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हिमाचल के डॉक्टर ने खोज निकाला रेबीज का सबसे सस्ता ‘इलाज’

समाचार फर्स्ट |

हिमाचल प्रदेश के एक चिकित्सक ने रैबीज से बचाव के लिए बड़ा अविष्कार किया है। कांगड़ा के ज्वालामुखी निवासी डॉ. ओमेश भारती के शोध से रैबीज से बचने का इलाज सस्ता हुआ है। अब 35000 की बजाय मात्र 350 रुपए में ही रैबीज से बचने का उपचार होगा।  डा. ओमेश भारती शिमला स्थित दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल में कार्यक्रम अधिकारी एवं स्टेट मास्टर ट्रेनर इंट्राड्रमल एंटी रैबीज वैक्सीनेशन के पद पर तैनात हैं।
 
पागल कुत्ते के काटने से होने वाली बीमारी रेबीज के इलाज के लिए बनाए गया नया “चिक प्रोटोकॉल” उपचार भविष्य में बड़ी सफलता हासिल कर सकता है। डॉ. भारती का विकसित किया ये इलाज दुनिया में रेबीज का अब तक का सबसे कम खर्च वाला माना जा रहा है।

भारती ने रेबीज की बिमारी में इस सस्ते उपचार को एक क्रांति बताया है, जिसकी मदद से मरीज की दवा लेनी की खुराक काफी कम हो जाती है। जिसके चलते उपचार की लागत प्रति मरीज 35,000 रुपये से 100 गुना कम यानि सिर्फ 350 रुपये हो जाती है।

पिछले 17 सालों से कर रहे थे शोध

डॉक्टर भारती ने अपने डॉक्टरी के पेश में रहते हुए कुछ निजी घटनाओं के अनुभव पर इस सस्ते उपचार को बनाने का बेड़ा उठाया था जिसपर वो पिछले 17 साल से काम कर रहे थे।

आपको बता दें कि पिछले सप्ताह विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने रेबीज वैक्सीन और इम्युनोग्लोब्युलंस की जानकारी साझा करते हुए डॉक्टर भारती की इस नए और कम लागत वाले उपचार “चिक प्रोटोकॉल” को मेडिकल सांइस में विश्व स्तर पर मान्यता दे दी है।

इस वजह से महंगी रहती थी दवाई

गौरतलब है कि डब्लूएचओ के दिशा निर्देशों के अनुसार, किसी कुत्ते या बंदर के काटने का शिकार होने वाले मरीज के लिए रेबीज इम्युनोग्लोब्यिलिन के साथ इंट्रामर्मली नाम की एक वैक्सीन दी जाती है जो कि घाव और मांसपेशियों में दोनों में इंजेक्ट किया जाता है।   

रेबीज इम्युनोग्लोबुलिन वैक्सीन की मात्रा रोगी के शरीर के वजन के अनुसार दी जाती है जो बहुत ही महंगा पड़ती है। लेकिन रेबीज का टीका लगभग समान ही रहता है। वहीं, अब इस नए प्रोटोकॉल से रेबीज इम्युनोग्लोबुलिन का इलाज काफी सस्ता बना दिया है।

रैबीज के कारण विश्व में हर साल होती हैं 59 हजार मौतें 

आंकड़ों के मुताबिक हर साल दुनिया भर में तकरीबन 59,000 लोग रेबीज होने से मर जाते हैं, इस बीमारी से मरने वालों में अकेले भारत के आंकड़े 20,000 हैं। जाहिर है कि इन मौतों का कारण अधिकतर दवा का ना होना है, क्यों कि दवा काफी मंहगी है और इसका खर्चा हर मरीज के लिए उठा पाना मुश्किल होता है। जिस वजह से हर साल इतने लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है।