सुप्रीम कोर्ट के एक अहम फैसले के बाद अब हिमाचल सरकार के दिहाड़ीदार कर्मचारियों को भी पेंशन मिलेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को हिमाचल सरकार को निर्देश दिया हैं कि उन सभी दैनिकभोगी कर्मचारियों को पेंशन एक जनवरी 2018 से दें जिनकी स्थाई-अस्थाई नौकरी दस साल या उससे अधिक है। फैसले से सरकार पर 500 से 800 करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा, लेकिन हजारों कर्मचारी लाभान्वित होंगे।
अपीलकर्ता सरकार के विभिन्न विभागों में अलग अलग समय पर दैनिक भोगी के रूप में नियुक्त हुए अपीलकर्ताओं को 20 से 25 साल अस्थाई नौकरी करने के बाद सरकार ने उन्हें नियमित कर दिया। लेकिन दुर्भाग्यवश इनकी नियमित सेवाएं दस साल से कम होने के कारण पेंशन की पात्रता नहीं बन पाई।
जिसके बाद उन्होंने प्रदेश के प्रशासनिक ट्रिब्यूनल में गुहार लगाई कि उन्होंने 20 से 25 साल तक अस्थाई नौकरी की है। उनकी पचास प्रतिशत अवधि स्थाई नौकरी की अवधि के साथ जोड़कर दस साल की पेंशन की पात्रता के नियम को पूरा करते हुए उन्हें पेंशन दी जाए।
ट्रिब्यूनल ने 24 दिसंबर 2001 को अपने निर्णय में याचिकाकर्ताओं की दलील को मान लिया। सरकार इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में गई। हाई कोर्ट ने 31 मई 2012 को ट्रिब्यूनल के निर्णय को निरस्त कर दिया और कहा कि पेंशन की पात्रता के लिए अस्थाई नौकरी की अवधि को नहीं जोड़ा जा सकता। जिसके बाद याचिकाकर्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
वहीं, हिमाचल सरकार की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस पटवालिया और अभिनव मुखर्जी ने बताया कि यदि न्यायालय अपीलकर्ताओं को राहत देता है तो हिमाचल सरकार पर काफी आर्थिक बोझ आ जाएगा, इसलिए इस याचिका को खारिज किया जाए।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायधीश आदर्श कुमार गोयल, आरएफ नरीमन और उदय उमेश ललित की खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं की दलील को स्वीकारते हुए यह फैसला सुनाया कि जो इन दैनिकभोगी कर्मचारियों ने अस्थाई नौकरी की है उसके पांच साल की अवधि को एक साल की स्थाई नौकरी का फार्मूला मानते हुए स्थाई नौकरी की अवधि के साथ जोड़कर पेंशन की पात्रता दी जाए। इस फैसले से प्रदेश के हजारों दैनिकभोगी कर्मचारियों को लाभ मिलने वाला है।