस ऐतिहासिक किले की झलक पाने को यहां पहुंचते हैं और हिमाचल की सुंदरता निहारने पहुंचते हैं। बृजेश्वरी मंदिर में आने वाले भक्तजनों के लिए भी ये किला आकर्षक का केन्द्र रहता है। सरकार थोड़ा सा ध्यान दे तो इसमें पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं।</p>
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