भाद्रपद मास की शुक्ल पंचमी को ऋषि पंचमी का पर्व गोपूजा एवम् देव पूजन की परम्परा से जुड़ा है. इतिहासकार, साहित्यकार डाक्टर हिमेन्द्र बाली ‘‘हिम‘‘ का कहना है कि सतलुज घाटी क्षेत्र के अंतर्गत मण्डी के सुकेत क्षेत्र में ऋषि पंचमी के दिन गोपूजन व देव पूजन की परम्परा प्रचलित है. ऋषियों के प्रति आदर भाव को ज्ञापित करने के लिये सुकेत की आदि राजधानी पांगणा व सुकेत के अंतर्गत रामगढ़ व बगड़ा के अधीन सेरी में और चवासी गढ़ के अंतर्गत तेबन, पोखी और सोमाकोठी के नागधार में ‘‘भुन्जों‘‘ उत्सव का आयोजन स्थानीय देवों को श्रद्धासुमनस्वरूप किया जाता है.
भाद्रपद मास में ऋषि पंचमी से पांच दिन पूर्व अथवा भाद्रपद कृष्ण द्वादशी को ब्राह्मण परिवार में गृहवधू घर के पवित्र कक्ष में काष्ठ पट्टिका पर मृदा बिछाकर जौ का बीजोरोपण किया जाता है. इस अनुष्ठान का ‘‘शाख‘‘ उगाना या ‘‘शकड़ी‘‘ कहा जाता है. प्रतिरोज ‘‘शाख‘‘ पट्टिका के समीप दीपक जलाकर जल से इसे सिंचित किया जाता है.
शांगरी , कुमारसेन, कोटगढ़ व कुल्लू के बाहरी सराज की ब्राह्मण बस्तियों में भी भाद्रपद मास की कृष्ण द्वादशी को शाख को घर के अन्दर उगाया जाता है. पोखी गांव की नयनादेवी का कहना है कि महिलाओ द्वारा उपवास रखकर ही ‘‘शाख‘‘ तैयार करने के लिए जौ की बीजाई की जाती है फिर ‘‘शाख‘‘ वाले पटड़े को अलमारी मे बंद करके रख देते है ताकि अंकुरित ‘‘शाख‘‘ की पत्तियों का रंग पीला हो जाए.
ऋषि पंचमी के दिन ग्राम वधुएं स्नान आदि के बाद पशुओं की पूजा-अर्चना कर इनके शरीर पर विविध रंगो की छाप लगाती है. डाक्टर हिमेन्द्र बाली का कहना है कि पशुओं के सींगों को धोकर घी से आलेपित किया जाता है. पशुओं के शरीर पर हल्दी व आटा के घोल से सुन्दर चित्र उकेरे जाते हैं. खुरों को जल से धोकर पवित्र किया जाता है. पशुओं के गले में जंगली फूल भराड़ी व पु्ष्पों से मालाएं बनाकर पहनाया जाता है. सरताज,डोलरे और ‘‘बूं‘‘ नामक फूलो के हार गाय,बैल,भेड-बकरियो के गले मे पहनाती है.
गेंहू के ‘‘चापड़‘‘(उसरे हुए चील्हड़े), घड़े मे दूध,घी-गुड के साथ सेविया बनाकर तथा गेहूँ, काओणी,सौवा,चीणा,साठौ मक्की,अखरोट का दाड़ा पशुओ को खिलाकर हार श्रृंगार किए पशुओ को चरागाह मे चराने के लिए पुरूष ले जाते है. चरागाह मे पुरूष, बच्चे और युवा आपस मे गेहूं, मक्की,चने,भरठ के दानो को भूनकर,बनाई ‘‘मोड़ी‘‘ व अखरोट आपस मे बाँटकर खाते है. सुहागिन महिलाएं ‘‘शाख‘‘ की पट्टिकाओं को सिर पर उठाकर श्रृंगलाबद्ध होकर ढोल नगाड़ो की देवधुन के साथ लोक गीत गाते हुए बावड़ी सरोवर की ओर चलती हैं.
बड़ागांव शांगरी में महिलायें पट्टिकाओं को उठाकर ब्रह्मेश्वर देव के छत्र के नीचे नृत्य करतीं हैं देवता की छत्र छाया में ग्राम वधुएं संरक्षण प्राप्त करतीं हैं. तदोपरांत सरोवर पर जाकर जौ की ‘‘शाख‘‘ को मृदा से अलग करतीं हैं फिर सभी जगह ‘‘शाख‘‘ को लेकर महिलायें सर्वप्रथम अपने ग्राम देवता फिर कुल व गृह देष को ‘‘शाख‘‘ लगाकर संतति सुख व समृद्धि की कामना करतीं है.
सुकेत की राजधानी पांगणा, सेरी, चौरीधार, खादरा, केलोधार, पोखी,नान्ज, तेबन, त्रीम्बड़ी,चोआ,कटोल ,धमाहर,बाग में भी शाख् को देवी-देवता को अर्पित करने के बाद एक-दूसरे को बांटते हैं. लोग कान के ऊपर जौ की डालियों को लगाते हैं. सुकेत के सेरी, पोखी पंचायत के बहली, ठाकुर ठाणा पंचायत के नागधार गांव में स्थानीय देव नाग धमूनी, नाग पोखी, सोमेश्वर महादेव, नाग सुन्दलु, देओ दवाहड़ी रथारूढ़ होकर प्रजा को दर्शन देते हैं. सुकेत चवासी के तेबन गांव के ब्राह्मण बस्ती ‘‘शाला‘‘ में भी ऋषि पंचमी के दिन ‘‘शाख‘‘ उगाकर पहले तेबनी महादेव व फिर आपस में आबंटित किया जाता है.
Dhrobia village Development: कांगड़ा विधानसभा क्षेत्र के चंगर क्षेत्र में विकास की एक नई कहानी…
High Court decision Himachal hotels: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट से राज्य सरकार और पर्यटन विकास निगम…
NCC Day Dharamshala College: धर्मशाला स्थित राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय (जीपीजीसी) में एनसीसी दिवस के उपलक्ष्य…
Kunzum Pass closed: हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति जिले को जोड़ने वाला कुंजम दर्रा…
Rahul Gandhi in Shimla: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और केंद्र में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी…
Mother murders children in Noida: उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले के बादलपुर थाना क्षेत्र…