राजकीय महाविद्यालय मंडी में कार्यरत सह-आचार्य भूगोल एवं ज्योग्राफिकल सोसाइटी ऑफ हिमाचल प्रदेश के प्रांत उपाध्यक्ष डॉ. हेमराज राणा ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में तापमान व वर्षा के पैटर्न में हो रहे बदलाव के कारण नदीय बाढ़े, फ्लैश फ्लड, भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटना और वन्यग्नि जैसी प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि हो रही है।
उन्होंने कहा कि वर्षा का पैटर्न व वितरण में हो रहे परिवर्तनों तथा हिमालयी पर्वत श्रेणियों में हो रही कम व बेमौसमी बर्फबारी के कारण हिमाचल प्रदेश में रबी और खरीफ दोनों ही फसलों का मौसम बदल रहा है। फसलों के उत्पादन के साथ-साथ देश के इस सेब उत्पादक राज्य में सेब का उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है, क्योंकि सम-शीतोष्ण फल उत्पादक क्षेत्र अधिक ऊंचाई वाले भौगोलिक क्षेत्रों की ओर शिफ्ट हो रहे हैं। राणाने कहा कि हिमाचल एक विश्वप्रसिद्ध पर्यटन राज्य होने के कारण देशी-विदेशी सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहता है।
प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक यहां की प्राकृतिक सुंदरता, धार्मिक प्रतिष्ठानों, तथा विभिन्न साहसिक गतिविधियों का लुत्फ उठाने के निमित प्रदेश में यात्रा व प्रवास करने आते हैं तथा प्रदेश के राजस्व अर्जन में अहम भूमिका निभाते हैं। वर्तमान में बदलती मौसमी परिस्थितियों के मध्यनजर सैलानियों को हिमाचल दर्शन के लिए फरवरी से जून तक का समय सबसे अच्छा रहेगा। सर्दियों में यात्रा के लिए सुखद व लोकप्रिय समय अक्टूबर से फरवरी के बीच बर्फबारी का मौसम रहेगा।
उन्होंने कहा कि विकास के नाम पर अवैज्ञानिक तरीकों से सडक़ों के विस्तारीकरण के निमित भू-कटान वर्तमान समय में भूस्खलन सम्बंधित आपदाओं का मूल कारण नजर आता है। जिससे वर्षा ऋतु के दौरान भारी जानमाल की हानि की घटनाएं घटित हो रही हैं। इस दिशा में शासन व प्रशासन को उचित कदम उठाने की आवश्यकता है।
सैलानियों को जुलाई से 15 सिंतबर तक प्रदेश में यात्रा करने से बचना चाहिए। साथ ही स्थानीय लोगों को नदी-नालों के किनारे भवन निर्माण या व्यापारिक प्रतिष्ठानों के निर्माण की प्रक्रिया को रोकना होगा। इसके लिए शासन-प्रशासन को संबंधित नियमों का कार्यान्वयन सख्ती से लागू करवाने के साथ ही जनमानस को प्राकृतिक आपदाओं के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक करना होगा।