प्रदेश के प्राकृतिक स्त्रोतों और पौधों को बचाने के लिए सरकार युवाओं को जागरुक करने जा रही है। प्रदेश की बहुमूल्य जड़ी बूटियों और पोधों की नई पीढ़ी को पहचान न होने के चलते प्राकृति की यह बहुमूल्य संपदा लुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है। इसी उदेशय से प्रदेश की विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण परिषद (हिमकोस्ट) युवाओं को जागरुक करने के लिए चार महीनों का कोर्स कराने जा रही है। एेसा करने से जहां बहुमूल्य वन संपदा को नष्ट होने से बचाया जाएगा वहीं युवाओं को रोजगार के अवसर भी प्राप्त होंगे।
हिमकोस्ट ने शिमला में प्राकृतिक संसाधनों के सतत प्रबंधन के लिए अर्ध-शुष्क, रेगिस्तान क्षेत्रों और ग्रिड आधारित निर्णय समर्थन प्रणाली पर प्रशिक्षण के लिए दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया है। इस कार्यशाला में चडीगढ़, पंजाब, राजस्थान, गुजरात और दिल्ली में स्थित नो केंद्रों से एमओईएफसीसी, समन्वयक और वैज्ञानिकों के 40 प्रतिभागी ने भाग लिया।
इस अवसर पर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की प्रिंसिपल एडवाइजर डॉ. आनंदी सुब्रमण्यम ने कहा कि जीएसडीपी प्रशिक्षण ने विभिन्न राज्यों के अधिक प्रतिनिधियों को प्रशिक्षित करने का अवसर दिया है। ग्रिड्स योजना के तहत, भारत में 76 एनवीस केंद्रों में से प्रत्येक को सभी प्राकृतिक संसाधनों के लिए एक जिले का चयन करने के लिए कहा गया है। हिमाचल प्रदेश में एनवीस हब ने शुरुआत में कुल्लू जिले का चयन किया है और वन संसाधन, नदियों और विभिन्न सुविधाओं जैसे प्राकृतिक संसाधनों को मानचित्रण किया गया है।
वहीं हिमाचल प्रदेश के विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण परिषद सदस्य सचिव कुणाल सत्यार्थी ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के सतत प्रबंधन के लिए एक ग्रिड आधारित निर्णय समर्थन प्रणाली शुरू कर दी गई है। हिमाचल प्रदेश में पौधों की पहचान लगातार विलुप्त हो रही है। प्रदेश में जड़ी बूटियों का खजाना है लेकिन इसकी पहचान करने वाले लोग भी बहुत कम रह गए हैं। इस उदेशय से युवाओं को विभाग के माध्यम से पौधों की पहचान के लिए कोर्स करवाया जायेगा ताकि प्रदेश की प्राकृतिक संपदा को बचाया जा सके।