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आधुनिकता के दौर में युवा पीढ़ी भूली ‘सायर’ का महत्व, जानिए क्यों मनाया जाता है ये पर्व….

डेस्क |

देवभूमि हिमाचल प्रदेश में साल भर बहुत से त्योहार मनाए जाते हैं और लगभग हर सक्रांति पर कोई न कोई उत्सव मनाया जाता है. प्रदेश की पहाड़ी संस्कृति का प्राचीन भारतीय सभ्यता या यूं कहें तो देसी कैलेंडर के साथ एकरसता का परिचायक है. सायर उत्सव भी इन्हीं त्योहारों में से एक है. प्रदेश में हर वर्ष सायर उत्सव मनाया जाता है. सायर त्योहार अश्विन महीने की संक्रांति को मनाया जाता है.

आधुनिकता के दौर में युवा पीढ़ी भूली अपनी संस्कृति…

आधुनिकता के इस दौर में बच्चे जहां कंप्यूटर ओर लैपटॉप के आदी हो गए हैं. वहीं उनके लिए इस पर्व के कोई मायने नहीं हैं. वहीं, कुछ को आज तक सायर पर सिक्‍कों का खेल नहीं खेला. वहीं उन्हें इस पर्व को क्यों मनाया जाता है यह भी मालूम नहीं हैं लेकिन उन्हें इतना जरूर पता है कि इस दिन तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजन खाने को मिलते हैं. आजकल के बच्चों को इस पर्व के महत्व के बारे में नहीं पता जोकि चिंताजनक है. सभी अविभावकों को अपने बच्चों को अपनी संस्कृति के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है ताकि हम सब इस संस्कृति को बचा सकें.

क्यों मनाई जाती है सैर…

पहले के दौर में न तो टीकाकरण होता था न ही बीमारियों के इलाज के लिए डॉक्टर. बरसात के दिनों में पीने के लिए स्वच्छ पानी भी उपलब्ध नहीं होता था. ऐसे में बरसात के दिनों में कई संक्रामक बीमारियां फैल जाया करती थीं जिससे इंसानों और पशुओं को भी भारी नुकसान होता था. ऊपर से पहाड़ी इलाकों में भारी बारिश कभी-कभी इतनी तबाही मचाती थी कि फसलें भी बर्बाद हो जाती थीं. कभी बिजली गिर जाया करती थी. ये वो दिन होते थे जब सावन महीने में सभी महत्वपूर्ण कार्य और यात्राएं तक रोक दी जाती थीं. लोग घरों में बंद रहते और बरसात के बीत जाने का इंतजार करते.

शरद ऋतु का आगाज माना जाता है ये पर्व…

यह उत्सव वर्षा ऋतु के खत्म होने और शरद ऋतु के आगाज के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. इस समय खरीफ की फसलें पक जाती हैं और काटने का समय होता है, तो भगवान को धन्यवाद करने के लिए यह त्योहार मनाते हैं. सायर के बाद ही खरीफ की फसलों की कटाई की जाती है.

इस दिन “सैरी माता” को फसलों का अंश और मौसमी फल चढ़ाए जाते हैं और साथ ही राखियां भी उतार कर सैरी माता को चढ़ाई जाती हैं. वर्तमान में त्योहार मनाने के तरीके भी बदलें हैं और पुराने रिवाज भी छूटे हैं.

सैर पर निकलना…

सैर का हिंदी में अर्थ देखें तो इसका अर्थ होता है घूमना-फिरना. तो इस पर्व के पीछे सैर नाम इसलिए पड़ा हो सकता है क्योंकि पहले बारिश के कारण लंबी दूरियों पर जाने से बचने वाले लोग इसी दिन से यात्राएं आदि शुरू करते थे और बुजुर्ग आदि सगे संबंधियों से मुलाकात करने घर से निकलते थे.

वहीं, इस दिन काले महीने के नाम से पहचाने जाने वाले भाद्रपद महीने में मायके गईं नई दुल्हनें भी सैर के साथ ही अपने ससुराल लौटती हैं. फिर पहले एक हफ्ते तर रिश्तेदारों के यहां आना-जाना लगा रहता था. फोन उस समय होते नहीं थे तो कुशल-मंगल जानने के लिए प्रोण-धमकी ही एक तरीका था. इस तरह से यह वास्तविक सैर थी यानी संभवत: इसीलिए इसका नाम सैर पड़ गया.