Follow Us:

एक भारत श्रेष्ठ भारत: केरल-हिमाचल में समानताएं, कई क्षेत्रों में हो सकती है भागीदारी

“एक भारत श्रेष्ठ भारत” कार्यक्रम के तहत 11 सदस्यीय पत्रकारों के दल ने केरल जाकर कई अनुभव हासिल किए। ये दल 25 अप्रैल को हवाई मार्ग से सीधा कोची पहुंचा। जितना समय शिमला से चंडीगढ़ पहुंचने में लगा उतना ही वक़्त यानी क़रीब पौने चार घण्टे चंडीगढ़ से कोची पहुंचने में लगे।

पी. चंद |

केरल: “एक भारत श्रेष्ठ भारत” कार्यक्रम के तहत 11 सदस्यीय पत्रकारों के दल ने केरल जाकर कई अनुभव हासिल किए। ये दल 25 अप्रैल को हवाई मार्ग से सीधा कोची पहुंचा। जितना समय शिमला से चंडीगढ़ पहुंचने में लगा उतना ही वक़्त यानी क़रीब पौने चार घण्टे चंडीगढ़ से कोची पहुंचने में लगे। शिमला से क़रीब 3 हज़ार किलोमीटर की दूरी पर स्थित केरल की जनसंख्या 34,698,876 है। पत्रकारों के मुताबिक केरल में भले ही तापमान 33 डिग्री सेल्सियस था लेकिन उमस तन को जला रही थी। केरल में मुख्यतः आबादी हिन्दू, मुस्लिम और पादरियों की है। शिक्षा के क्षेत्र में केरल देश भर में अव्वल राज्य है। केरल की 94 फ़ीसदी जनसंख्या शिक्षित है। जिसका असर भी वहां नज़र आता है। लोग अनुशासित, नियम मानने वाले और सभ्य हैं। चेहरे पर मुस्कान केरल के लोगों की आत्म संतुष्टि को ज़ाहिर करती है। उसकी वजह लोगों का साधन संपन्न होना भी है।

केरल की सड़कें और शहर साफ़ सफाई का अदभुत उदाहरण पेश करता है। राज्य के गांव तक व्यवस्थित व सुंदर है। सड़कों में गड्ढे नही दिखते है। सड़क किनारे रेहड़ी- फड़ी व अवैध कब्ज़े न के बराबर है। सबसे बड़ी बात केरल में हमें कोई भिखारी नज़र नही आया। केरल की संस्कृति व सभ्यता में हिन्दू, मुश्लिम व क्रिश्चन का सामंजस्य है। केरल पंचकर्म व आयुर्वेद में भी आगे है। हर हॉटेल में आपको पंचकर्म मिल जाएगा, रोजमर्रा के उपयोग के लिए हर चीज़ आयुर्वेदिक मिलती है। इडळी, डोसा, बड़ा सांभर, स्थानीय चावल आपको खाने में आसानी से मिल जाएंगे।

केरल ने हर चीज़ को पर्यटन से जोड़ने का प्रयास किया है। यही वजह है कि देश विदेश के पर्यटक केरल जाना पसंद करते है। केरल ने आयुर्वेद से पर्यटन को जोड़ा है। धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दिया गया है। चाय के बागान से लेकर इलायची तक को पर्यटन से जोड़ा जा रहा है। हमें 26 अप्रैल को कोची से इड्यूकी जिले के इलायची अनुसंधान केन्द्र जाने का मौका मिला। भारतीय इलायची अनुसंधान संस्थान ( आई सी आर आई) की स्थापान 1978 में, छोटी इलायची पर आधारभूत और अनुप्रयुक्त कार्य चलाने हेतु पूर्ववर्ती इलायची बोर्ड के अनुसंधान स्कन्ध के रूप में मैलाडुंपारा में हुई थी। स्थान-विशिष्ट समस्याओं को सुलझाने हेतु 1980 के दौरान दो क्षेत्रीय अनुसंधान स्टेशन भी कर्नाटक के हसन जिले के सकलेशपुर और तमिलनाडु के डिंडिगल जिले के तड़ियांकुड़ीशि में स्थापित किए गए।

