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सांस थमती रही..पर पाकिस्तानियों के छक्के छुड़ाते रहे ‘शेरशाह’, कहते रहे- ये दिल मांगे मोर

हिमाचल प्रदेश के पालमपुर शहर में जन्में विक्रम बत्रा बचपन से ही काफी मेधावी और बेहतरीन स्पोर्ट्समैन थे. विक्रम बत्रा की प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है

डेस्क |

1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद भी कई दिन सैन्य संघर्ष होता रहा हैं. इतिहास के मुताबिक दोनों देशों ने फरवरी 1999 में लाहौर में घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए. जिसमें कश्मीर मुद्दे को लेकर दोनो पक्षों द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से हल करने का वादा किया गया था. लेकिन पाकिस्तान अपने सैनिक बलों को छिपाकर नियंत्रण रेखा के पार भेजने लगे और इस घुसपैठ का नाम “ऑपरेशन बद्र” रखा था. इसका उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के बीच की कड़ी को तोड़ना और भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटाना था. पाकिस्तान यह भी मानता है कि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार के तनाव से कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने में मदद मिलेगी.

भारत में प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है. इस दिन भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में युद्ध हुआ था. जो लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई के दिन उसका अंत हुआ. हिमाचल प्रदेश के पालमपुर शहर में जन्में विक्रम बत्रा बचपन से ही काफी मेधावी और बेहतरीन स्पोर्ट्समैन थे. विक्रम बत्रा की प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्कूल के दिनों में उन्हें पूरे उत्तर भारत का बेस्ट एनसीसी कैडेट चुना गया था. विक्रम बत्रा टेबल टेनिस के राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी भी रहे थे. 1996 में सीडीएस परीक्षा पास करने के बाद भारतीय सेना में शामिल हुए थे. कारगिल लड़ाई में कैप्टन विक्रम बत्रा और उनकी टुकड़ी को 19 जून को पॉइंट 5140 पर कब्जा करने का टास्क मिला था. जिसे अपनी बेहतरीन रणनीतिक समझकर और बहादुरी से कैप्टन विक्रम बत्रा और उनकी टीम ने जीत हासिल कर ली.

इस जीत के बाद ही कैप्टन विक्रम बत्रा ने बेस कैप पर लौंट के बाद अपने कंमाडर से कहा था कि “ये दिल मांगे मोर”. पॅाइंट 5410 की जीत कारगिल लड़ाई में भारत की जीत के लिए काफी अहम साबित हुई. इस जीत में कैप्टन बत्रा और उनकी टीम ने पाकिस्तान के कैंप तबाह कर दिए थे इस दौरान भारतीय सेना ने पाकिस्तान की एंटी एयरक्राफ्ट गन भी अपने कब्जे में ले ली थी.इस एंटी एयरक्राफ्ट गन के साथ कैप्टन विक्रम बत्रा की हंसते हुए तस्वीर काफी फेमस हुई थी. पॉइंट 5140 की लड़ाई के कुछ दिन बाद ही उनकी टुकड़ी को एक और अहम ऑपरेशन सौंपा गया. इस ऑपरेशन में भारतीय सेना के जवानों को 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित पॉइंट 4875 पर तिरंगा फहराना था.

7 जुलाई 1999 की रात कैप्टन विक्रम बत्रा और उनकी टीम ने पहाड़ पर चढ़ाई शुरू की. पॉइंट 5140 की जीत के बाद पाकिस्तान के सैनिक भी कैप्टन विक्रम बत्रा की बहादुरी के मुरीद हो गए थे और जब उन्हें पता चला कि “शेर शाह” (कैप्टन विक्रम बत्रा का कोड नेम) की टीम हमला करने वाली है तो पाकिस्तानी सेना ने पूरी ताकत से भारतीय जवानों पर हमला किया. भारतीय जवानों ने भी प्रहार किया और कैप्टन विक्रम बत्रा और उनके साथी कैप्टन अनुज नैय्यर के नेतृत्व में भारतीय जवान पाकिस्तान के सैनिकों पर टूट पड़े और दुश्मनों को ढेर करना शुरू कर दिया था.

मिशन लगभग खत्म ही हो गया था कि एक विस्फोट में जूनियर अधिकारी का पैर चोट लग गई. जिसके बाद कैप्टन विक्रम बत्रा बंकर से इस जूनियर अधिकारी को बचाने के लिए निकले. उसी दौरान एक सूबेदार ने जाने की बात कही थी लेकिन कैप्टन ने यह कह कर मना कर दिया कि “तू बाल बच्चेदार है, हट जा पीछे”. फिर जैसे ही कैप्टन विक्रम बत्रा इस घायल के पास पहुंचे और उसे उठाया ही था कि एक गोली उनके सीने में आकर लगी और वह शहीद हो गए. आज पॅाइंट 4875 को कैप्टन विक्रम बत्रा के नाम से जाना जाता हैं और कैप्टन विक्रम बत्रा को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था.