<p>भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम कहते थे। नींद में आए सपने हम सवेरे तक भूल जाते हैं। लेकिन खुली आंखों से देखा गया सपना हम नहीं भूलते, उन्हें पूरा करने का ऐसा जुनून जो आपको सोने न दे। उनका यह प्रेरणादायक प्रसंग साबित हुआ है। मंडी में जिसे चंद लोगों ने दिन के उजाले में देखा, लंबा संघर्ष किया और आज वह मूर्त रूप में सामने तैयार खड़ा है। जी हां, प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी और शिव नगरी के नाम से विख्यात मंडी शहर के बीचों बीच स्थित बिजयी स्कूल की यह कहानी है जिसे 12 अक्तूबर 1866 को मंडी के तत्कालीन राजा बिजयी सेन ने एंगलो वर्नाकुलर मिडल स्कूल के नाम से शुरू किया था। तब प्रदेश में इक्का दुक्का ही स्कूल थे।</p>
<p>इतिहास के अनुसार उस समय इस स्कूल में मंडी रियासत ही नहीं बल्कि दूसरे रियासतों से भी आकर बच्चे पढ़ते थे। उस जमाने में भी जब यह स्कूल खुला तो इसमें 500 छात्रों के शिक्षा ग्रहण करने की बात भी इतिहास में दर्ज है। 1921 में मंडी के तत्कालीन राजा जोगिंदर सेन ने इस स्कूल का दर्जा बढ़ा कर हाई किया जिसे शिक्षा प्रणाली की नई व्यवस्था लागू हो जाने पर वर्ष 1986 में जमा दो किया गया। इसी बीच इस स्कूल का भवन जो पूरी तरह से चूना, पत्थर और बड़े-बड़े लकड़ी की शहतीरों से पहाड़ी शैली में निर्मित था। जिसका आकार अंग्रेजी के ओ जैसा होने के कारण ओ ब्लाक या फिर लक्कड़ भी कहा जाता है बूढ़ा होने के साथ जर्जर भी हो गया।</p>
<p>कक्षाएं नए भवनों में चलने लगी और वर्ष 2000 आते-आते यह भवन असुरक्षित हो गया। इससे पहले कि सरकार की इसे गिरा कर कई मंजिला बनाने की योजनाएं सिरे चढ़ती, इसी पाठशाला के कुछ पूर्व छात्रों ने पुरानी यादों को जिंदा रखने की सोच को आगे बढ़ाते हुए दिन के उजाले में ही खुली आंखों से एक सपना संजो डाला कि क्यों न लाखों पूर्व छात्रों जिनमें सैंकड़ों देश व दुनिया में नामचीन चेहरे रहे हैं। देश और दुनिया में जाकर मंडी का नाम रौशन किया है। जीर्णोद्वार करवाकर इसे कालांतार तक बनाए रखा जाए । ये लोग स्कूल के सामने बैठ कर बैठकें करते, सपना देखते, उसकी आगे अन्य छात्रों जो बड़े-बड़े ओहदों पर बैठे थे या बैठे रहे हों से चर्चा करते।</p>
<p>इन लोगों ने 2 अक्तूबर 2006 को अनिल शर्मा छूछू की प्रधानगी में पूर्व छात्र संगठन यानि ओएसए का गठन करके इसे स्कूल की इमारत को इसी रूप में फिर से लौटाने और जीर्णोद्वार करने के लिए जरूरी कार्यालयों में खतो किताबत शुरू कर दी। इसमें बड़ा बजट आड़े आते रहा, पुरातत्व प्रेमी औऱ इतिहासकार इसे बचाने और जीर्णोद्वार करने की गुहार, पुकार और मांग करते रहे और आखिर केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार के सहयोग और जिला प्रशासन की दृड़ इच्छा के चलते 2016 में इसका काम एशियन डवलपमेंट बैंक यानि एडीबी जो मंडी शहर के सौंदर्यकरण में लगी थी को इसका काम सौंप दिया गया। एडीबी ने स्थानीय मिस्त्रियों के लगातार काम से पुरानी पत्थरों की चिनाई, लकड़ी की नक्काशी और अन्य कारीगरी की तरह से इसे तैयार कर दिया गया।</p>
<p>इसमें गोहर से आए लकड़ी के मिस्त्री तुला राम की अगुवाई में गगन, घनश्याम, पूर्णचंद, चलाह चक्कर के प्रेम, गुटकर के रत्तन सिंह, ईंट चूरा और चूना को मिक्स करने में माहिर राज मिस्त्री डोला राम, पत्थर चिनाई करने वाले गोहर के नौखू राम, इंद्र देव, सैंज के भूप सिंह व बाड़ी के जय सिंह आदि न एडीबी के प्रोजेक्ट मैनेजर राकेश अरोड़ा के मार्गदर्शन में चार साल में इस काम का पूरा कर दिया। अब यह भवन पुराने स्वरूप में बन कर तैयार है। इस पर लगभग 5 करोड़ का खर्चा आया है। इसे देख कर शहर के लोग, पुरातत्व प्रेमी, पर्यावरणविद, इतिहासकार, लेखक, कवि और खास कर इस स्कूल से जुड़े डेढ़ लाख से भी अधिक पूर्व छात्र प्रफुल्लित है। उनकी यादें हमेशा के लिए इसके साथ जुड़ गई हैं। प्रदेश सरकार इसे पुस्तकालय, म्युजिम, गोष्ठी हाल आदि किस रूप में इस्तेमाल करेगी यह भी विचाराधीन ही बताया जा रहा है। जिला भाषा अधिकारी रेवती सैणी के अनुसार मामला सरकार को भेजा जा चुका है। अभी तक यह भाषा एव संस्कृति विभाग के हवाले नहीं हुआ है। सरकार को ही निर्णय लेना है कि इसका उपयोग किस तरह से होगा। </p>
Himachal Pradesh Young Athletes: मंडी जिले के केलोधार की ईशा ठाकुर ने अंडर-14 श्रेणी में…
2800 JBT TGT Recruitment: हिमाचल प्रदेश में दिवाली के बाद जेबीटी, टीजीटी और सीएंडवी शिक्षकों…
एजेंसी/भाषा Ratan Tata Life: रतन टाटा भारत के सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में से एक…
Ratan Tata death: भारत के सबसे सम्मानित उद्योगपतियों में से एक और टाटा संस…
मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ) आज का दिन आपके लिए…
Kinnaur truck accident: किन्नौर ज़िले के निगुलसरी के पास एक सड़क दुर्घटना में एक ईंटों…