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मंत्री के निर्देश के बावजूद परिवहन विभाग का हाईकोर्ट के आदेशों को ठेंगा

सचिन शर्मा, मंडी |

पिछले लम्बे समय से अपने हक के लिए लड़ाई लड़ रहे सुंदरनगर निवासी अश्वनी सैनी को आज सात वर्ष बीत जाने उपरांत भी गाड़ी का पेड नम्बर नहीं मिल पाया है।

हालाकि वर्ष 2013 में वरिष्ठ वकील और मौजूदा सरकार के एड्वोकेट जरनल अशोक शर्मा द्वारा प्राथी की और से नए खरीदे एक्सयूवी वाहन को पहले आओ पहले पाओ आधार पर पेड नम्बर 0001 अलॉट करने के लिए याचिका (सीडब्लूपी 9089) दायर की थी।

जिस पर 13 नवम्बर 2014 को निर्णय देते हुए हाइकोर्ट के न्यायधीश राजीव शर्मा और सुरेश्वर ठाकुर की बेंच ने परिवहन विभाग के सचिव गोपाल शर्मा को स्पेशल 0001 अलॉट करने के निर्देश जारी किए थे।

लेकिन बार-बार मांग के बावजूद परिवहन विभाग ने आज तक नम्बर जारी नहीं किया। यह जानकारी देते हुए अश्वनी सैनी ने बताया कि इसी कड़ी में उन्होंने पिछले दिनों मण्डी सर्कट हाऊस में लाहुल स्पीति के चुनाव प्रभारी व भाजपा वरिष्ठ नेता प्रवीण शर्मा और सचिवालय (विधि विभाग) से रिटायर्ड घनश्याम ठाकुर संग परिवहन मंत्री गोविन्द ठाकुर से मुलाकात की और उन्हें पूरे मामले से अवगत करवाया, जिस पर उन्होंने आश्वाशन दिया कि हाइकोर्ट के आदेश 2014 के है और नई पालिसी 2015 की है ऐसे में नम्बर शीघ्र ही अलॉट किया जाएगा और वह इसके लिए परिवहन विभाग को जरूरी निर्देश जारी करेंगे।

लेकिन परिवहन विभाग ने मंत्री की सिफारिश को अनदेखा करते हुए पुनः हाईकोर्ट आदेशो को ठेंगा दिखा 14 अगस्त 2019 को पत्र सख्या 1080271 क़े द्वारा नम्बर देने से इंकार कर दिया।परिवहन विभाग की मनमानी से परेशान अश्वनी अब शीघ्र ही हाइकोर्ट के आदेश की अवमानना की याचिका दायर करेंगे और न्याय की मांग करेंगे।

VIP नंबरों को इकट्ठा करने में जुटे है अधिकारी

VVIP नंबरों के लिए प्रसाशनिक अधिकारियो का मोह लगातार बरकरार है। प्रदेश भर में जिला मुख्यालयो में स्तिथ उपयुक्त कार्यलयों में अनेक VVIP नम्बर युक्त वाहन पहले से ही मौजूद है बावजूद इसके अधिकारी अब पेड नम्बर होने पर भी वीआईपी नम्बरो को अन्य वाहनों के लिए जुटाने में लगे हुए है।

उपायुक्त कांगड़ा द्वारा HP-88 0001नम्बर 6 मार्च 2017 को एक लाख खर्च किया गया उसके बाद एक अन्य नए खरीदे XUV वाहन को वीआईपी नंबर HP 40D 0001 के लिए फिर से एक लाख खर्च किया गया । यह वाहन 17 जुलाई 2017 को SDM कार्यालय कांगड़ा में रजिस्टर्ड हुआ है। यहा बता दे कि उपायुक्त कार्यालय में  HP 56-0003 सहित अनेक वाहनों पर VVIP नंबर मौजूद हैं।

वही उपायुक्त कुल्लू द्वारा भी VIP नम्बर  HP 35C 0004 नम्बर के लिए 1 लाख रूपए खर्च किया गया है। यह वाहन पच्चीस अगस्त 2017 को जिला दण्डाधिकारी कुल्लू के नाम से रजिस्टर्ड हुआ है।

उपायुक्त शिमला (ग्रामीण) HP 52C 0001 द्वारा भी एक लाख फुके गए। वही विभिन्न विभागों के डायरेक्टर व चेयरमैन भी सरकारी वाहनों पर लाखो खर्च कर 0001 नम्बर की ठसक पूरा करने में लगे हुए है। RTI से प्राप्त जानकारी अनुसार सरकारी खजाने से एक-एक लाख रूपए खर्च कर डायरेक्टर हॉर्टिकल्चर ने HP 63D 0001 दिसम्बर 7, 2016 को रजिस्टर्ड करवाया ।

हिमाचल प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने चैयरमेन के लिए 12 मई 2016 को STA शिमला से VVIP नम्बर HP 62D 0005 की  रजिस्ट्रेशन करवाई । हाल ही में हिमाचल प्रदेश शिक्षा बोर्ड  धर्मशाला बोर्ड के चैयरमैन मण्डलायुक्त कांगड़ा राजीव शंकर  और हरीश गज्जू बोर्ड के सचिव द्वारा 34 लाख में खरीदे नए फॉर्च्यूनर वाहन के लिए अप्रैल 2018 में 1 लाख का वीवीआईपी नम्बर खरीदा गया ।

उपायुक्त कांगड़ा ने एक लाख उधारी से खरीदा 0001 नम्बर

उपायुक्त कांगड़ा के सरकारी वाहन में लगा HP-88 0001नम्बर उस समय उधारी के पैसे से खरीदा गया था।

