तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा ने जम्मू में एक बड़ा बयान देकर दुनिया भर का ध्यान अपनी ओर खींचा है. तिब्बती धर्मगुरु ने कहा है कि उन्हें चीन से आजादी नहीं बल्कि बौध धर्म और संस्कृति को लेकर जरूरी स्वायत्तता चाहिए. गुरुवार को दलाई लामा ने कहा कि चीन के अब अधिक से अधिक लोग यह मानने लगे हैं कि हम “आजादी” नहीं बल्कि एक वाजिब ऑटोनॉमी और बौद्ध संस्कृति के लिए संरक्षित माहौल चाहते हैं. उन्होंने बातचीत के जरिए चीन के साथ सारे मतभेद खत्म करने पर जोर दिया.
जम्मू पहुंचने पर दलाई लामा के अनुयायियों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया. बारिश के बावजूद भारी संख्या में उनके चाहने वाले मौजूद थे. गौरतलब है कि तिब्बती धर्मगुरु शुक्रवार को लद्दाख जाएंगे और कोरोनाकाल के 2 साल बाद धर्मशाला के बाहर उन्होंने कोई यात्रा शुरू की है. अपनी इस यात्रा के दौरान ही उन्होंने मीडिया से मुखातिब होते हुए चीन को लेकर बयान दिया. हालांकि, उनके इस बयान का वैश्विक मामलों के जानकार एक नए नजरिए से देखने लगे हैं.
87 साल के धर्मगुरु दलाई लामा ने कहा कि चीन की जनता उनको लेकर मतभेद नहीं पाले हैं. बल्कि, वहां के कुछ कट्टरपंथी लोग उनका विरोध करते हैं. उन्होंने कहा, “चीन के कुछ हार्डलाइनर मुझे अलगावादी के तौर पर देखते हैं और हमेशा मेरी आलोचना करते हैं. लेकिन, अब काफी संख्या में आम चीनी नागरिक यह मानने लगे हैं कि दलाई लामा “आजादी” नहीं, बल्कि (तिब्बत के लिए) एक वाजिब स्वायत्तता (Autonomy) और तिब्बती बौध संस्कृति के संरक्षण की मांग कर रहा है.”
आपको बता दें कि दलाई लामा को 1989 में विश्व का सबसे बड़ा सम्मान नोबल प्राइज से नवाजा गया था. तब दुनिया की नजर इनके संघर्षों पर पड़ी थी और चीन से तिब्बत की आजादी की मांग दूसरे देशों से भी उठने लगी. अक्सर चीन दलाई लामा की यात्राओं पर भी त्योरियां चढ़ाता रहा है. पिछली बार उनके अरुणाचल यात्रा को लेकर भी चीन ने डिप्लोमेटिक स्तर पर भारत के साथ दो-दो हाथ की थी. इसके बाद हाल ही में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दलाई लामा को उनके जन्मदिन की बधाई दी, तब भी चीन ने आपत्ति जाहिर की थी.