भारतीय इलायची अनुसंधान संस्थान में चलाए जानेवाले अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य इलायची (छोटी व बड़ी दोनों) की उत्पादकता बढ़ाना है। आई सी आर आई मैलाडुंपारा में राष्ट्रीय इलायची जेर्मप्लासम संरक्षणालय भी है जो करीब 563 इलायची प्राप्तियों एवं विभिन्न कृषि-जलवायविक अंचलों के बारह संबन्धित वंशों को बनाए रखता है। हालांकि संस्थान इलायची के साथ केसर हींग हल्दी आदि पर भी शोध कर रहा है। संस्थान अब केसर के लिए हिमाचल के ऊना में भी काम कर रहा है।

27 अप्रैल की सुबह मुन्नार में हुई और हम मुन्नार के चाय बागानों की तरफ़ निकल पड़े। मुन्नार कोच्चि से 125 किमी दूर केरल का कश्मीर है। वादियों की हरियाली और टेढ़े-मेढे़ रास्तों वाली यह जगह दुर्गम चोटियों पर है। समुद्र तल से करीब 1100 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इडुक्की जिले में वेस्टर्न घाट पर स्थित मुन्नार का बॉर्डर तमिलनाडु से लगता है। चाय बागानों से भरे इस इलाके की विधानसभा सीट देवीकुलम है।

इन चाय के बागानों की अंग्रेजों ने 1857 में मुन्नार में नींव रखी थी। जॉन डेनियल मुनरो देश के इस तरफ जब आए तब उन्हें तुरंत ही इस जगह से प्यार हो गया था। तब से मुन्नार 50 से अधिक चाय बागानों का घर रहा है, उनमें से कुछ हैं – एवीटी चाय, हैरिसन मलयालम, सेवनमल्ले टी एस्टेट, ब्रुक बॉन्ड। 16 से 19 घंटे में फैक्ट्री में चाय बनकर तैयार हो जाती है। टीपू सुल्तान ने जब को अंग्रेजो को हराया तो मुन्नर पहुंच गए। अंग्रेजो ने ही यहाँ चाय की खोज की व तमिलनाडु से लेबर लाई गई। एक वक्त ऐसा आया जब टाटा ने बागान छोड़ दिए उस वक़्त लोगों को चाय का शेयर दे दिया गए। मुन्नार के बागान दो बाढ़ का दंश भी झेल चुके है।

एक रात मुन्नार में काटने के बाद हम त्रिवन्तपुरम के लिए चल दिए जहां 8 बजे पद्मनाभस्वामी मंदिर में जाने का मन बनाया। ये मंदिर भारत के केरल राज्य के तिरुअनन्तपुरम में स्थित भगवान विष्णु का प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है। भारत के प्रमुख वैष्णव मंदिरों में शामिल यह ऐतिहासिक मंदिर तिरुअनंतपुरम के अनेक पर्यटन स्थलों में से एक है। पद्मनाभ स्वामी मंदिर विष्णु-भक्तों की महत्वपूर्ण आराधना-स्थली है। मंदिर की संरचना में सुधार कार्य किए गए जाते रहे हैं। उदाहरणार्थ 1733 ई. में इस मंदिर का पुनर्निर्माण त्रावनकोर के महाराजा मार्तड वर्मा ने करवाया था। पद्मनाभ स्वामी मंदिर के साथ एक पौराणिक कथा जुडी है। मान्यता है कि सबसे पहले इस स्थान से विष्णु भगवान की प्रतिमा प्राप्त हुई थी जिसके बाद उसी स्थान पर इस मंदिर का निर्माण किया गया है। ये मंदिर भारत के सबसे अमीर मंदिरों में से एक माना जाता है।

यात्रा के अंतिम पड़ाव में हमें सीटीसीआरआई में जाने का मौका मिला। देश मे ऊर्जा संकट पर बढ़ती चिंता के बीच, देश के अग्रणी अनुसंधान संस्थानों में से एक केरल तिरुवनंतपुरम के डॉ. सीए जयप्रकाश, प्रधान वैज्ञानिक, सीटीसीआरआई के टैपिओका के पत्तों से बिजली व गैस पैदा करके प्रायोगिक सफलता हासिल की है। संस्थान ने जैव कीटनाशकों पर काम शुरू किया। ये जैव कीटनाशक फसलों की पैदावार बढ़ाने के साथ मनुष्य जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों को भी कम करते हैं।इतना ही नही उससे निकलने वाले वेस्ट पदार्थो से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के तहत केंद्रीय कंद अनुसंधान संस्थान (सीटीसीआरआई), तिरुवनंतपुरम एक नया आविष्कार लेकर सामने आया है जो स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के लिए भारत की पहल को नई गति प्रदान कर सकता है।