देश प्रदेश में बढ़ती महंगाई ने आम जनता की कमर तोड़ कर रख दी है। पेट्रोलियम पदार्थों से लेकर रोजमर्रा की खाद्य वस्तुओं के दाम आए दिन नया रिकॉर्ड कायम कर रहे हैं। अप्रैल में थोक महंगाई 15 फीसदी और खुदरा महंगाई 7.79% पर पहुंच गई है, जो बीते 8 सालों में सर्वाधिक है। पिछले चार महीनों से महंगाई की दर लगातार 6% से ऊपर चल रही है।
महंगाई का आलम ये है कि आज दूध, आटा, चावल, तेल से लेकर सब्जियों और दवाईयों के दाम पिछले 5 साल में दो से तीन गुना हो गए हैं। दिनों दिन इस बढ़ती महंगाई ने आम आदमी की जेब का सारा बजट बिगाड़ कर रख दिया है। गैस सिलेंडर के दाम 1 हजार को छू रहे हैं जबकि पेट्रोल डीजल के दाम भी बीते दिनों 100 का आंकड़ा पार कर गए। हालांकि केंद्र सरकार ने पेट्रोल डीजल में टैक्स कम कर जनता को कुछ राहत देने का काम जरूर किया लेकिन रोजमर्रा की अन्य वस्तुओं के दाम अब भी आम आदमी का पसीना निकाल रहे हैं।
भारत में भले ही गेहूं की पैदावार अधिक होती है लेकिन आटे के भाव बीते एक साल के भीतर 15 फीसदी तक बढ़ गए हैं। जबकि सरकारी भाव में गेहूं के दाम सिर्फ 50 रुपये ही बढ़े हैं ऐसे में ये बढ़ोतरी 2.5 फीसदी तक ही बनती है। बात करें पड़ोसी राज्य पंजाब की तो यहां बीते साल आटा थोक में 2200 से 2250 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा था जो आज 2700 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है।
5 साल में इतनी बढ़ी महंगाई.
साल 2014 में दूध जो 44 रुपये प्रति लीटर बिक रहा था वे अब 2022 में 54 रुपये प्रति लीटर पहुंच गया है। इसी प्रकार सरसों का तेल 2017 में 90 रुपये प्रति लीटर मिलता था वे अब बढ़कर 170 रुपये प्रति लीटर पहुंच गया है। बीते 5 सालों में दालों के दाम में भी रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है। मूंग की दाल के दाम 2017 में 76 रुपये प्रति किलो थे आज वे बढ़कर 130 रुपये प्रति किलो हो गए हैं। इसी प्रकार अरहर की दाल 80 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 120 रुपये हो गई है तो वहीं मसूर की दाल भी 82 रूपये प्रति किलो से बढ़कर 110 रुपये प्रति किलो हो गई है।
कंपनियां कूट रही चांदी
कंपनियां आए दिन टैक्स, बिजली और लेवर के नाम पर वस्तुओं के दाम बढ़ा रही हैं। जिसका नतीजा है कि आम आदमी इस बढ़ती महंगाई से पिसता जा रहा है जबकि दूसरी तरफ कंपनियों का मुनाफा बढ़ता जा रहा है। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार बीते 5 साल में कंपनियों के प्रॉफिट में 42 से 68 फीसदी तक की बढ़ोतरी देखने को मिली है। ऐसे में ये सवाल उठना लाजमी है कि क्या सरकार इन कंपनियों की मनमानी पर लगाम नहीं लगा रही है?