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अंग्रेज़ों ने “रोज़ चाय पियो बहुत दिन जियो” कह कर हिमाचल वासियों को लगाई थी चाय की आदत

पी. चंद, शिमला |

चाय दुनिया भर में पिया जाने वाला एक सर्वप्रिय पेय माना जाता है। जापान और चीन में 4 हजार वर्ष से चाय को एक दवाई के रूप में लिया जाता है पर भारत में चाय अंग्रेजी हकूमत के पश्चात ही दाखिल हुई। कभी दूध-मक्खनों से पलने वाले भारतीय विशेष कर पंजाबी आज की तारीखों में चाय की प्याली में डूब कर रह गए हैं। चाय का यदि सही तरीके से इस्तेमाल हो तो यह एक औषधि है पर चाय को आवभगत में इस प्रकार पेश किया जाता है कि मेहमान का मन हो, चाहे न हो पर मेजबान जबरदस्ती चाय पिला कर ही रहता है।

ब्रिटिश कालीन राजधानी और वर्तमान में हिमाचल की राजधानी शिमला में भी चाय का आगमन अंग्रेजों के आने के बाद ही हुआ था। शिमला में आने के बाद अंग्रेज़ों ने न केवल यहां चाय की शुरुआत की बल्कि लोगों को चाय की आदत डालने के लिए विज्ञापन व प्रचार प्रसार भी किया। उसके बाद लोग दूध घी मक्खन छोड़कर चाय में ऐसे डूबे की आजतक बाहर नहीं निकल पाए।

जिसका जीता जागता उदाहरण गंज बाज़ार स्थिति चाय के विज्ञापन का बॉर्ड है। जिसके रंग आज भी चमकदार है और लोगों को अनायास ही अपनी तरफ आकर्षित कर लेते है। जिस भवन में ये बोर्ड लगा है कभी उसके मालिक रहे परिवार के सदस्य अशोक सूद बताते है कि ये बोर्ड 1930 के करीब का है जब अंग्रेज़ो ने चाय भारत मे लॉन्च की थी उस वक़्त लोगों को चाय के प्रति आकर्षित करने के लिए इस बोर्ड को लगाया गया था। यहां तक कि उस वक़्त अंग्रेज भारत के लोगों को मुफ़्त चाय पिलाते थे व उन्हें चाय पीने के प्रति आकर्षित करते थे। इस बोर्ड में लिखा है कि "रोज़ चाय पियो बहुत दिन जियो" अब भले ही अंग्रेज भारत से चले गए है लेकिन चाय आज भी भारतीयों की पहली पसंद है।