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2 साल से कक्षा में नहीं पहुंचा एक भी छात्र, शिक्षक ने कॉलेज को लौटा दिए सैलरी के 23 लाख रुपये

डेस्क |

अक्सर आपने सोशल मीडिया पर सरकारी स्कूलों या कॉलेज के ऐसे वीडियो वायरल होते देखें होंगे जिनमें बच्चे तो एक कौने में बैठकर पढ़ाई करते हैं लेकिन शिक्षक आराम से कक्षा में सो रहे होते हैं या फिर दो चार शिक्षक इक्टठा होकर गप्पें लड़ा रहे होते हैं. ऐसे शिक्षकों पर पर अक्सर बच्चों को न पढ़ाने और फ्री में सैलरी लेने के आरोप लगते रहते हैं. लेकिन क्या कभी आपने ऐसी खबर पढ़ी या सुनी है जिसमें स्कूल या कॉलेज में छात्र न होने पर किसी शिक्षक ने अपनी पूरी सैलरी लौटा दी हो. शायद आप ये सोच रहे होंगे कि ऐसा तो कोई मूर्ख व्यक्ति या जिसे पैसे की कोई कदर न हो वह ही कर सकता है. लेकिन असल में ऐसा हुआ है… शायद आप भी इसपर यकीन न करें लेकिन सच में ऐसा हुआ है.

तो चलिए आपको बता देते हैं कि ऐसा बिहार के मुजफ्फरपुर जिला में पेश आया हो जो आजकर हर कहीं चर्चा का विषय बना हुआ है. दरअसल यहां मुजफ्फरपुर के नीतीश्वर कॉलेज में हिंदी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. ललन कुमार ने कक्षा में लगातार छात्रों की संख्या शून्य यानी कोई भी छात्र न होने पर अपने 2 साल 9 महीने की पूरी सैलरी जो 23 लाख 82 हजार 228 रूपये बनती थी लौटा दी है. शिक्षक द्वारा उठाया गए इस कदम की हर कहीं चर्चा हो रही है.

बता दें कि डॉ. ललन ने मंगलवार को जब इस राशि का चेक विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. आरके ठाकुर को सौंपने पहुंचे तो वे भी हैरान रह गए. हालांकि पहले को उन्होंने इस चेक को लेने से मना कर दिया. लेकिन जब बाद में प्रोफेसर ने नौकरी छोड़ने की बात कही तो मजबूरन उन्हें चेक लेना पड़ा. डॉ. ललन के अनुसार, “मैं नीतीश्वर कॉलेज में अपने अध्यापन कार्य के प्रति कृतज्ञ महसूस नहीं कर रहा हूं. इसलिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बताए ज्ञान और अंतरात्मा की आवाज पर नियुक्ति तारीख से अब तक के पूरे वेतन की राशि विश्वविद्यालय को समर्पित करता हूं.”

ऐसा नहीं है कि विश्वविद्यालय में छात्र नहीं है. करीब 1100 छात्रों का हिंदी विषय में नामांकन है लेकिन वे कभी क्लास में ही नहीं पहुंचे. हालांकि उन्होंने इस बारे में प्राचार्य को भी बताया लेकिन उन्हें कहा गया कि वे शिक्षण सामग्री ऑनलाइन अपलोड कर दें. इस बात से नाराज डॉ. ललन ने विश्वविद्यालय की गिरती शिक्षण व्यवस्था पर भी सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बताए ज्ञान और अंतरात्मा की आवाज पर नियुक्ति तारीख से अब तक के पूरे वेतन की राशि विश्वविद्यालय को समर्पित करता हूं.’

गौरतलब है आजकल के इस दौर में ऐसे व्यक्ति कम ही देखने को मिलते हैं जो अपने काम पूरी निष्ठा से और लगन से करते हैं. बढ़ती महंगाई के इस दौर में कोई भी व्यक्ति हाथ को लक्ष्मी को जाने नहीं देता लेकिन डॉ. ललन ने इसके विपरीत बिना काम के सैलरी लेने से मना कर एक मिसाल पेश की है.