इसके लिए बकायदा रजिस्ट्रेशन कार्यलय कांगड़ा ने एक लाख उधारी कर दी हालाकि रजिस्ट्रेशन कार्यलय में वाहन पंजीकरण का आनलाईन सिस्टम है और निर्धारित फीस के लिए उधारी का कोई प्रावधान नही होता है।

लेकिन  6 मार्च 2017 को उपमंडलाधिकारी (ना.) जिला कांगड़ा कार्यालय में यह नम्बर रजिस्टर करवाया गया और उक्त नंबर की उस समय एक लाख रुपए फीस अदा नहीं की गई ।

प्राप्त लिखित जानकारी अनुसार संबंधित रजिस्ट्रेशन अधिकारी का कहना था कि जैसे ही फीस प्राप्त होगी उसे सरकारी खजाने में जमा करवा दिया जाएगा।

पहले मुफ़्त का था प्रावधान अब पेड होने पर भी ब्यूरोक्रेट्स नम्बर इकठ्ठे करने में जुटे

प्रदेश भर में उपयुक्त कार्यलयों के अधिकतर वाहनों में VVIP नम्बर लगे हुए है बावजूद इसके अन्य वाहनों के लिए भी ब्यूरोक्रेट्स की चाह 0001 के लिए बरकरार है ।

पहले यह नम्बर मुफ़्त में अधिकारियो के सरकारी वाहनों पर डाले जाने का प्रावधान था। लेकिन बाद में  इन नम्बरो को पेड कर दिया गया।पहले आओ पहले पाओ का रूल होने के बावजूद आम जनता को स्पेशल नम्बर पेड़ होने के बावजूद नही दिए जाते थे और लम्बे समय तक पब्लिक डिमांड न होने की आड़ में इन्हें सरकारी वाहनों में मुफ़्त में डाला जाता रहा ।

पूर्व में ऊंची राजनीतिक और प्रसाशनिक पहुंच वाले कुछे एक वीआईपी लोग इन नम्बरो को ले पाते थे और ज्यादातर नम्बर मुफ़्त में सरकारी वाहनों पर  लगाए जाते रहे।प्रदेश भर में ज्यादातर 0001 नम्बर पूर्व मंत्रियो,विधायको,सासद, ब्युरोक्रेट्स व उच्च राजनैतिक रसूख रखने वाले लोगो के वाहनों पर ही लगे है।

लेकिन हैरानी की बात यह है कि यह नम्बर पेड किए जाने पर भी अधिकारी अभी भी इन नम्बरो को इकट्ठा करने में जुटे हुए है। प्रदेश भर में उपयुक्त कार्यलय में तैनात अधिकतर वाहनों पर 1-10 वी आई पी नम्बर है।

2015 में परिवहन विभाग ने सरकारी वाहनों के लिए रिजर्व कर दिए थे 1-10 नम्बर

पूर्व सरकार के समय उच्च न्यायलय में कुछ लोगो द्वारा आम जनता को नम्बर पेड होने के बावजूद वीआईपी नम्बर अलॉट न किए जाने की याचिकाए दायर की थी ।

ऐसी एक याचिका सीडब्लूपी 9089 सुनवाई करते हुए हाइकोर्ट के 2 जजो की बेंच ने प्राथी को 0001 नम्बर जारी करने का आदेश परिवहन सचिव को दिए थे लेकिन नम्बर देने की बजाए परिवहन विभाग ने नई रजिस्टेशन  पॉलिसी का प्रारूप 24 सितम्बर 2015 को तैयार कर डाला। जिसमे निजी वाहनों के लिए 1से 10 वीआईपी नम्बर अलॉट करने पर ही पाबन्दी लगाते हुए इसे मात्र सरकारी वाहनों के लिए मुफ़्त में आरक्षित रखने का प्रावधान कर दिया ।

लेकिन इसकी अधिसूचना जारी करने उपरांत आक्षेप/सुझाव दिए जाने पर सरकारी वाहन के लिए रजिस्ट्रीकरण फीस 1 लाख कर दी गई। इससे पूर्व यह नम्बर आम जनता के लिए 75-50 हजार में पहले आओ पहले पाओ आधार पर उपलब्ध थे।

यदि एक ही ऐच्छिक नंबर के लिए दो या उससे ज्यादा आवेदन एक समय में आ जाते थे तो उक्त नंबर की बोली लगाए जाने का प्रावधान था। वही यदि किसी अधिकारी को सरकारी वाहन के लिए उक्त वीआई पी नंबर चाहिए तो ऐसे में नंबर की पब्लिक मांग ना होने की सूरत में ही इसे मुफत में ही सरकारी वाहन को दिए जाने का  प्रावधान था।

अब मौजुदा नई पालिसी के तहत जनसाधारण 0011 से 0100 तक के ऐच्छिक नंबर के लिए 1 लाख , जबकि 101 से लेकर 999 तक विशिष्ट नम्बरों के लिए 25 हजार और 1000 से 9999 तक बीच के विशिष्ट  नंबरों के लिए 5 हजार फीस निर्धारित की है।

बेकार पड़े हैं हजारों नम्बर

मौजुदा समय में राज्य भर में वाहन पंजीकरण कार्यलयों में करोड़ो रूपए के हजारों नम्बर गल्त पॉलिसी के चलते बेकार पड़े है। नई परिवहन पालिसी को लागु करने के समय से अभी तक दो दर्जन से ज्यादा नई सीरीज हो चुकी है । 11-100 नम्बरो की  फीस एक लाख रखी गई है जो अत्यधिक जिसके चलते सेकड़ो नम्बर बेकार पड़े है। वही 3 डिजिट के विशिष्ट नम्बरो की फीस भी 25 हजार है।