पिछले एक साल से तीन कृषि कानून को लेकर हो रहे किसानों के विरोध के आगे आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा। शुक्रवार को गुरु पर्व पर प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि मैं देशवासियों से क्षमा मांगते हुए यह कहना चाहता हूं कि हमारी तपस्या में कोई कमी रह गई होगी। कुछ किसान भाइयों को हम समझा नहीं पाए। आज गुरुनानक देव का पवित्र पर्व है। ये समय किसी को दोष देने का नहीं है। आज मैं पूरे देश को यह बताने आया हूं कि सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है।
किसान आंदोलन से जुड़ी कुछ अहम बातें-
21 और 22 सितंबर 2020 को केंद्र सरकार ने विरोध के बावजूद भी संसद के अंदर कृषि से जुड़े तीन कानूनों को पास करवाया था। 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने इन कानूनों पर अपनी मुहर लगाई। इन कानूनों के विरोध में पहले तो किसानों ने प्रदर्शन किया लेकिन जब बात न बनी तो उनका ये प्रदर्शन आंदोलन में बदल गया। 26 नवंबर 2020 को किसानों ने कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन शुरू कर दिया। किसानों के इस आंदोलन को कई राज्यों का भी साथ मिला। एक साल तक किसान दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले रहे।
605 किसानों की मौत!
भले ही आज किसानों को एक साल के संघर्ष के बाद बड़ी जीत मिली है। लेकिन इस जीत के पीछे कई किसानों ने अपना बलिदान दिया है। इस आंदोनल में अब तक करीब 605 किसानों की मौत की ख़बर है। मरने वालों में अधिकतर किसान पंजाब के रहने वाले हैं। बरनाला के 65 वर्षिय कहन सिंह आंदोलन में जान गंवाने वाले पहले किसान थे।
आंदोलन के दौरान बड़ी घटनाएं-
26 जनवरी 2021- इस दिन किसानों ने ट्रैक्टर लेकर दिल्ली को कूच किया । अधिकतर किसानों को बॉर्डर पर ही रोक लिया गया। इस दौरान पुलिस और किसानों के बीच झड़प भी हुई। पुलिस ने किसानों को लाल किला जाने से रोकने के लिए आंसू गैसे के गोले दागे। इस दौरान ट्रैक्टर पलटने से एक किसान की मौत हुई। कई जगह किसानों द्वारा बैरिकेडिट तोड़ने की घटना सामने आई। इस हिंसा में 500 से ज्यादा किसानों पर 48 के करीब केस दर्ज हुए कई किसानों को जेल भी जाना पड़ा।
मई 2021 में किसान आंदोलन में शामिल होने आई पश्चिम बंगाल की एक युवती से टिकरी बॉर्डर की यात्रा के दौरान कथित तौर पर रेप की घटना भी सामने आई। मामले की एसआईटी ने जांच की और एक आरोपी को गिरफ्तार किया।
करनाल में किसानों पर लाठीचार्ज
28 अगस्त 2021 को करनाल के टोल प्लाजा में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का विरोध कर रहे किसानों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। इस लाठीचार्ज में कई किसान घायल हुए और कईयों के सिर फूटे। इसके विरोध में कई किसानों ने लघु सचिवालय का विरोध किया। लाठीचार्ज का आदेश देने वाले अधिकारी एसडीएम आयुष सिन्हा पर कार्रवाई की मांग।
लखीमपुर खीरी हिंसा में रौंदे किसान
3 अक्टूबर 2021 को लखीमपुर खीरी में उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के एक कार्यक्रम का विरोध करने के लिए एकत्र हुए प्रदर्शनकारियों के एक समूह के ऊपर गाड़ी चढ़ा दी गई। इसमें 4 किसानों समेत 8 लोगों की मौत हो गई थी। इस मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा के बेटे पर किसानों पर गाड़ी चढ़ाने के आरोप लगे। वहीं, इस घटना के कुछ दिन बाद 28 अक्टूबर को हरियाणा के टिकरी बॉर्डर पर किसान महिलाओं को ट्रक ने कुचल दिया। इस हादसे में 3 किसान महिलाओं की मौके पर ही मौत हो गई। ये महिलाएं पंजाब की रहने वालीं थी।
इसके अलावा एक साल से चल रहे किसानों के इस आंदोलन में कई छोटी मोटी घटनाएं होती रहीं। किसानों ने कई दफा भारत बंद का ऐलान कर केंद्र के इन कानूनों का पुर्जोर विरोध किया। कई राज्यों से किसानों ने इस आंदोलन में अपना समर्थन दिया। किसान नेता राकेश टिकैत ने हिमाचल से लेकर अलग अलग राज्यों में जाकर किसान संघठनों को जागरूक किया। आख़िर में नतीज़ा किसानों के पक्ष में रहा। कई नेताओं ने भी किसानों के इस आंदोलन में अपना सहयोग दिया जिनमें कांग्रेस के ही नहीं, भाजपा के सहयोगी दल के हरसिमरत कौर जैसे नेता शामिल है। राहुल और प्रियंका गांधी ने भी इस मुद्दों को अलग अलग राज्यों में उठाया और किसान आंदोलन के समर्थन अपनी गिरफ्तारियां तक दी।
अब बेशक़ इन काले कानूनों को वापस ले लिया गया है कि लेकिन किसान संगठन का अभी भी यही कहना है कि जब तक सदन में कागज़ी तौर पर इसकी वापसी नहीं होती तब तक आंदोलन जारी रहेगा। वहीं, कई राजनीतिक ज्ञानियों की माने तो उनका कहना है कि केंद्र सरकार ने 2022 की शुरुआत में होने वाले 5 राज्यों के चुनावों को देखते हुए ये फैसला लिया है। इन राज्यों में यूपी और गुजरात प्रमुख राज्य हैं जहां भाजपा अपनी सत्ता नहीं गंवाना चाहती।
हिमाचल में कई दफा दिखा विरोध
हिमाचल प्रदेश में किसान आंदोलन के समर्थन में कई दफा विरोध जताया गया। कांग्रेस सहित कई किसान संगठनों केंद्र द्वारा पास किए गए इन 3 कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन हुए। सेब सीजन के दौरान भी कृषि कानून को विरोध देखने को मिला। सेब सीजन के दौरान खुद किसान नेता राकेश टिकैत ने हिमाचल सेब मंडी में पहुंचकर किसानों के हक की आवाज उठाई। हालांकि प्रदेश सरकार हिमाचल में किसान आंदोलन के समर्थन की बात को नकारती रही।
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