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महिलाओं को स्वरोजगार की राह दिखाती ‘नर्गिस’, परंपरागत पकवानों से बनाई पहचान

सुनील ठाकुर |

परिवार में जब भी कोई कष्ट या विपदा आती है तो गृहणी न केवल उसका डटकर मुकाबला ही करती है अपितु बंधन, बाधाओं, आडम्बरों और झूठी मर्यादाओं की खोखली दिवारों को लांघ कर ऐसा इतिहास रच देती है कि वह समाज के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन जाती है। इसी तरह की जीती जागती मिसाल है बिलासपुर के निहाल गांव की नर्गिस की।

नर्गिस ने साल 1992 में जमा दो की पढाई पूरी की। इसके बाद इनके परिवार को नर्गिस की शादी की चिंता सताने लगी।1994 में नर्गिस की शादी अख्तर हुसैन नाम के एक फल विक्रेता से करवा दी गई। जीवन हंसी-खुशी से व्यतीत हो रहा था कि एक दुर्घटना में चोटिल हो जाने के कारण इनके पति अख्तर हुसैन को डिस्क की बीमारी ने घेर लिया और वह कमाने में असमर्थ हो गए।
   
मुश्किल में चुनौतियों से नहीं मानी हार

परिवार को अचानक मुसीबतों ने घेर लिया।आर्थिक तंगी से परिवार की दशा बिगडने लगी लेकिन, नर्गिस ने इस मुश्किल घडी में इन नई चुनौतियों से हार नहीं मानी। उसने परिवार के भरण-पोषण के लिए खुद कमाने की चुनौती को स्वीकार कर लिया। लेकिन कमाया क्या और कैसे जाए यह एक बड़ा प्रश्न था। तब मां जमशैद बेगम ने इन्हें पुराने समय में ब्याह-शादियों और नाश्ते इत्यादि में परोसे जाने वाली विशेष विधि से बनने वाली मट्ठी और मैदे के मीठे खजूर बनाकर बेचने की तरकीब सुझाई।

  
 विलुप्त हो रहें इस पकवान को दी पहचान

आधुनिक मिष्ठानों के बीच विलुप्त हो रहें इस पकवान को जब नर्गिस ने बनाकर घर-घर जाकर बेचना शुरू किया तो लोगों ने मट्ठी और मीठे खजूर में अपनी रूचि दिखाई और निरन्तर मांग बढने के चलते नर्गिस का व्यवसाय गति पकडता चला गया। कभी घर से बाहर न निकलने वाली नर्गिस ने जब विपरीत परिस्थितियों में जीतने के लिए श्रम को अपनाया तो बिलासपुर के अलावा अन्य जिलों में भी नर्गिस और उनके वनाए सामान को पहचान मिलना शुरू हुई। मट्ठी और मीठे खजूर शादियों के अतिरिक्त नाश्ते और मेहमान नवाजी में परोसे जाने लगें।
   
माता वैष्णों देवी नाम से बनाया स्वंय सहायता समूह

अपने संघर्ष के दिनों में नर्गिस को बहुत सी ऐसी महिलाओं से मिलने का मौका मिला जो परिस्थिति वश आर्थिक तंगी से जूझ रही थी। लेकिन स्वरोजगार के लिए कोई प्रोत्साहित करने वाला नहीं था। तब नर्गिस ने उन महिलाओं को सगंठित करके माता वैष्णों देवी के नाम स्वंय सहायता समूह बनाया इन महिलाओं ने चने की दाल, भुजिया, काले चने, मुगंफली पकोडा, मिक्स नमकीन, मिक्स कॉर्न, दहीं बून्दी और नमकीन जैसे उत्पादों को बनाकर बेचना शुरू किया तो श्रम और सगंठन ने महिलाओं में नया जोश, उमंग और स्वावलंबी बनने के रास्ते खोल दिए।

समूह प्रोडक्टस को बेचकर कमा रहा हजारों

अब ये स्वयं सहायता समूह राष्ट्रीय ग्रामीण आजिविका मिशन से जुडकर प्रदेश भर में लगने वाले छोटे बडे मेलों के अतिरिक्त जिला ग्रामीण विकास अभिकरण द्वारा हर महीने उपायुक्त बिलासपुर कार्यालय के परिसर में लगने वाले स्टॉल में अपने प्रोडक्टस को बेचकर हजारों रूपये कमा रहा है।  आत्मनिर्भर होकर समूह के सदस्यों के परिवारजनों को आर्थिक आधार प्रदान कर रहा है।
   
बच्चों को दी बेहतर शिक्षा

महिला सशक्तिकरण की मिशाल बनीं नर्गिस ने अपने इसी व्यवसाय के दम पर न केवल अपने परिवार का भरण-पोषण और दो बेटों को उच्च शिक्षा दिलवाई बल्कि प्रभावी ढंग से गरीब परिवारों की महिलाओं को विकास की मुख्य धारा से जोडनें के लिए उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाकर उनके जीवन की राह भी बदलनें का प्रयास किया है।

आज रूकसाना, अन्जूम आरा, रज़ीना बेगम आदि समूह की सदस्यों के चेहरों से झलकती मुस्कुराहट और संतोष साफ वंया करता है कि राष्ट्रीय ग्रामीण आजिविका मिशन की बगिया से नर्गिस के प्रयासों की महक ने उनके परिवारों में खुशियां ही खुशियां भर दी हैं।