डॉ. यशवंत सिंह परमार हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे। हिमाचल प्रदेश के गठन में उनका अहम योगदान रहा था। ऐसे में उन्हें हिमाचल निर्माता भी कहा जाता है। आज उनकी जयंती है।
''आज हम अपने अहद के खाके बनाकर छोड़ जाएंगे।
देखना कल हमारे बाद इनमे कोई रंग भर ही देगा।''
यह बानगी भर है उस युग पुरुष, योगी, दार्शनिक एवं दूरद्रष्टा की, जिसने पहाड़ो की भोली-भाली, कम साक्षर व भौगोलिक परिस्थितियो से जूझ रही जनता को विकास के सपने दिखाए नही, बल्कि उनका पूरा ताना-बाना बुन कर भविष्य की राह पर अग्रसर भी किया। हिमाचल निर्माता डॉ. यशवंत सिंह परमार ही थे, जिन्होने एलएलबी व पीएचडी होने के बावजूद धन-दौलत या उच्च पदो का लोभ नही किया, बल्कि सर्वस्व प्रदेशवासियो को पहाड़ी होने का गौरव दिलाने मे न्यौछावर कर दिया।
परमार हिमाचल की राजनीति के पुरोधा व प्रथम मुख्यमंत्री ही नही थे, और एक राजनेता से कही बढ़कर जननायक व दार्शनिक भी थे, जिनकी तब की सोच पर आज प्रदेश चल रहा है। कृषि-बागवानी से लेकर वानिकी के विस्तार सहित जिन प्राकृतिक संसाधनो पर आज प्रदेश इतरा रहा है, भविष्य का यह दर्शन उन्ही का था। यशवंत कहा करते थे कि सड़के पहाड़ो की भाग्य रेखाएं है और आज यही प्रदेश की आर्थिकी की रीढ़ है।
शिक्षा एवं स्वास्थ्य को लेकर उनका स्पष्ट विजन था, जिस पर उनके बाद की सरकारो ने पूरा ध्यान दिया, जबकि औद्योगिकीकरण के साथ विकास की रफ्तार पर भी वह चल पड़े थे। इसी तरह पशुपालन से समृद्धि की राह भी वह देखा करते थे, जिसके लिए उनके समय प्रयास भी हुए और पहाड़ो की लोक सभ्यता व संस्कृति के तो वह साक्षात उदाहरण थे, जिसके लिए उन्होने कार्य ही नही किए बल्कि वैसा ही पारंपरिक व सादगी का जीवन व्यतीत भी किया।
यशवंत सिंह परमार की ईमानदारी व पाक राजनीतिक जीवन का इससे बड़ा प्रमाण नही होगा, कि अपने अंतिम समय मे भी उनके बैक खाते मे 563 रुपये 30 पैसे थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्होने कोई मकान नही बनवाया, कोई वाहन नही खरीदा, अपने परिवार के किसी व्यक्ति या रिश्तेदार को प्रभाव से नौकरी नही लगवाया और जब वह मुख्यमंत्री नही थे तो सामान्य बस मे सफर करते थे।
डॉ. परमार का जन्म
डॉ. परमार का जन्म 4 अगस्त 1906 को चलग गांव में उर्दू व फारसी के विद्वान व कला संस्कृति के सरंक्षक भंडारी शिवानंद के घर हुआ था। पिता सिरमौर रियासत के दो राजाओं के दीवान रहे थे। वे शिक्षा के महत्व को समझते थे। इसलिए उन्होंने यशवंत को उच्च शिक्षा दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनकी शिक्षा के लिए पिता ने जमीन जायदाद गिरवी रख दी थी।
डॉ. यशवंत सिंह ने 1922 में मैट्रिक व 1926 में लाहौर के प्रसिद्ध सीसीएम कॉलेज से स्नातक के बाद 1928 में लखनऊ के कैनिंग कॉलेज में प्रवेश किया और वहां से एमए और एलएलबी किया। डॉ. परमार 1930 से 1937 तक सिरमौर रियासत के सब जज व 1941 में सिरमौर रियासत के सेशन जज रहे।