ममी की कहानियां तो आपने बहुत सुनी होंगी लेकिन, रोज दूध, चाय और ग्रीन टी पीने वाली ममी की कहानी आपने नहीं सुनी होगी।आज हम आपको ऐसी ही एक ममी की कहानी बताने जा रहे हैं जो गुरु और शिष्य के प्यार को दर्शाता है। देश में आपने कई जगह ममी होने की किस्से तो हमने सुने ही होंगे।
आज हम आपको हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ की एक मोनेस्ट्री (बोध मठ ) में रखी गई मम्मी की कहानी बताने जा रहे हैं। उससे पहले आपको बता दें कि ममी होती क्या है। जब हमारी कोई प्यारी चीज या व्यक्ति हमारे बीच नहीं रहता तो उसके शरीर को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने की विधि को मम्मी कहते है। इस दौरान शरीर पर नमक व हिमालय की जड़ी बूटियों का लेप लगाया जाता है।
मिस्र में हुई थी ममी की उत्पत्ति
ममी की उत्पत्ति प्राचीन काल में मिस्र में हुई थी और यहां के लोग जिसे प्यार करते थे उसकी मृत्यु के बाद उसके शरीर को इसी विधि के माध्यम से सालों तक सम्भाल कर रखते थे। मिस्र में आज भी एक मिलियन से भी जादा ममीयां इस समय मौजूद है। प्राचीन काल में लोगों का पुनर्जन्म में भी विश्वास था। जिसकी वजह से मृत व्यक्ति के शरीर को लम्बे समय तक सम्भाल कर रखा जाता था ताकि, अगर वे दोबारा पुनर्जन्म ले तो अपने पुराने शरीर को पा सके।
रोज दूध-चाय और ग्रीन टी पीती है ये ममी..
अब आते हैं हिमाचल के बैजनाथ की मोनेस्ट्री में रखी गई मम्मी की कहानी पर यह चर्चा का विषय बनी हुई है। क्योंकि यह मम्मी रोज दूध,चाय और ग्रीन टी पीती है। जी हां मठ में राखी गई ममी को रोजाना दूध,चाय और ग्रीन-टी रखी जाती है। ममी के लिए चांदी के बर्तनों में पिने के लिए पानी भी रोजाना नियम से रखा जाता है।
गुरु और शिष्य के प्यार की कहानी..
यह ममी एक गुरु और शिष्य के प्यार की निशानी है। बैजनाथ मोनेस्ट्री के गुरु पम्पा लामा ने अपने गुरु अमतिन योगी की मृत्यु के बाद उनके शरीर को आज भी सम्भाल कर रखा हुआ है। आज उनकी मृत्यु को 13 साल से अधिक का समय हो गया है। जिसके बाद भी उन्होंने इस मृत शरीर को सम्भाल कर रखा है। मठ के संचालक का कहना है की गुरु अमतिन योगी की मम्मी को सम्भाल कर रखने का एक ही मकसद है ताकि लोग यहां आके इसके बारे में जान सके और उनके दर्शन कर सकें।
क्या है ममी शब्द का अर्थ और कैसे बनती है मम्मी..
ममी प्राचीन अरबी भाषा का शब्द है जो वास्तव में ममिया शब्द से बना है। अरबी भाषा में माह या तारकोल के लेप से सुरक्षित रखी गई चीज का अर्थ ममिया होता है। प्राचीन कल में ममी बनाने के लिए 70 दिन का समय लगता था और इसे बनाने के लिए धर्मगुरु के साथ साथ विशेषज्ञ भी होते थे।
ममी बनाने के लिए पहले मृत शरीर की पूरी नमी को पहले समाप्त किया जाता था और इस काम में काई दिन लगते थे। शरीर पर नमी समाप्त होने के बाद उस पर कई तरह के लोशन से मालिश की जाती थी। फिर पट्टियां लपेटने का काम किया जाता था और पुरे शारीर पर कॉटन की पट्टिया लपेटी जाती थी।
पट्टियां लपेटने के बाद शारीर के आकर के लकड़ी के ताबूद तैयार किये जाते थे। जिसके बाद ताबूत को मृत व्यक्ति का रूप दिया जाता था। इसके बाद धर्मगुरु के अनुसार इसपर धार्मिक वाक्य लिखे जाते थे।