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22 मई को केंद्रीय ट्रेड यूनियन मनायेगी राष्ट्रीय प्रतिरोध दिवस

पी. चंद |

सीटू,इंटक,एटक सहित दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और दर्जनों राष्ट्रीय फेडरेशनों के आह्वान पर 22 मई को केंद्र और राज्य सरकारों  की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ देशभर में राष्ट्रीय प्रतिरोध दिवस मनाया जाएगा। इस दिन देश के करोड़ों मजदूर अपने कार्यस्थल और सड़कों पर उतरकर केंद्र सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलन का बिगुल बजाएंगे। ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने केंद्र व प्रदेश सरकारों को चेताया है कि वह मजदूर विरोधी कदमों से हाथ पीछे खींचें अन्यथा मजदूर आंदोलन तेज होगा।

ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच के हिमाचल प्रदेश संयोजक डॉ कश्मीर ठाकुर,इंटक प्रदेशाध्यक्ष बाबा हरदीप सिंह,एटक प्रदेशाध्यक्ष जगदीश चंद्र भारद्वाज और सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि देश में तालाबंदी के दौरान कई राज्यों में श्रम कानूनों को 'खत्म करने' के विरोध में दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों व दर्जनों राष्ट्रीय फेडरेशनों ने 22 मई को देशव्यापी प्रदर्शनों का ऐलान किया है। इसके साथ ही इस मामले को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन  के पास ले जाने का भी निर्णय लिया गया है। सीटू,इंटक,एटक सहित दस ट्रेड यूनियनों के राष्ट्रीय स्तर के नेता 22 मई को गांधी समाधि, राजघाट, नई दिल्ली में एक दिन की भूख हड़ताल करेंगे। इसी तरह सभी प्रदेश,जिला,ब्लॉक मुख्यालयों में भी प्रदर्शन होंगे। उन्होंने कहा है कि इस दिन हिमाचल प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों,मजदूरों के कार्यस्थलों,गांव व कस्बों में मजदूर श्रम कानूनों में परिवर्तन के खिलाफ आंदोलन करेंगे।
उन्होंने कहा है कि कोरोना महामारी के इस संकट काल को भी शासक वर्ग व सरकारें मजदूरों खून चूसने व उनके शोषण को तेज करने के लिए इस्तेमाल कर रही हैं। हिमाचल प्रदेश,मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश,गुजरात,राजस्थान में श्रम कानूनों में बदलाव इसी प्रक्रिया का हिस्सा है। अन्य प्रदेशों की तरह ही कारखाना अधिनियम 1948 में तब्दीली करके हिमाचल प्रदेश में काम के घण्टों को आठ से बढ़ाकर बारह कर दिया गया है। इस से एक तरफ मजदूरों की भारी छंटनी होगी वहीं दूसरी ओर कार्यरत मजदूरों का शोषण तेज़ होगा। फैक्टरी की पूरी परिभाषा बदलकर लगभग दो तिहाई मजदूरों को चौदह श्रम कानूनों के दायरे से बाहर कर दिया जाएगा।ठेका मजदूर अधिनियम 1970 में बदलाव से हजारों ठेका मजदूर श्रम कानूनों के दायरे से बाहर हो जाएंगे। औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 में परिवर्तन से जहां एक ओर अपनी मांगों को लेकर की जाने वाली मजदूरों की हड़ताल पर अंकुश लगेगा वहीं दूसरी ओर मजदूरों की छंटनी की पक्रिया आसान हो जाएगी व उन्हें छंटनी भत्ता से भी वंचित होना पड़ेगा। तालाबंदी,छंटनी व ले ऑफ की प्रक्रिया भी मालिकों के पक्ष में हो जाएगी। इन मजदूर विरोधी कदमों को रोकने के लिए ट्रेड यूनियन संयुक्त मंच ने हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है व श्रम कानूनों में बदलाव को रोकने की मांग की है।