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“जवानों का मनोबल न गिराएं”, विक्रमादित्य सिंह की प्रधानमंत्री को नसीहत

  • PWD मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने ऑपरेशन सिंदूर के पोस्टरों पर PM मोदी की तस्वीर को लेकर आपत्ति जताई

  • विक्रमादित्य ने कहा, “कुछ चीजें राजनीति से ऊपर होती हैं, इससे जवानों का मनोबल गिरता है

  • सोशल मीडिया पर पोस्टर की आलोचना, कई यूज़र्स बोले- सेना का श्रेय राजनीतिकरण किया जा रहा है



हिमाचल प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है। विक्रमादित्य सिंह ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से एक पोस्टर शेयर करते हुए लिखा कि देश के प्रधानमंत्री का हम सम्मान करते हैं, लेकिन उन्हें इस तरह सेना के अभियानों का राजनीतिक इस्तेमाल नहीं करना चाहिए

उन्होंने स्पष्ट किया कि हो सकता है कि ये पोस्टर प्रधानमंत्री के निर्देश पर न लगाए गए हों, लेकिन फिर भी इन्हें उतारने के आदेश दिए जा सकते हैं। मंत्री ने आशंका जताई कि ऐसे कदम जवानों के मनोबल को प्रभावित कर सकते हैं। विक्रमादित्य ने अंत में प्रधानमंत्री को नसीहत दी कि कुछ चीजें राजनीति से ऊपर होती हैं और उन्हें इस तरह की संवेदनशीलता दिखानी चाहिए।

विक्रमादित्य सिंह द्वारा शेयर किया गया पोस्टर एक हाईवे पर लगाया गया है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर, एक फाइटर जेट, कुछ सैनिक और तिरंगा दिखाई दे रहा है। ऊपर “ऑपरेशन सिंदूर” लिखा गया है। यह पोस्ट सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है।

फेसबुक पर उनके 4.09 लाख से अधिक फॉलोअर्स हैं, और बड़ी संख्या में लोग इस पोस्ट पर कमेंट और शेयर कर रहे हैं।

इस पोस्ट पर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं। कई यूज़र्स ने प्रधानमंत्री की तस्वीर को सही ठहराया, तो कई लोगों ने इसे राजनीतिक स्टंट करार दिया।

रिटायर्ड चीफ इंजीनियर ठाकुर सुरेंद्र सिंह ने लिखा कि “कोविड काल में भी वैक्सीन के नाम पर ऐसी ही नौटंकी देखी जा चुकी है।”
यूजर अजय प्रकाश शर्मा ने लिखा कि “ऑपरेशन सिंदूर सेना ने किया था, इसका श्रेय प्रधानमंत्री को नहीं मिलना चाहिए।”

एक अन्य यूजर केसी कश्यप ने लिखा, “पब्लिसिटी की भूख है साहब को, सेना के पीछे खड़े होने की बजाय खुद आगे खड़े हो गए। प्रेस ब्रीफिंग सेना और विदेश सचिव कर रहे थे, लेकिन पीएम को क्रेडिट दिलाने के लिए तिरंगा यात्रा और पोस्टर लगाए जा रहे हैं।”

इस पूरे घटनाक्रम ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सैन्य अभियानों में सरकार की ब्रांडिंग उचित है, या यह सेना के सम्मान से खिलवाड़ है।