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गणेश चुतुर्थी को निकलने वाले चांद को यहां कहते हैं ‘कलंक का चांद’…

पी. चंद |

शिमला: कहते हैं हिमाचल के हर गांव की अपनी अपनी बोली, अपने अपने रीती-रिवाज हैं। पूरे देश में धूमधाम से मनाये जाने वाले गणेश चुतुर्थी को भी यहां कुछ अलग ही तरीके से मनाया जाता है। इस दिन निकलने वाले चांद को हिमाचल के अधिकतर इलाकों में कलंक का चांद कहते हैं।

मान्यता है कि शीतल चांदनी देने वाले चांद को अगर गणेश चतुर्थी की रात कोई व्यक्ति देख लेता है तो उस पर कलंक लग जाता है। इस चांद को “पत्थर चौथ” के नाम से जाना जाता है और यदि किसी ने चांद गलती से भी देख लिया तो उसे किसी के घर कि छत पर पत्थर फेंकने से ही दोष से मुक्ति मिलेगी। “पत्थर चौथ” भादो महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन मनाया जाता है।

मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी कहीं जा रहे थे, चलते हुए उनका पांव कीचड़ में फिसल गया जिसको देखकर चंद्रमा हंस पड़े थे। चंद्रमा के इस व्यवहार से गणेश जी क्रोधित हो गए और चंद्रमा को श्राप दे दिया कि आज के दिन तुम्हारे दर्शन से लोगों को कलंक लगेगा।

इस रात के चांद के साथ जुड़े श्राप से भगवान श्रीकृष्ण भी नहीं बच पाए थे। भगवान श्रीकृष्ण ने एक बार चतुर्थी का चांद देख लिया था। कथा के मुताबिक़ द्वारिकापुरी में सत्राजित नाम का एक सूर्यभक्त रहता था। सत्राचित की भक्ति से प्रसन्न हुए सूर्यदेव ने उन्हें एक मणि प्रदान की। मणि के प्रभाव से सब तरफ सुख-शांति थी। एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने ये मणि राजा उग्रसेन को देने की सोची। सत्राचित को जब इस बात का पता चला तो उसने मणि अपने भाई प्रसेन को दे दी।

एक बार प्रसेन मणि के साथ घने जंगल में शिकार करने गया, लेकिन एक शेर ने उसे मार कर खा लिया। इसी जंगल में जामवंत भी घूम रहा था। जामवंत ने जब शेर के मुंह में मणि देखी तो उसने शेर को मार कर मणि को हर लिया। उधर जब प्रजा को प्रसेन की मौत का पता चला तो उन्होंने सोचा श्रीकृष्ण ने प्रसेन को मारकर मणि छीन ली है।

श्रीकृष्ण को जब पता चला प्रजा उन्हें दोषी मान रही है तो वो परेशान होकर प्रसेन को तलाशने के लिए जंगल में निकल पड़े। जंगल में भगवान श्रीकृष्ण को प्रसेन के साथ-साथ मृत शेर का देह मिला। जामवंत के पैरों के निशान के आधार पर श्रीकृष्ण जामवंत के पास पहुंच गए। जामवंत ने भगवान से माफी मांगी और पूरी कहानी सुनाई। इसी कहानी के बाद जामवंत ने अपनी कन्या जामवंती का विवाह श्रीकृष्ण से किया और मणि भी उन्हें दे दी। जब प्रजा को सच्चाई का पता चला तो उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से माफी मांगी। इस तरह चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन करने से भगवान के ऊपर भी झूठा कलंक लगा था।