इंडिया

केरल के मुन्नार में चाय बागानों की पुरानी कहानी, कांगड़ा चाय इससे कोसों दूर क्यों?

केरल: भारत में चाय के दीवानों की कमी नही है। जब चाय की दीवानगी इस क़दर हो तो फिर चाय के बागान भी उसी स्तर के होने चाहिए। फ़िर भले ही अंग्रेज भारतीयों को चाय की लत क्यों न लगा गए हों। वैसे तो हिमाचल के कांगड़ा में भी चाय के बागान है। लेकिन केरल के चाय बागानों की तरह हिमाचल की चाय को ख्याति नही मिल पाई या फ़िर यूं कहें कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी से कांगड़ा की चाय हाशिये पर है। मुन्नार कोच्चि से 125 किमी दूर केरल का कश्मीर है।

वादियों की हरियाली और टेढ़े-मेढे़ रास्तों वाली यह जगह दुर्गम चोटियों पर है। समुद्र तल से करीब 1100 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इडुक्की जिले में वेस्टर्न घाट पर स्थित मुन्नार का बॉर्डर तमिलनाडु से लगता है। चाय बागानों से भरे इस इलाके की विधानसभा सीट देवीकुलम है। सैंकड़ो एकड़ भूमि पर फैले इन चाय के बागानों का अपना अलग ही आकर्षण है।

समाचार फर्स्ट ने बागानों का दौरा किया तो पाया कि इन चाय के बागानों की अंग्रेजों ने 1857 में मुन्नार में नींव रखी। थी जॉन डेनियल मुनरो देश के इस तरफ जब आए तब उन्हें तुरंत ही इस जगह से प्यार हो गया था। तब से मुन्नार 50 से अधिक चाय बागानों का घर रहा है, उनमें से कुछ हैं – एवीटी चाय, हैरिसन मलयालम, सेवनमल्ले टी एस्टेट, ब्रुक बॉन्ड। 16 से 19 घंटे में फैक्ट्री में चाय बनकर तैयार हो जाती है। टीपू सुल्तान ने जब को अंग्रेजो को हराया तो मुन्नर पहुंच गए। अंग्रेजो ने ही यहाँ चाय की खोज की व तमिलनाडु से लेबर लाई गई। एक वक्त ऐसा आया जब टाटा ने बागान छोड़ दिए उस वक़्त लोगों को चाय का शेयर दे दिया गए। मुन्नार के बागान दो बाढ़ का दंश भी झेल चुके है।

मून्नार के इतिहास का चाय एक अभिन्न अंग रही है। यहाँ टाटा टी द्वारा 2005 में एक टी म्यूजियम की स्थापना की गई है। जो मुन्नार के चाय की लंबी यात्रा के दर्शन करवाती है। इलाके में चाय की यात्रा के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। टाटा टी के नल्लतण्णी एस्टेट में स्थापित यह म्यूजियम चाय बागान की संस्कृति को इतने लंबे समय तक जीवित रखने में आज भी सहयोग कर रहा है। समाचार फर्स्ट ने चाय की फैक्ट्री को भी कवर किया। यहां चाय प्रॉसेसिंग के विभिन्न चरणों को देख सकते हैं जिसमें काली चाय बनाने की प्रक्रिया भी शामिल है।

आप यहां ग्रेनाइट ब्लॉक पर स्थापित एक सनडायल भी देख सकते हैं जिसका निर्माण 1913 में तमिलनाडु के नाज़रेत में आर्ट इंडस्ट्रियल स्कूल द्वारा किया गया था। यहां ‘पेल्टन व्हील’ है जिसका इस्तेमाल 1920 के दशक में विद्युत संयंत्रों में किया जाता था, और टी रोलर है, और कुंडला वैली रेलवे का एक रेल इंजन पहिया भी है रखा हुआ है। पीआईबी द्वारा प्रेस टूर में मुन्नार के चाय बागानों को देखने का मौका मिला।

Balkrishan Singh

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