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जानिए, सावन के महीने में नई शादीशुदा महिलाएं क्यों चली जाती हैं मायके!

डेस्क |

सावन का पावन महीना चल रहा है। हर कोई भोलेनाथ की भक्ति में डूबा हुआ हैं। सावन के खास मौके पर बेटियों का मायके जाना बेहद शुभ माना जाता है। हिमाचल में इस रीति रिवाज को कांगड़ा के अलावा मंडी, बिलासपुर, ऊना व चम्बा जिलों में भी मनाया जाता है।

आमतौर पर विवाह के बाद पहले सावन में बेटियां अपने मायके जाती हैं। जिससे बेटियां मानसिक और शारीरिक रूप से बेहतर रह सकें। सावन में बेटियों का मायके जाना एक विशेष पंरपरा है। ऐसा करने से बेटियों के मायके और ससुराल पक्ष की स्थितियां बेहतर रहती है। वहीं धार्मिक और लोकमान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से पति की आयु लंबी होती है और दांपत्य जीवन खुशहाल रहता है।

सावन का महिना हिन्दू धर्म के लिए बहुत पावन होता है, सावन के महीने में कजरी तीज, हरियाली तीज, मधुश्रावणी, नाग पंचमी जैसे त्यौहार मनाए जाते हैं। भगवान शिव के लिए सावन का महीना काफी अप्रिय है। क्योंकि इसी महीने में समुद्र मंथन हुआ था और भगवान शिव ने हलाहल विष पिया। हलाहल विष के पान के बाद विष को शांत करने के लिए भक्त इस महीने में शिव जी को जल अर्पित करते हैं।

अब इसे एक अंधविश्वास कहें या फिर एक बहाना या कुछ ओर। लेकिन इसी बहाने नवविवाहित लड़की अपने मायके में पूरा एक महीना बिता पातीं हैं। इस पूरे महीने वे अपने मायके में रहतीं हैं और सोलह श्रृंगार करती हैं, हाथों में मेहंदी रचाती हैं। अगले यानी आश्विन महीने को सक्रांति के बाद ही नवविवाहिता अपने ससुराल जाती हैं। कईं बार काला महीना खत्म होते ही श्राद्ध शुरू हो जाते हैं तो उनको मायके में और समय मिल जाता है और फिर नवरात्रि में वापिस जाती हैं।

जब भी नवविवाहिता वापिस अपने ससुराल जाती हैं तो मां उनको ससुराल वालों के लिए कपड़े, मिठाई और पकवान बनाकर भिजवाती हैं। जितने दिन वे मायके में रहतीं हैं वापिस अपने अल्हड़पन में पहुंच जातीं हैं लेकिन वापिस ससुराल जाते ही एक बार फिर एक जिम्मेदार बहू के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभाने में जुट जातीं हैं। इस तरह हर नवविवाहिता इस महीने का इंतजार करती है ताकि वे अपने मायके जा सके।

 

इसके साथ ही कहा जाता है इस महीने में रातें काली होतीं हैं तो लोग सरसों के दिए यानी बट्ठियां भी जलाई जाती हैं। इसके पीछे की मान्यता यह है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म इसी महीने में काली रातों में हुआ था और रात को उजाला करने के लिए ही दिए जलाए जाते हैं।

युवा पीढ़ी ने अपनाया नया तरीका

भले ही आज की युवा पीढ़ी से इन रिवाजों को मानने से थोड़ी हिचकिचती हो, लेकिन आज इन नए नवेले जोड़ों ने काला महीना मनाने का नया तरीका अपनाया है । कांगड़ा  में नौकरी करने वाले अंशुल का कहना है वह काला महीने में अपनी बीवी को अपने साथ कांगड़ा ले जाएंगे।

वहीं कुछ ने इन दिनों घर और ससुराल से दूर घूमने फिरने का प्लान बना लिया है। इससे एक तरफ जहां घूम फिर कर खूब मौज भी हो जाएगी और काला महीना भी कट जाएगा।