छात्र अभिभावक मंच हिमाचल प्रदेश ने निजी स्कूलों की फीस, प्रवेश प्रक्रिया व पाठयक्रम को संचालित करने के लिए कानून बनाने, रेगुलेटरी कमीशन गठित करने, टयूशन फीस के साथ एनुअल चार्जेज़ सहित सभी तरह के चार्जेज़ की वसूली पर रोक लगाने, ड्रेस, किताबों व कार्यक्रमों के नाम पर ठगी रोकने आदि मुद्दों पर विधानसभा शिमला पर जोरदार प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन के बाद मंच का प्रतिनिधिमंडल माननीय मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मिला और उन्हें मांग-पत्र सौंपकर निजी स्कूलों को संचालित करने के लिए ठोस कानून व रेगुलेटरी कमीशन गठित करने की मांग की। मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया कि इस संदर्भ में उचित कार्रवाई की जाएगी।
प्रदर्शन को सम्बोधित करते हुए मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा,विवेक कश्यप,सुरेश सरवाल,विशाल मेहरा,किशन व राजीव चौहान ने कहा कि निजी स्कूलों की मनमानी के खिलाफ आंदोलन तेज होगा। उन्होंने प्रदेश सरकार को चेताया कि अगर उसने वर्तमान बजट सत्र में निजी स्कूलों को संचालित करने के लिए कानून न लाया तो निर्णायक आंदोलन होगा। उन्होंने सरकार से मांग की है कि वह निजी स्कूलों की टयूशन फीस के अतिरिक्त अन्य सभी प्रकार के चार्जेज़ पर रोक लगाने की अधिसूचना जारी करे। उन्होंने सरकार को चेताया है कि अगर उन्होंने निजी स्कूलों की वर्ष 2020 की फीस बढ़ोतरी,एनुअल चार्जेज़,कम्प्यूटर फीस,स्मार्ट क्लास रूम,स्पोर्ट्स फंड,ट्रांसपोर्ट चार्जेज़,मिसलीनियस,केयर व अन्य चार्जेज़ की वसूली पर रोक न लगाई व इन्हें सम्माहित न किया तो प्रदेशभर में आंदोलन होगा। उन्होंने प्रदेश सरकार से निजी स्कूलों में पढ़ने वाले छः लाख छात्रों के दस लाख अभिभावकों सहित कुल सोलह लाख लोगों को राहत प्रदान करने की मांग की है।
मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि वर्तमान विधानसभा सत्र निजी स्कूलों को संचालित करने के लिए हर हाल में कानून व रेगुलेटरी कमीशन बनना चाहिए। उन्होंने उपायुक्तों की अध्यक्षता में गठित शिकायत निवारण कमेटियों को सफेद हाथी करार दिया है। ये कमेटियां केवल आई वाश हैं। इन कमेटियों से स्कूल प्रबंधनों को ही फायदा होने वाला है। अभी तक सरकार ने केवल स्कूल प्रबंधनों को ही फायदा पहुंचाया है व लाखों छात्रों-अभिभावकों की आंखों में धूल झोंकने का ही कार्य किया है। उन्होंने कहा है कि सरकार अखबारी बयान देकर अभिभावकों को ठगने का कार्य कर रही है जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
उन्होंने कहा है कि मंच निजी स्कूलों की मनमानी के खिलाफ लड़ता रहेगा जब तक कि एक सही ठोस कानून नहीं बनता है। सरकार वर्ष 1997 के कानून में कुछ संशोधन करके छात्रों व अभिभावकों को गुमराह करने की कोशिश कर रही है। सरकार ने कैबिनेट बैठक में पहले भी इस कानून में धारा 18 जोड़कर निजी स्कूलों को परोक्ष रूप से फायदा पहुंचाने की कोशिश की है। अब भी सरकार निजी स्कूलों को पीटीए के माध्यम से फीस बढ़ोतरी को कानूनी रूप देना चाहती है जबकि सब जानते हैं कि निन्यानवे प्रतिशत स्कूलों में केवल डम्मी पीटीए है। इस तरह कानून में यह प्रावधान होने से फीस बढ़ोतरी को कानूनी रूप मिल जाएगा। उन्होंने कहा है कि फीस के मुद्दे को निर्धारित करने की शक्तियां निजी स्कूल प्रबंधनों व पीटीए के बजाए सरकार व अभिभावकों के जनरल हाउस के पास होनी चाहिए।