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छात्र अभिभावक मंच ने ट्रांसपोर्टरों को कार्य आबंटित करने पर जताया विरोध, प्रशासन पर लगाए गंभीर आरोप

<p>छात्र अभिभावक मंच ने जिला प्रशासन शिमला द्वारा निजी स्कूलों में छात्रों की आवाजाही के लिए निजी ट्रांसपोर्टरों को कार्य आबंटित करने के कार्य का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने इसे शिक्षा के व्यापारीकरण की चरम सीमा करार दिया है। मंच ने जिला प्रशासन को चेताया है कि अगर वह अपने इस निर्णय पर आगे बढ़ा तो उसके खिलाफ निर्णायक आंदोलन होगा।</p>

<p>मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा, सह संयोजक बिंदु जोशी और सदस्य फालमा चौहान ने संयुक्त बयान जारी करके कहा है कि जिला शिमला प्रशासन निजी ट्रांसपोर्टरों से मिलीभगत कर रहा है और उन्हें फायदा पहुंचाने के लिए छात्रों और अभिभावकों पर भारी आर्थिक बोझ लाद रहा है। जिला प्रशासन ने निजी ट्रांपोर्टरों से किराए की अधिकतम सीमा 1800 रुपये तय की है जबकि अभी एक महीना पहले तक एचआरटीसी बच्चों को स्कूल से आने और ले जाने का अधिकतम किराया केवल 900 रुपये वसूल रहा था। ऐसा क्या हो गया कि एक ही महीने में यह कार्य एचआरटीसी से छीन कर प्राइवेट ट्रांसपोर्टरों को देने का निर्णय जिला प्रशासन ले रहा है और किराए की अधिकतम सीमा को सीधा दोगुना कर रहा है। यह सब मिलीभगत है व अभिभावकों की सीधी लूट है। यह किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं है।</p>

<p>उन्होंने कहा कि अभी एक महीना पहले ही एचआरटीसी प्रबंधन ने अखबारों में बयान दिया था कि वे निजी स्कूलों के लिए बस सर्विस देने के लिए तैयार हैं तो फिर निजी ट्रांसपोर्टरों को क्यों बढ़ावा दिया जा रहा है। उन्होंने चिंता जाहिर की है कि जब एक बार निजी स्कूलों की बस सर्विस में निजी ट्रांसपोर्टरों का एकाधिकार स्थापित हो जाएगा तो यह किराया और कई गुणा ज़्यादा बढ़ जाएगा व आम अभिभावकों की पहुंच से बाहर हो जाएगा।</p>

<p>मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि देश में छः से चौदह वर्ष के छात्रों के लिए अनिर्वाय व मुफ्त शिक्षा का प्रावधान संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों, छः साल से नीचे के बच्चों के लिए संविधान के अनुच्छेद 21 व चौदह वर्ष से ऊपर के छात्रों के लिए भी शिक्षा के अधिकार कानून के तहत शिक्षा को प्राथमिकता दी गयी है तो फिर शिक्षा के हर स्तर पर व्यापारीकरण का तो सवाल ही नहीं उठता है। उन्होंने कहा है कि पुराने फॉर्मूला पर अगर छात्रों को बस पास सुविधा दी जाए तो यह किराया पांच सौ से छः सौ रुपये प्रति महीना भी नहीं बनता है परन्तु इसके विपरीत इस से तीन गुणा ज़्यादा 1800 रुपये प्रति महीना बस किराया वसूलने की बातें की जा रही हैं। यह शिक्षा पर करारा हमला है।</p>

<p>उन्होंने जिला प्रशासन से 15 अप्रैल 2018 के उच्चतम न्यायालय व हिमाचल उच्च न्यायालय के निर्णयों को लागू करने की भी बात की जिसके अनुसार बच्चों की सुरक्षा व आवाजाही की जिम्मेवारी निजी स्कूलों की है व उन्हें अपनी बसें चलानी चाहिए। जब तक यह सम्भव नहीं होता है तब तक एचआरटीसी बसों की सेवाएं ली जानी चाहिए। इस संदर्भ में एसडीएम शिमला शहरी ने भी उचित निर्देश जारी किए थे। उनका क्या हुआ। इन सभी को धत्ता बताकर निजी ट्रांसपोर्टरों को जान बूझकर इस क्षेत्र में शिक्षा के व्यापारीकरण को और ज़्यादा मजबूत करने के लिए लाया जा रहा है।</p>

<p>विजेंद्र मेहरा ने कहा कि जिला प्रशासन को उच्चतर शिक्षा निदेशालय द्वारा वर्ष 2019 में निकाली गयी तीन अधिसूचनाओं पर अमल करना चाहिए। उन्होंने जिला प्रशासन को दो टूक कहा है कि इसके बावजूद भी अगर अभिभावकों को लूटने की नीति पर आगे बढ़ा तो इस बार आंदोलन का केंद्र जिला प्रशासन के खिलाफ होगा।</p>

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